बसंत पंचमी – भारतीय संस्कृति के सभी पर्व योग की शिक्षा के साथ अनुशासन , स्वच्छता , आत्मीयता, संकल्पों को गति, दिनचर्या में परिवर्तन एवं शुभ भाव में रहने का संदेश देते है- योग गुरु महेश अग्रवाल…..बसंत पंचमी महोत्सव धूमधाम से मनाया गया.

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भोपाल 05 फरवरी 2022:- आदर्श योग आध्यात्मिक चकेन्द्र के गुरु, योग साधक एवं प्रकृति प्रेमीजनों द्वारा बसंत पंचमी महोत्सव कलिया सोत डेम स्थित प्राचीन विश्वनाथ मंदिर पर धूमधाम से सामूहिक योग अभ्यास करते हुए मनाया गया | समय सुबह 8 से 9 बजे तक साधकों ने सभी के लिए स्वस्थ एवं सुखी जीवन के लिए प्रार्थना की | सभी अच्छी शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्राप्त करें | प्रमुख रुप से योगाचार्य महेश अग्रवाल, डॉ. रजत शर्मा, पुजारी महंत सुनीलसिंह , डॉ. नरेंद्र भार्गव मधुमेह मुक्त भारत अभियान के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रचारक , डॉ. सुधीर गर्ग , बृजेश चतुर्वेदी, एस के एस रघुवंशी, राकेश त्रिपाठी, अशोक चौरसिया, प्रधुमन पटेल, उपस्थित रहें | इस अवसर पर सभी को विद्या की देवी सरस्वती की प्रतिमा भेट की गई |योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि नई विद्या सीखने की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा दिन वसंत पंचमी है | देवी सरस्वती विद्या की देवी है और विद्या को सभी प्रकार के धन में सर्वश्रेष्ठ माना गया है | विद्या से ही सभी तरह की सुख – सुविधा और धन -संपत्ति प्राप्त की जा सकती है | योग करने से आत्मविश्वास बढ़ता है एवं जीवन में अनुशासन व्यक्ति को परिवार समाज एवं देश के लिए सेवा के लिए तैयार करता है योग और शारीरिक स्वास्थ्य विज्ञान

के बारे में योग गुरु अग्रवाल ने बताया योग का मनोदैहिक पक्ष अति महत्त्वपूर्ण है। यह प्राचीन विज्ञान मानव को मात्र एक जैव इकाई नहीं मानता। प्राचीन चिन्तकों ने मन के कार्यों और उसकी आन्तरिक संरचना पर अधिक ध्यान दिया है। आज, मनोविज्ञान ने भी अपने शोध क्षेत्र में इस मौलिक पक्ष को स्वीकार किया है और शरीर एवं मन के अन्तर्सम्बन्धों को अधिक से अधिक समझ रहा है।अत: यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि किसी भी कार्य क्षेत्र में मनुष्य की प्रगति के लिए न केवल उसको शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए, वरन् उसका मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी अनिवार्य है। योग के क्षेत्र में मानव की उच्चतम प्रगति के लिए उसके स्वस्थ और समन्वित व्यक्तित्व के विकास को योग ने सदा ही अपना लक्ष्य माना है। अतः यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं कि महर्षि पतञ्जलि अपनी अष्टांग-योग-पद्धति में दोनों पक्षों-बहिरंग और अन्तरंग को योग की पूर्णता के लिए आवश्यक मानते हैं।प्रथम कोटि में आते हैं-यम, नियम, आसन और प्राणायाम तथा द्वितीय कोटि में आते हैं-प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। प्रथम चार शारीरिक स्वास्थ्य के मौलिक तत्त्व हैं। यम, नियम, आसन और प्राणायाम सबके शारीरिक स्वास्थ्य के चार आधार स्तम्भ हैं। फिर हठयोग छः शुद्धिकारक तकनीकों, नेति, धौति, बस्ति, नौलि, त्राटक और कपालभाति को षट्कर्म के रूप में रखता है। ये सभी शारीरिक स्वास्थ्य विज्ञान की महत्त्वपूर्ण तकनीकें हैं। प्राचीन योग विज्ञान ने मेरुरज्जु और मस्तिष्क को केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के अवयव के रूप में माना है तथा उनको स्वस्थ रखने पर बल दिया है। योग में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की समुचित क्रियाशीलता और शरीर की रासायनिक प्रतिक्रियाओं को भी महत्त्वपूर्ण माना गया है। अतएव साधक प्रसन्नता से अपने जीवन के स्वैच्छिक नियमन के लिए तैयार हो जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उस समय वह अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को अस्वीकार कर अपनी सहज प्रवृत्तियों का दमन करता है. अपितु वह एक उच्च प्रयोजन हेतु अपनी इन सहज प्रवृत्तियों के रूपान्तरण के लिए सतत् परिश्रमपूर्ण प्रयास करता है।

अतः शरीर को स्वस्थ एवं चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए आसन, प्राणायाम और मुद्रा मुख्य विधियाँ हैं। ये स्वास्थ्य मुख्य आधार हैं, क्योंकि योग में लम्बे काल तक एक ही स्थिति में बैठकर भी अभ्यास करना होता है। आसन केवल शारीरिक व्यायाम नहीं हैं, बल्कि विभिन्न शारीरिक स्थितियाँ हैं जो मांसपेशियों को प्रभावित करती हैं। योग में पेशीय बल का अधिक महत्त्व नहीं है और शरीर को केवल एक यंत्र माना गया है।योगाभ्यास में थकावट, क्लान्ति, आलस्य आदि से दूर रहा जाता है। प्रयास तो यही रहता है कि मन सदा प्रसन्न रहे। आसन वह तकनीक है जिसका प्रतिदिन अभ्यास कर समस्त मानव तन्त्र को स्वास्थ्य एवं पुनर्जीवन प्रदान किया जा सकता है।

केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र समस्त ऊर्जा का भंडार है। शरीर में कई अप्रकट केन्द्र भी हैं जो निष्क्रिय हैं और उन्हें सक्रिय करने की आवश्यकता है। आसन इसमें कुछ हद तक सहायक होते हैं। हालाँकि कुल आसनों की संख्या चौरासी हैं, पर उनमें कुछ ही मुख्य हैं। पीछे झुकने वाले आसन, जैसे- भुजंगासन, शलभासन और धनुरासन; आगे झुकने वाले आसन, जैसे-हलासन और पश्चिमोत्तानासन, मुड़ने वाले आसन, जैसे-अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन; सिर के बल किये जाने वाले आसन, जैसे- सर्वांगासन, शीर्षासन, ये सभी मेरुदण्ड को लचीला बनाए रखते हैं। यौगिक शरीर रचना शास्त्र के अनुसार प्रमुख नाड़ी सुषुम्ना है, जो मेरुदण्ड से होकर निकलती है। चौदह प्रमुख नाड़ियों में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना मुख्य तीन नाड़ियाँ हैं। आसन मेरुदण्ड को लचीला और स्वस्थ रखते हैं जिससे साधक अतीन्द्रिय पथ के माध्यम से अपनी संचित ऊर्जा को उन्मुक्त कर सकते हैं।ऊपर वर्णित षट्कर्म केवल आन्तरिक अंगों को शुद्ध रखने में सहायक होते हैं। शरीर में केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र ही महत्त्वपूर्ण नहीं है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ, जैसे-पीनियल, पीयूष, चुल्लिका, उप-चुल्लिका, थाइमस आदि भी हैं। ये हारमोन स्रावित करती हैं जो सीधे रक्त प्रवाह में जाते हैं। अत: यह आवश्यक है कि इन्हें समुचित रूप से क्रियाशील रखा जाय, क्योंकि ये न केवल स्थूल शरीर-संरचना के विकास में योगदान देती हैं, वरन् सूक्ष्म रूप से व्यक्तित्व संरचना को भी प्रभावित करती हैं। इस प्रकार योग शारीरिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है। मुद्राएँ स्वाभाविक अभ्यास हैं जो ग्रन्थियों और आन्तरिक अंगों को पुनः पुनर्जीवन प्रदान करते हैं। मुद्राओं के कुछ उदाहरण हैं- योगमुद्रा, महामुद्रा, महाभेद मुद्रा आदि। ये मुद्राएँ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यक विधियाँ हैं।तीसरी महत्त्वपूर्ण विधि है, प्राणायामइसके द्विपक्षीय प्रभाव होते हैं। यह शरीर तन्त्र को शुद्ध एवं स्वस्थ रखने में सहायक होता है तथा मनुष्य के मनो-भावनात्मक अस्तित्व को नियन्त्रित, व्यवस्थित और निर्देशित करता है। प्राणायाम का अर्थ है नियन्त्रित लयबद्ध व्यवस्थित श्वसन। प्राण शरीर में सार्वभौम ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की स्थूल अभिव्यक्ति है। ब्रह्माण्डीय ऊर्जा समस्त सचेतन अस्तित्व को जीवन प्रदान करती है। प्राणायाम इसी जीवनी शक्ति के संरक्षण एवं समुचित वितरण की तकनीक है।

श्वास लेते समय श्वसन तन्त्र ऑक्सीजन लेता है और श्वास छोड़ते समय कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ता है। तन्त्र के ऑक्सीकरण से शरीर शुद्ध, हल्का और सक्रिय बनता है। जब तक श्वसन के इस विज्ञान को समुचित रूप से समझकर सही ढंग से इसका अभ्यास नहीं किया जाएगा तब तक श्वसन में असन्तुलन की सम्भावना रहेगी जिसकी मानसिक और भावनात्मक परिणति द्वन्द्वों एवं आवेगों में हो सकती है। असंख्य सुख-दुःख से भरा संसार हम पर हिंसक प्रभाव डालता है, और हम जीवन में अक्सर यथार्थ समाधान पाने में असमर्थ हो जाते हैं। मनुष्य पर प्राण के प्रभाव और मन एवं शरीर के सह-सम्बन्ध का सम्पूर्ण ज्ञान योग द्वारा होता है। अत: योग के पास शारीरिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में देने के लिए काफी कुछ है। तथा उसे वहाँ एक प्रभावशाली एवं वैज्ञानिक भूमिका निभानी है।


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