सूर्यनमस्कार – सूर्य-पूजा की शक्तिशाली विधि – शरीर, मन एवं आत्मा के पूर्ण समन्वय के लिए आसन, प्राणायाम एवं मुद्राओं का एक समेकित अभ्यास है – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल 18 जनवरी 2022:- आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया वर्तमान परिस्थितियों में स्वस्थ तनाव रहित एवं भय मुक्त जीवन के लिए सभी को योग अभ्यास प्राणायाम के साथ सूर्य नमस्कार जरूर करना चाहिये | सूर्य नमस्कार ठीक सूर्योदय के समय सूर्य की ओर अभिमुख होकर करना चाहिए। स्वास्थ्य-दायिनी सूर्य-किरणें प्रचुर मात्रा में हमारे तन्तुओं और अवयवों को पुनर्जीवित और पुष्ट करती हैं। सूर्य नमस्कार की एक आवृत्ति में बारह मुद्राएँ होती हैं। सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में इन्हीं 12 स्थितियों को क्रम से दो बार दुहराया जाता है। प्रत्येक मुद्रा का अभ्यास एक मन्त्र के उच्चारण के साथ किया जाता है। मन्त्र के उच्चारण का मन पर बड़ा शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है। जब सूर्य नमस्कार के लिए तैयार होते हो, तब यह प्रार्थना करनी चाहिए,

*ॐ सूर्य सुन्दरलोकनाथममृतं वेदान्तसार शिवम् । ज्ञान ब्रह्ममय सुरेशममल लोकैकचित्तस्वयम् ॥ इन्द्रादित्य नराधिपं सुरगुरु त्रैलोक्य-चूड़ामणिम् । ब्रह्माविष्णुशिवस्वरूपहृदय वन्दे सदा भास्करम् ॥* इसके पश्चात् सूर्य नमस्कार आरम्भ करने के पूर्व इन बारह मंत्रो का उच्चारण कीजिए 1. ॐ मित्राय नमः 2. ॐ रवये नमः 3. ॐ सूर्याय नमः 4. ॐ भानवे नमः 5. ॐ खगाय नमः 6. ॐ पूष्णे नमः 7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः 8. ॐ मरीचये नमः 9. ॐ सवित्रे नमः 10. ॐ अर्काय नमः 11. ॐ आदित्याय नमः 12. ॐ भास्कराय नमः। अब सूर्य नमस्कार करने के लिए प्रत्येक मुद्रा के मन्त्र का मानसिक उच्चारण करते हुए निम्नांकित विधि से क्रमशः 12 मुद्राओं का अभ्यास कीजिए

*1. प्रार्थना की मुद्रा* – सूर्याभिमुख होकर दोनों हाथों को प्रणाम की मुद्रा में जोड़ कर खड़े होइए। सूर्य की प्रार्थना कीजिए और सामने खड़े होकर, आँखें बंद कर पहले मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ मित्राय नमः।

*2. हस्त उत्तानासन* – दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाइए। भुजाओं के बीच – कन्धों की चौड़ाई के बराबर दूरी रखिये। सिर और धड़ के ऊपरी भाग को थोड़ा सा पीछे झुकाइये। दूसरे मन्त्र का भाव सहित मानसिक उच्चारण कीजिए तथा श्वास को अन्दर खींचिये। ॐ रवये नमः।

*3. पाद हस्तासन* – श्वास छोड़ते हुए सामने की ओर झुकते जाइये जब तक कि अँगुलियाँ या हाथ जमीन को पैरों के सामने या बगल में स्पर्श न करने लगें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश कीजिए, जोर न लगाइये। पैरों को सीधा रखिये। तीसरे मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ सूर्याय नमः।

*4. अश्व संचालन*- बायें पैर को जितना सम्भव हो सके पीछे की ओर फैलाइये। पैर का अँगूठा और घुटना जमीन को छूता रहे। इसी के साथ दायें पैर को मोड़िए, लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे। भुजाएँ अपने स्थान पर सीधी रहें। इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, या बायें घुटने एवं दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा। अन्तिम स्थिति में सूर्य की ओर देखिए और कमर को धनुषाकार बनाइये। चौथे मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ भानवे नमः ।

*5. पर्वतासन*- दाहिने पैर को भी पीछे ले जाइए और दायें पंजे को बायें पंजे की बगल में रखिए, एड़ियों को भूमि से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिए। नितम्बों को ऊपर उठाइये और सिर को भुजाओं के बीच में लाइए। अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएँ सीधी रहें। पाँचवें मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ खगाय नमः ।

*6. अष्टांग नमस्कार*- शरीर को भूमि पर इस प्रकार झुकाइये कि अन्तिम स्थिति में दोनों पैरों की अँगुलियाँ, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ तथा ठुड्डी भूमि का स्पर्श करें। यह मुद्रा साष्टांग-प्रणाम की तरह होती है। छठवें मन्त्र का मानसिक उच्चारण कीजिए। ॐ पूष्णे नमः।

7. सिर को ऊपर उठाइये और भुजाओं को सीधा करते हुए धड़ को भुजंगासन की मुद्रा में पीछे की ओर झुकाइये। सातवें मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । 8. पीठ और कमर को पाँचवीं मुद्रा की तरह ऊपर उठाते हुए पर्वताकार आकृति में लाइए। आठवें मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ मरीचये नमः। 9. दाहिने पैर को चौथी मुद्रा के समान आगे ले आइये, जैसा पहले वर्णन किया जा चुका है। नौंवे मन्त्र का उच्चारण कीजिए। ॐ सवित्रे नमः। 10. क्रमांक तीन की मुद्रा में आइये, जैसा ऊपर बताया गया है। उच्चारण कीजिए ॐ अर्काय नमः ।

11. दोनों हाथों को सिर के ऊपर, क्रमांक दो की मुद्रा की भाँति उठाइये और ग्यारहवें मन्त्र का उच्चारण कीजिए- ॐ आदित्याय नमः । 12. प्रथम अवस्था में आकर मानसिक उच्चारण कीजिए-ॐ भास्कराय नमः ।

इस पूरी प्रक्रिया से सूर्य नमस्कार का एक चक्र बनता है। इसकी आवृत्तियाँ धीरे-धीरे बढ़ाई जा सकती हैं। पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करने में सूर्य नमस्कार सहायक है। यह नेत्र, यकृत और चर्म के अनेक रोगों को दूर करता है। यह शारीरिक व्यायाम तथा उपासना का निश्चित ढंग है। इसमें तुम शारीरिक श्रम तथा मन की एकाग्रता के एक नवीन तरीके का सम्मिश्रण पाओगे। यदि तुम चाहो तो सूर्य नमस्कार आरम्भ करने के पूर्व ‘सूर्य-गायत्री’ का पाठ और ‘आदित्य-हृदय’ का उच्चारण भी कर सकते हो। अपने योगासनों के क्रम में ‘सूर्य नमस्कार’ भी रखो।

इसके असंख्य लाभ हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए। महिलायें सूर्य नमस्कार का अभ्यास किसी भी समय कर सकती हैं, यहाँ तक कि मासिक चक्र तथा गर्भ की प्रारम्भिक अवस्था में भी। केवल जिन महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है, उन्हें मासिक चक्र की अवधि में इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। यह पूर्ण अभ्यास शरीर की सभी मांसपेशियों को तानता एवं सशक्त बनाता है और प्रत्येक जोड़ से कड़ेपन को दूर करता है। यह मेरुदण्ड अनेक प्रकार से मोड़ता एवं तानता है, जिससे मेरुदण्ड की सभी तन्त्रिकायें सामंजस्य की स्थिति में आ जाती हैं। यह गहरे श्वास को अभिप्रेरित करता तथा अवरुद्ध श्वसन क्षेत्रों को खोलता है।

यह हृदय को थोड़ा उद्दीप्त करता और रक्त संचार को सुधारता है। त्वचा शुद्ध हो जाती है और शरीर में गर्मी आती है। अतिरिक्त चर्बी जल जाती है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि सूर्य नमस्कार शरीर की प्रत्येक ग्रन्थि को प्रभावित करता है, जिससे हॉर्मोन संस्थान में सामंजस्य एवं सन्तुलन आता है। शारीरिक सन्तुलन के अतिरिक्त सूर्य नमस्कार इडा एवं पिंगला नाड़ियों में शीघ्रता से सन्तुलन लाता है, जिससे शरीर एवं मन के बीच आवश्यक सन्तुलन आता है और गहन शिथिलीकरण एवं ध्यान की बहुत अच्छी तैयारी होती है।


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