अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस – व्यक्ति, समाज और देश के विकास के लिए योगाधारित शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल। आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया आज किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा हर व्यक्ति का एक बुनियादी मौलिक अधिकार है, लेकिन अभी भी दुनिया में कई बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। जो व्यक्ति शिक्षित नहीं है, वह अपने जीवन में बहुत संघर्षों से गुजरता है। किसी भी व्यक्ति का विकास शिक्षा पर निर्भर करता है। समाज में शांति और विकास के क्षेत्र में शिक्षा की अहम भूमिका को देखते हुए हर साल 24 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस साल की थीम च्चेंजिंग कोर्स, ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशनज् है। थीम का उद्देश्य पिछले दो वर्षों के प्रभाव को विश्व स्तर पर शिक्षा को देखने के तरीके को समझना और शिक्षा को एक बार फिर से सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए नए और अभिनव तरीके खोजना है।अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हर छात्र को गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करने के विषय पर केंद्रित होता है। इसके साथ यह दिन दुनिया भर में शांति और विकास के लिए शिक्षा की भूमिका पर भी प्रकाश डालता है।


योग गुरु अग्रवाल ने बताया भारत में पारम्परिक रूप से बच्चों को आठ, नौ या दस वर्ष की अवस्था में योगाभ्यास में प्रवृत्त किया जाता है। वैदिक परम्परा में एक अनुष्ठान होता है जिसके अंतर्गत इस अवस्था के बच्चों को सूर्य नमस्कार, नाड़ी शोधन प्राणायाम और गायत्री मंत्र सिखाया जाता है। आज भी यह परम्परा कहीं कहीं कायम है, लेकिन साथ ही योग को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। बच्चों की अनेक समस्याएँ अस्पष्ट एवं अनभिव्यक्त होती हैं। वे अपनी समस्याओं को सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उनमें अभिव्यक्ति की क्षमता और स्वयं अपने मनोविज्ञान के विषय में जानकारी का अभाव होता है। इसलिए बच्चे प्राय: अपने आचरण के माध्यम से अपनी समस्याओं को प्रकट करते हैं। जब तक कोई मनोविश्लेषक बच्चों के आचरण का अध्ययन नहीं करेगा तब तक वह एक सही निदान भी नहीं दे पायेगा।ऐसी समस्याएँ अधिकतर माता-पिता को कठिनाई में डाल देती हैं, क्योंकि वे मनोविश्लेषक तो होते नहीं और वे अपने बच्चों की समस्याओं को आत्मनिष्ठ रूप में देखते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा धृष्ट और अवज्ञाकारी है, तो माता-पिता बिना उसकी अवज्ञाकारिता के कारण की गहराई में गये उस पर ‘अवज्ञाकारी’ होने का ठप्पा लगा देंगे। यदि बच्चा घर में नहीं रहना चाहता है और अपने मित्रों, चाहे अच्छे हों या बुरे, उनकी संगति में ही रहना चाहता है, तो माता-पिता उसे आवारा मान लेंगे। एक मनोचिकित्सक इस आचरण के कारण का विश्लेषण करने का प्रयास करेगा, लेकिन माता-पिता यह नहीं कर सकते। ऐसा नहीं कि वे विश्लेषण करना नहीं जानते हैं, बल्कि इसलिए कि वे माता-पिता हैं और पूर्वाग्रहों से भरे हुए हैं।


बच्चों में सात से बारह वर्ष की अवस्था के बीच कुछ प्रवृत्तियों में असंतुलन आ जाता है। शारीरिक विकास एवं मानसिक विकास साथ-साथ नहीं हो पाते हैं। मस्तिष्क, नाड़ी संस्थान एवं अंत:स्रावी ग्रंथियों की दृष्टि से देखा जाए, तो कभी-कभी शारीरिक विकास मानसिक विकास से कहीं अधिक हो जाता है या अनेक बार मानसिक विकास शारीरिक विकास से बहुत अधिक हो जाता है। बच्चों में समस्याओं का यह मौलिक कारण होता है।


हम लोगों को बच्चों की समस्याओं का विश्लेषण नैतिकता एवं सदाचार के आधार पर नहीं करना चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि अधिवृक्क ग्रंथि से अत्यधिक स्राव हो रहा , तो बच्चा भयभीत रहेगा। वह कठिन परिस्थितियों और व्यक्तियों का सामना नहीं कर पायेगा। यदि उसके विद्यालय में कोई कठोर शिक्षक हैं, तो वह न तो उनका सामना करना चाहेगा और न ही उनके विषय को पढऩा चाहेगा। इस समस्या का कारण न नैतिक है, न सदाचार सम्बन्धी है और न ही सामाजिक, यह मनोशारीरिक है। हमें बच्चे के चरित्र में बदलाव लाने के लिए केवल अधिवृक्क ग्रंथि के स्राव को संतुलित कर देना होगा। जो लोग बच्चों की समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं, उन्हें हॉर्मोनों के भावनात्मक प्रभाव का अध्ययन करना चाहिए। इसी प्रकार की समस्या अवटु हॉर्मोनों में असंतुलन के कारण होती है। सात-आठ वर्ष की अवस्था में शीर्ष ग्रंथि का क्षय होने लगता है और जब क्षय की प्रक्रिया एक विशेष स्तर तक आगे बढ़ जाती है, तो यौन हॉर्मोन शरीर में क्रियाशील हो जाते हैं। इसके पहले तक शीर्ष ग्रंथि बच्चे की यौन-सजगता और उससे संबद्ध भावनात्मक और मानसिक चरित्र के तीव्र विकास को रोके रखती है। जिस क्षण शीर्ष ग्रंथि का क्षय पूरा हो जाता है, बच्चे का भावनात्मक विकास तीव्र हो जाता है जिसे सम्भालना उसके लिए कठिन हो जाता है। यदि हम शारीरिक विकास की तुलना में भावनात्मक विकास को धीमा कर दें, तो बच्चे में स्थिरता आ जायेगी। ऐसा करने के लिए शीर्ष ग्रंथि को स्वस्थ रखना होगा और इसके लिए शाम्भवी मुद्रा (भ्रूमध्य पर आँखों की एकाग्रता) का अभ्यास आवश्यक है।


शीर्ष ग्रंथि का बहुत महत्त्व है। योग में इसे आज्ञा चक्र कहते हैं, जो मस्तिष्क में मेड्युला ऑब्लॉगेटा नाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। शीर्ष ग्रंथि बहुत छोटी होती है और ताले जैसा काम करती है। जब तक शीर्ष ग्रथि स्वस्थ रहती है, तब तक अराजकतापूर्ण यौन आचरण नहीं होता है। यौन-सजगता का विकास तब होना चाहिए जब बच्चा उसकी मानसिक प्रतिक्रिया को संतुलित रखने योग्य हो जाए । यदि बच्चे में यौन कल्पनाएँ विकसित हो जाएँ और वह उन्हें अभिव्यक्त करने में असमर्थ हो, तो यह उसके लिए बहुत घातक होगा। उसे डरावने और भ्रमित करने वाले स्वप्न आयेंगे और अपने जीवन में अपनी उस सजगता से उबरने का प्रयास करेगा। इस प्रयास में वह ऐसे आचरण करेगा जिसे लोग पसंद नहीं करेंगे। यौन-सजगता की समय से पहले परिपक्वता बच्चे के मन पर आघात कर सकती है। उदाहरण के लिए बालिकाओं में जब यौन का स्राव होने है, तो स्तन ग्रंथियाँ, डिंबाशय गर्भाशय, सभी एक साथ सक्रिय हो जाते अब यदि शीर्ष ग्रंथि जल्द ही काम करना बंद कर दे, तो यह भ्र्म पूर्ण स्थिति गलत समय में उत्पन्न हो जाती है। बालिका बेचैन हो जाती है,क्योंकि इस बदली परिस्थिति से निपटने के लिए वह शारीरिक रूप से तैयार नहीं रहती है ।

अत: शाम्भवी मुद्रा के अभ्यास द्वारा आज्ञा चक्र प्रभावित कर उपयुक्त समय तक यौन परिपक्वता रोक देना बच्चों लिए लाभप्रद्र होगा। इस अभ्यास अधिक रोचक बनाने के लिए बच्चों को इसके साथ मानस दर्शन करने कहा जाता है। हम लगभग पचास वस्तुओं के लेते और बच्चा एक-एक कर उनका मानस दर्शन करता है। अपनी सजगता को घुमाता हुआ, अपने आप उन वस्तुओं के नाम कहता और उन्हें देखता जाता है, गुलाब का फूल, बहती हुई नदी, हिमाच्छादित पर्वत, दौड़ती हुई गाड़ी, उड़ता हुआ हवाईजहाज, अमरूद फल, इमारत इत्यादि, इत्यादि।
मानस दर्शन के लिए तीन प्रकार की वस्तुएँ ली जाती है वे वस्तुएँ जिन्हे बच्चे ने पहले देखा है, वे जिन्हें उसने नहीं देखा तथा अमूर्त धारणाएँ, जैसे, प्रेम, घृणा आदि। यह अभ्यास न केवल बच्चे को मनोशारीरिक संतुलन बनाये रखने में सहायता करता है, बल्कि उसमें मानस दर्शन करने की क्षमता का भी विकास करता है। जब स्कूल में भूगोल, इतिहास गणित पढ़ेगा, तब उसमें मानस दर्शन करने के साथ-साथ विचार करने वाला मन भी तैयार रहेगा।
यद्यपि हमें विश्वास है कि योग के अन्य अभ्यास शीर्ष ग्रंथि को स्वस्थ रखने साथ उसे अतिरिक्त आयु भी प्रदान करते हैं। इसीलिए भारत में सूर्य नमस्कार, नाड़ीशोधन प्राणायाम, जप और मानस दर्शन सहित शाम्भवी मुद्रा का प्रशिक्षण देते आये हैं।


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