केबीआर बिमलार्पण महोत्सव में शास्त्रीय संगीत के कलाकार दे रहे प्रस्तुति

2-scaled.jpg


भिलाईनगर। टीम भिलाई एंथम एंड वेलफेयर सोसाइटी भिलाई की ओर से लगातार चौथे वर्ष केबीआर बिमलार्पण संगीत महोत्सव 2022 का त्रिदिवसीय आयोजन 8 जनवरी की रात शुरू हुआ। 10 जनवरी तक चलने वाला यह त्रिदिवसीय आयोजन वर्तमान में कोरोना की स्थिति को देखते हुए इस वर्ष भी ऑनलाइन रखा गया है।


यह महोत्सव प्रख्यात संगीतज्ञ और भिलाई स्टील प्लांट के जीएम माइंस रहे दिवंगत आचार्य पं बिमलेंदु मुखर्जी को समर्पित है जिन्होंने संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अतुलनीय योगदान दिया है। उनके अनेक शिष्य न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहे है। छत्तीसगढ़ में पं. मुखर्जी का कार्यक्षेत्र रहे खैरागढ़, भिलाई व रायपुर के आधार पर आयोजन का नाम केबीआर रखा गया है। यह चौथा महोत्सव प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी ,दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र,नागपुर एवम इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, के साथ एवं सहयोग से किया जा रहा है। आयोजन से पूर्व ‘संयोगिता 2021’ प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। जिसके विजेताओं को इस वर्ष के महोत्सव अपनी कला प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जा रहा है।


महोत्सव की शुरुवात सरस्वती वंदना से की गई जिसे इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत किया गया। टीम भिलाई एंथम की प्रेसिडेंट प्रो सुस्मिता बासु मजूमदार एवं इंदिरा कला संगीत विश्व विद्यालय, खैरागढ़ की पद्मश्री कुलपति डॉ मोक्षदा चंद्राकर ने संबोधित कर इस महोत्सव की शुरुआत की।


महोत्सव की शुरूआत ‘संयोगिता 2021’ प्रतियोगिता के विजेता शौनक रॉय ने राग यमन से अपने सरोद वादन का शुभारंभ किया, उनके वादन को सुनकर उनके सुरीलेपन, तालीम, रियाज और अपने सोच को परिलक्षित करता है। उनके साथ तबले पर इंद्रनील भादुड़ी ने संगत की। महोत्सव की दूसरी प्रस्तुति उदीयमान गायक ग्वालियर घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे विवेक कर्महे की रही। वे पं उल्हास कशालकर, ओमकार दादरकर, विदुषी कुमुदिनी मुंडगल के शिष्य हैं। अपने गायन की शुरुवात विवेक ने राग बिहाग से की। इनके गायन में गंभीरता, चिंतन मनन और तालीम दिखाई पड़ती है। इनके साथ तबले पर रोहित परमार और हारमोनियम पर तल्लीन त्रिवेदी ने संगत की।


महोत्सव के पहले दिन की अंतिम प्रस्तुति में सितार वादक समरजीत सेन ने राग वाचस्पति से शुरूआत की, जिसमें आलाप, जोड़, झाला तथा बंदिशे क्रमश: झपताल, मध्यलय तथा द्रुत तीन ताल में निबद्ध थी। उन्होंने समापन राग मलिका से किया। उन्होंने पं सुकुमार चंदा,पद्मभूषण पं बुद्धदेव दासगुप्ता, उस्ताद शाहिद परवेज एवं नीलाद्री कुमार से सितार वादन की शिक्षा प्राप्त की और आईटीसी-एसआरए कोलकाता के स्कॉलर रहे है। पहले दिन का संचालन श्रद्धा भारद्वाज ने बखूबी किया।


scroll to top