विश्व कुष्ठ रोग दिवस- प्राकृतिक चिकित्सा, नियमित योग अभ्यास, शुभ चिंतन एवं अच्छी नींद से व्यक्ति आजीवन निरोगी रहता है – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल 30 जनवरी 2022:- आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया विश्व कुष्ठ रोग दिवस हर साल 30 जनवरी को मनाया जाता है। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देना और लोगों को कुष्ठ रोग के प्रति जागरूक करना है। कुष्ठ रोग यह एक जीर्ण संक्रमण रोग है। इससे त्वचा, श्वसन तंत्र, आंखें और तंत्रिकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के चलते होती है। आधुनिक समय में इसका टीका उपलब्ध है। अतः कुष्ठ रोग अब संक्रामक नहीं है। हालांकि, मरीज के लगातार संपर्क में बने रहने से संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके लिए कुष्ठ रोग के मरीजों को टीका लेना चाहिए। वहीं, मरीज के आगुंतकों को भी आवश्यक सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए। पूर्व में कुष्ठ रोग के प्रति ऐसा मत था कि यह रोग छूने से फैलती है। यह सरासर गलत और भ्रामक है।कोढ़ को ही कुष्ठ रोग कहा जाता है, कुछ लोग कुष्ठ रोग को वंशानुगत या दैवीय प्रकोप मानते है, लेकिन यह रोग न तो वंशानुगत है और न ही दैवीय प्रकोप है, बल्कि यह रोग जीवाणु द्वारा होता है।कुष्ठ रोग के संकेत व लक्षण – त्वचा पर घाव होना कुष्ठ रोग के प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। यदि इसका उपचार न किया जाए तो कुष्ठरोग पूरे शरीर में फैल सकता है जिससे शरीर की त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों सहित शरीर के कई भागों में स्थायी क्षति हो सकती है। इस रोग से त्वचा के रंग और स्वरूप में परिवर्तन दिखाई देने लगता है। कुष्ठ रोग में त्वचा पर रंगहीन दाग हो जाते हैं जिन पर किसी भी चुभन का रोगी को कोई असर नहीं होता। इस रोग के कारण शरीर के कई भाग सुन्न भी हो जाते हैं।

योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि पुराने रोगों की गलत चिकित्सा, नशीली व विषैली औषधियों का अधिक सेवन, अनावश्यक ऑपरेशन, ब्रह्मचर्य की ओर असावधानी, निराशा, चिन्ता, नशीली वस्तुओं का अधिक प्रयोग एवं पौष्टिक आहार नहीं लेना आदि कारणों से पुराना रोग घातक अवस्था को पहुँचता है। इसमें रोगी दिन-प्रतिदिन दुर्बल होता जाता है।

हर प्रकार का क्षय रोग, हर प्रकार के कैंसर एवं हाथों व पैरों को गलानें वाले कष्ट को घातक अवस्था के रोग कहते हैं। ऐसे रोगियों को प्राकृतिक उपायों से स्वास्थ्य प्राप्ति के लिये किसी अनुभवी प्राकृतिक चिकित्सक की निजी देखभाल में चिकित्सा करानी चाहिये। निम्न दस नियमों का पालन करने से भी स्वस्थ होने में सहायता मिल सकती है। रोगी के मन से मृत्यु का भय निकालना और जीने की आशा उत्पन्न करना। प्रातःकाल और सायंकाल प्रार्थना का नियम अनिवार्य रखना। नशीली वस्तु तथा विषैली औषधियाँ पूर्ण रूप से बन्द करना। बहुत धीरे-धीरे लम्बी साँस लेकर प्राणायाम और बिना दबाव के हल्के हाथ से मालिश करना।प्रतिदिन आधे घण्टे के लिये सिर ढँककर, नंगे शरीर से धूप का सेवन करना।रोगी की सहानुभूति पूर्वक सेवा एवं सफाई पर विशेष ध्यान रखना। निम्नलिखित वस्तुओं में से किसी एक का तीन सप्ताह के लिये सेवन करना। जैसे कि अंगूर, संतरा, पपीता, आँवला, सेवफल, अनार, गाजर या गाजर का रस, लाल टमाटर, छाछ, नारियल का पानी, उपरोक्त वस्तुओं में से कोई एक नियम से और आवश्यकतानुसार सेवन करना। तीन सप्ताह पश्चात् बकरी या गाय का दूध या मूँगफली पीसकर मूंगफली या बादाम का दूध बनाकर शहद मिलाकर पीना। शरीर में कहीं से भी रक्त स्राव या पीव बहती हो तो दिन में दो तीन बार अनार या आँवलों या पत्ता गोभी का रस पिलाना। प्रतिदिन यदि बुखार आता हो तो फटे दूध का पानी, मोसम्बी का रस या जौ का उबला हुआ पानी दिन में दो बार देना। घातक अवस्था के रोगी को पूर्ण उपवास नहीं कराना, दाल, रोटी, चावल, डबल रोटी, बिस्कुट, मिठाई इत्यादि वस्तुएँ भी नहीं खिलाना। मीठा खाने की इच्छा हो तो मुनक्का या मीठे फल देना।

चेतावनी प्राकृतिक चिकित्सा आरम्भ करने से रोगी के शरीर में से गन्दगी साफ होना शुरू होती है और प्राकृतिक नियमों के पालन करने से जीवन-शक्ति भी प्रबल होने लगती है। घातक अवस्था में भी उभाड़ आ सकते हैं। जैसे कि अधिक तापमान से बुखार, पतले दस्त, उल्टी, खाँसी अथवा फोड़े-फुन्सियों द्वारा रोगी पदार्थ शरीर से निकलना आरम्भ हो सकता है। ऐसी कठिन अवस्था में धैर्य एवं सावधानी रखने की आवश्यकता है। यदि घातक अवस्था का रोगी थोड़े दिन भी पीड़ा सहन कर, जीवित रह सका तो स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त करता है। रोगी से बर्ताव – कभी रोगी के सामने उसकी बिगड़ी हुई अवस्था का वर्णन न करें। साधारणत: देखा गया कि रोगी की सहानुभूति के लिये आने वाले मित्र रोगी के सामने आकर कहते हैं कि बेचारा बहुत दुबला हो गया है, केवल हड्डियों का पिंजरा बचा है, चेहरा कितना पीला पड़ गया है आदि। कुछ लोग यहाँ तक कहने में नहीं हिचकते कि डॉक्टर ने तो असाध्य कह दिया है, ऐसे रोग से स्वस्थ होना असम्भव है, हमारा कोई मित्र रोग से पीड़ित होकर मर गया था आदि । ऐसे सहानुभूति रखने वाले, रोगी के मित्र होते हुए भी शत्रु का काम करते हैं।रोगी सामने खतरे, भय, निराशा चिन्ता विचार प्रकट करने से रोगी की स्थिति अधिक बिगड़ती है और रोगी की मानसिक दुर्बलता एवं निराशा बढ़ने से तुरन्त मृत्यु भी हो सकती है।सदैव रोगी के सामने निम्न रीति से सहानुभूति प्रकट करनी चाहिये। आज तो आप पहले अच्छे दिख रहे है,चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, दुःख के पीछे सुख अवश्य आता है, अभी आप तुरंत स्वस्थ हो जायेंगे, हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं । हम आपकी हर प्रकार की सेवा – सहायता करने के लिये तैयार हैं, घबराने की कोई बात नहीं है इत्यादि, उत्साह, साहस, आशा तथा प्रसन्नता उत्पन्न करने वाली बातें करनी चाहिये।दुर्बल रोगी को क्रोध जल्दी आता इसलिये रोगी की दुःखी अवस्था पर दया करके, सहानुभूति, प्रेम एवं सेवा का बर्ताव घटाना नहीं चाहिये । रोगी के सामने सदा प्रसन्न मुद्रा में रहना चाहिये।


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