भोपाल। आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया संक्रान्ति का अर्थ है, ‘सूर्य का एक राशि से अलगी राशि में संक्रमण (जाना)’। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है, मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और नेपाल के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व को ‘मकर सक्रान्ति, पंजाब में लोहडी, गढ़वाल में खिचडी संक्रान्ति, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहते हैं।
योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि मकर संक्रांति का ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व है सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छ: माह पृथ्वी के उत्तरी गोलाद्र्ध के निकट होता है और शेष छ: माह दक्षिणी गोलाद्र्ध के निकट होता है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होता है अर्थात् उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है जिससे उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। अत: मकर संक्रान्ति अन्धकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि की शुरुआत है।
दरअसल, समस्त जीवधारी (पशु,पक्षी व् पेड़ पौधे भी) प्रकाश चाहते हैं। संसार सुषुप्ति से जाग्रति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है और अन्धकार अज्ञान का। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, इसलिए तमसो मा ज्योतिर्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष के लोग इस दिन सूर्यदेव की आराधना एवं पूजन कर, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।ध्यान देने योग्य है कि विश्व की 90त्न आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अत: मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है। सम्पूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवत: मकर संक्रांति ही एकमात्र उत्सव है जो किसी स्थानीय परम्परा, मान्यता, विश्वास या किसी विशेष स्थानीय घटना से सम्बंधित नहीं है, बल्कि एक खगोलीय घटना, वैश्विक भूगोल और विश्व कल्याण की भावना पर आधारित है और सम्पूर्ण मानवता को आनंद देने वाला है।
कहते हैं कि प्राचीन भारत में भू मध्य रेखा से ऊपर यानी उत्तरी गोलार्ध को भूलोक और भू मध्य रेखा से नीचे यानी दक्षिणी गोलार्ध को पाताल लोक माना जाता था। अत: मकर संक्रांति एक ऐसी खगोलीय घटना है जो सम्पूर्ण भूलोक में नव स्फूर्ति और आनंद का संचार करती है।मकर संक्रांति न केवल भारत राष्ट्र का बल्कि सम्पूर्ण मानवता का उत्सव है। यद्यपि मकर संक्रांति सम्पूर्ण मानवता के उल्लास का पर्व है पर इसका उत्सव केवल हिन्दु समाज मनाता है क्योंकि विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और सर्वे भवन्तु सुखिन: की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है।
आयुर्वेद में तिल को कफ नाशक, पुष्टिवर्धक और तीव्र असर कारक औषधि के रूप में जाना जाता है। यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवडिय़ां और लड्डू शीतऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: पतंग उड़ाने का एक उद्देश्य कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना भी है। मकर संक्रांति को सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। यह भारत का राष्ट्रीय पर्व है। पर्व एक है पर इसको मनाने की परम्पराएं अलग-अलग हैं। इस पर्व के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है। विशाल भारत की विविधताओं में अन्तर्निहित एकता और अखण्डता का अनुपम उदाहरण है मकर संक्रांति।