भिलाईनगर । छत्तीसगढ़ प्रांत बजरंग दल के संयोजक रतन यादव ने कर्नाटक के शिवमोगा में बजरंग दल के हर्षा की हत्या के मामले में आक्रोश भरे लहजे में कहा कि, अब समय आ गया है कि, जेहादी मानसिकता के लोगों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जाये। रजन यादव ने कहा कि, कर्नाटक के शिवमोगा में 20 फरवरी को हिन्दू हर्षा की निर्मम हत्या एक सम्प्रदाय की कट्टरपंथी विचारधारा पर सवालिया निशान खड़ी करती है। हर्षा की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने हिजाब को लेकर फ़ेसबुक में पोस्ट किया था।
देश मे लोकतंत्र है, सभी को अपनी बात कहने का हक है, उसी में हर्षा को भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार था लेकिन कट्टरपंथियों द्वारा की गई उनकी हत्या देश मे बिगड़ते साम्प्रदायिक माहौल और मुस्लिम कट्टरपंथ का सबसे बड़ा उदाहरण है। हर्षा की मृत्यु पर पसरा सन्नाटा भी यह बताने के लिए काफी है कि देश मे दोहरे चरित्र सफेद कॉलर कट्टरपंथ भी चरम पर है। सोचिए अगर इसी तरह की मुस्लिम की हत्या कर दी गई होती तो अब तक पूरा इस्लाम खतरे में आ जाता, धरने चालू हो जाते, प्रदर्शन हो रहे होते, सफेद कॉलर कट्टरपंथी सोशल मीडिया में देश को बदनाम करने वाले ट्वीट डाल रहे होते लेकिन हर्षा की हत्या पर चारों तरफ चुप्पी है, सन्नाटा है।
क्यों? क्योंकि वो एक हिन्दू थे और मारने वाले मुसलमान। क्या इस देश मे अपराधियों की जाति और धर्म देखकर विरोध करने, सजा मांगने की परंपरा शुरू हो चुकी है? 2014 मे केंद्र में क्चछ्वक्क सरकार आने के बाद से ही हिन्दुस्तान में मुस्लिम वर्ग के साथ दूसरे वर्ग की छोटी मारपीट से लेकर, 3 तलाक, ष्ट्र्र, हृक्रष्ट और अब हिजाब जैसे मुद्दों के नाम पर देश में जिस तरह की हिंसक राजनीति हो रही है वह आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरे की घण्टी है।
देश में साम्प्रदायिक आधार पर लगातार हो रही हत्याएं न केवल कानून व्यवस्था बल्कि आम लोगों के लिए भी चिन्ता का विषय है। कमलेश तिवारी, अंकित शर्मा,दिलबर नेगी किशन भारद्वाज, चन्दन गुप्ता,और अब हर्षा…
यह हिन्दू लिस्ट काफ़ी लम्बी है जब साम्प्रदायिक कट्टरपंथियों ने निर्ममता से इनकी हत्या कर दी, लेकिन सरकार कोई भी कड़ा सन्देश देने में नाकाम रही,नहीं तो किसी भी हर्षा की हत्या इस तरह नहीं होती। कट्टरपंथियों के हौसले इतने बुलन्द हैं कि हर्षा की न सिर्फ हत्या की बल्कि वीडियो बनाकर वायरल भी कर दिया।
ये विडम्बना ही है कि इस मामले में अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाले हमारे देश के बुद्धिजीवी, एक खास विचाराधारा के लोग और पत्रकार पूरी तरह खामोश हैं. क्योंकि शायद उनके लिए ये हत्या, उतनी निर्मम नहीं, जितना निर्मम अखलाक की थी. शायद उन्हें ये गुड मॉब लिंचिंग लगती है।