अमावस्या – अन्दर में शान्त रहने की कला का नाम है, अन्तर्मौन – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल 01 फरवरी 2022:- आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार उच्चारण करके जाप करने से कई गुणा अधिक पुण्य मौन रहकर हरि का जाप करने से मिलता है। माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रहने का बड़ा महत्व है। व्रत रखने वालों को मौन रहते हुए व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। इस बार मौनी अमावस्या 1 फरवरी को मनाई जाएगी। मौनी अमावस्या के दिन श्रीहरि का पूजन किया जाता है। मौन या शांत रहने का तात्पर्य है कि भक्त बाहरी जीवन से दूर रहकर स्वयं के भीतर क्या चल रहा है उसका आत्ममंथन करे। मन के भीतर जो भी कमियाँ नजर आ रही हैं या जो भी गलतियां समझ ईश्वर की आराधना में लीन होकर अपनी कमियों को दूर करें। मौन का मतलब अपने मन को एकाग्र करना होता है और प्रभु के नाम का स्मरण करना होता है। इससे आपके अंदर पनप रही नकारात्मकता दूर होगी और आध्यात्मिकता का व

योग गुरु अग्रवाल ने अन्तर्मौन की साधना के बारे में बताया संस्कृत में ‘अंत:’ का अर्थ है, आन्तरिक और ‘मौन’ का अर्थ है, शान्ति। अन्दर में शान्त रहने की कला का नाम है, अन्तर्मौन। अन्तर्मौन एक उच्च कोटि की साधना है। इसमें साधक आंतरिक शांति प्राप्त करने के साथ-साथ उस आन्तरिक कोलाहल के प्रति भी सजग हो जाता है जो उस शान्ति की प्राप्ति में बाधक होता है।

दैनिक जीवन में हमारा मस्तिष्क निरंतर बहिर्मुखी रहता है। हम अपने से बाहर की ही चीजों को देखने-सुनने में लगे रहते हैं। अपने अन्दर घटित होने वाली बातों को समझ ही नहीं पाते। अन्तर्मौन का अभ्यास इस स्थिति को उलट देता है। तब हम चाहे थोड़े ही समय के लिए ही सही, अपने मन की क्रियाओं को देख-समझ सकते हैं। अन्तर्मौन उन स्थायी साधनाओं में से एक है जिसका अभ्यास आत्मानुसंधान के लिए तत्पर तथा दृढ़ निश्चय वाला साधक सहज ही चौबीसों घंटे कर सकता है। अपने आंतरिक परिवेश, विचार तथा संवेगात्मक क्रिया-प्रतिक्रियाओं के प्रति सजग रहकर मनुष्य अपने व्यक्तिगत विकास की अधिकतम सीमा तक पहुँच सकता है। इससे वह अपने तार्किक और अतार्किक मन की क्रियाओं को भी समझ लेता है। साथ ही उसके भीतर दूसरे लोगों के सोचने-विचारने तथा अन्य क्रियाकलापों की भी एक वास्तविक समझ विकसित हो जाती है।

अन्तर्मौन की साधना अपने आन्तरिक व्यक्तित्व की स्थायी समझ विकसित करने की दिशा में पहला कदम है। यद्यपि यह अभ्यास प्रतिदिन अधिक-से अधिक एक घण्टे ही किया जाता है, पर अभ्यास के बाद भी इसका प्रभाव बना रहता है और व्यक्ति अपने ‘अव्यक्त व्यक्तित्व’ को स्वतः जानने लगता है। वह यह समझ जाता है कि जीवन की विभिन्न परिस्थतियों के प्रति वह ईमानदारी से कौन-कौन सी प्रतिक्रियायें व्यक्त करता है।

अन्तर्मौन के अभ्यास को अनेक चरणों में बाँटा जा सकता है। इस अभ्यास का पहला चरण है, आस-पास की आवाजों और घटनाओं के प्रति सजग होना। दूसरा चरण है, बाह्य वातावरण के उद्दीपनों से अपने को विरक्त करके मन की कार्यप्रणाली को समझना। मन क्या सोच रहा है, किस प्रकार प्रतिक्रियाएँ कर रहा है? अवचेतन मन से किस तरह के प्रतिबिम्ब आ रहे हैं? तीसरा चरण है, इच्छानुसार विचारों का सर्जन करना। चौथा चरण है, सहज स्वाभाविक विचारों की सजगता और विसर्जन। पाँचवाँ चरण है, सभी विचारों का दमन तथा शून्य की अनुभूति। छठा चरण है, सहज ध्यान।

अन्तर्मौन अपनी सजगता को प्रशिक्षित करने की विधि है। इसके द्वारा व्यक्ति मन की प्रक्रियाओं को समझता तथा उन पर नियंत्रण रखना सीखता है। इसका अभ्यास किसी भी समय इन प्रश्नों पर चिन्तन के साथ किया जा सकता है, ‘मैं क्या सोच रहा हूँ? मेरे मनःक्षेत्र में क्या घट रहा है? दिन में इसका बार बार अभ्यास करने पर साधक को साक्षी-भाव से रहने की स्वाभाविक आदत बन जाती है। तब उसे मैं कौन हूँ, मैं क्या कर रहा हूँ, आदि प्रश्नों के उत्तर स्वतः मिलने लगते हैं। इस अभ्यास में साधक अपने आन्तरिक कोलाहल के प्रति सजग हो कर नीरवता की उस वाणी को, ध्वनि को जानने-समझने लगता है जो शाश्वत एवं सनातन तत्त्व के गीत गाती है।

प्रथम चरण- बाह्य उद्दीपनों के प्रति सजगता

द्वितीय चरण-सहज विचार प्रक्रिया के प्रति सजगता

तृतीय चरण- इच्छानुसार विचारों का सर्जन और विसर्जन

चतुर्थ चरण-सहज विचारों के प्रति सजगता और उनका विसर्जन

पंचम चरण- आन्तरिक आकाश के प्रति सजगता


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