मदनवाड़ा नक्सल हमले की जाँच रिपोर्ट विधानसभा में पेश, जाँच आयोग ने तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता को ठहराया दोषी…. तत्कालीन एसपी बी के चौबे सहित 29 जवान हुए थे शहीद

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रायपुर। सीएम भूपेश बघेल ने राजनांदगांव के मदनवाड़ा में हुए नक्सली हमले की न्यायिक जांच रिपोर्ट आज विधानसभा में पेश की. यह नक्सली हमला 12 जुलाई 2009 को मदनवाड़ा कोरकोट्टी और पुलिस थाना मानपुर में हुआ था. हमले में तत्कालीन एसपी वीके चौबे समेत 29 जवान शहीद हो गए थे. मदनवाड़ा जांच आयोग की रिपोर्ट में तत्कालीन एडीजी मुकेश गुप्ता को दोषी ठहराया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सली हमले के दौरान तत्कालीन दुर्ग आईजी मुकेश गुप्ता की लापरवाही एवं असावधानी दिखती है. मुकेश गुप्ता क्षेत्र में सुबह 9:30 से शाम 5:15 बजे तक रहे और उनकी मौजूदगी में ही यह जनहानि हुई थी.


जस्टिस एसएम श्रीवास्तव ने तत्कालीन आईजी को घटना के लिए ठहराया जिम्मेदार
मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ पर विशेष जांच आयोग के चेयरमैन जस्टिस एसएम श्रीवास्तव ने तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने माना कि गुप्ता ने लड़ाई के मैदान में अपनाए जाने वाले गाइड लाइनों तथा नियमों के विरुद्ध काम किया. यही नहीं शहीद एसपी चौबे को बगैर किसी सुरक्षा कवच के उन्हें आगे बढऩे का आदेश दिया. खुद एंटी लैंड माइन व्हीकल में बंद रहे या अपनी खुद की कार में बैठे रहे.


मुठभेड़ की उस परिस्थिति में सीआरपीएफ और एसटीएफ की लेनी चाहिए थी मदद : रिपोर्ट
जस्टिस एसएम श्रीवास्तव ने 12 जुलाई 2009 को हुई मदनवाड़ा नक्सली मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट में घटनास्थल पर मौजूद रहे पुलिसकर्मियों के बयानों का सूक्ष्मता से आंकलन करते हुए अपनी यह रिपोर्ट पेश की है. उन्होंने पाया कि आईजी मुकेश गुप्ता को यह स्पष्ट रूप से पता था कि भारी संख्या में नक्सली अपनी पोजिशन ले चुके हैं. वे जंगल में छुपे हुए हैं. रोड के दोनों साइड से नक्सली फायर कर रहे हैं. ऐसी परिस्थितियों में फोर्स को पीछे से ताकत देने के बजाय उन्हें सीआरपीएफ और एसटीएफ की मदद लेनी चाहिए थी. ड्यूटी पर रहने वाले कमांडर तथा उच्च अधिकारी को यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि वे इस तरह की कार्यवाही न करें जो कि उनके मातहतों को खतरनाक परिस्थितियों में डाल दे.


बिना उचित प्रक्रिया और एसआईबी की खुफिया रिपोर्ट के स्थापित किया गया था कैंप
रिपोर्ट में कहा गया है कि मदनवाड़ा में बिना उचित प्रक्रियाओं के तथा बगैर राज्य सरकार के अनुमोदन तथा एसआईबी की खुफिया रिपोर्टों के बावजूद पुलिस कैंप स्थापित किया गया. उस कैंप में कोई भी वॉच टावर नहीं था. कोई भी अधोसंरचनाएं नहीं थीं. वहां पर पुलिस वालों के रहने का प्रबंध नहीं था. मदनवाड़ा के सीएएफ कर्मचारियों के लिए कोई टॉयलेट भी नहीं था. गवाह के साक्ष्य में यह बात सामने आई कि इस कैंप का उद्घाटन भी बेतरतीब तरीके से आईजी जोन ने सिर्फ एक नारियल फोड़ कर किया था.


घटनास्थल से दूर नाका बैरियर के पास मौजूद थे तत्कालीन आईजी
आयोग ने आईजी जोन मुकेश गुप्ता के घटनास्थल पर मौजूद रहने को संदेहास्पद माना. वहीं एसआई किरीतराम सिन्हा तथा एंटी लैंड माइन व्हीकल के ड्राइवर केदारनाथ के हवाले से माना कि वे मुठभेड़ के दिन घटनास्थल से कुछ दूरी पर नाका बैरियर के पास मौजूद थे. अगर वे घटनास्थल पर आए भी होंगे तो काफी देर से आए होंगे, जब सीआरपीएफ वहां पहुंच चुकी थी. घटनास्थल पर बने रहने की कहानी तथा नक्सलियों पर फायरिंग करने की कहानी यह उन्होंने खुद के द्वारा रची. यहां यह भी नोट करना आवश्यक है कि पूरी कहानी बनाई गई थी. इसी कारण यह मामला कोर्ट में सभी को बरी करने के बाद खत्म हो गया था.


तत्कालीन एडीजी का जांच रिपोर्ट पर अहम बयान
जांच रिपोर्ट में तत्कालीन एडीजी नक्सल ऑपरेशन गिरधारी नायक के बयान का भी जिक्र है. इस बयान में गिरधारी नायक ने कहा है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने युद्ध क्षेत्र के नियमों का पालन नहीं किया. इसकी वजह से 25 पुलिसकर्मियों की घटनास्थल पर शहादत हो गई. गिरधारी नायक ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया है कि उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में आईजी मुकेश गुप्ता को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की अनुशंसा नहीं की थी. जबकि उन्होंने सलाह दी थी कि जब एक भी नक्सली नहीं मारा गया, एक भी शस्त्र ढूंढा नहीं गया तो ऐसे में पुलिस कर्मियों को पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए.


जानिये, क्या है मदनवाड़ा कांड?
12 जुलाई 2009 की सुबह राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा गांव के पास नक्सलियों ने पुलिस टीम पर घात लगाकर हमला कर दिया था. इसमें तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे. इनमें से 25 जवान कोरोकोटी के जंगल में, दो जवान मदनवाडा मे शहीद हो गए थे. वहीं शहीदों के शव को लाते वक्त नक्सलियों ने एंबुश लगाकर 2 जवानों को भी शहीद कर दिया था. यह पहला मौका था जब किसी जिले के एसपी नक्सलियों के हमले में शहीद हुए थे.


आयोग ने इन 9 बिंदुओं पर जांच पूरी की है
यह घटना किन परिस्थितियों में हुई थी?
क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था?
क्या सुरक्षा की निर्धारित प्रक्रियाओं और निर्देशों का पालन किया गया था?
किन परिस्थितियों में एसपी और अन्य सुरक्षा बलों को उस अभियान में भेजा गया?
एसपी और जवानों के एंबुश में फंसने पर क्या अतिरिक्त बल उपलब्ध कराया गया, अगर हां तो स्पष्ट करना है?
मुठभेड़ में माओवादियों को हुए नुकसान और उनके मरने और घायल होने की जांच?
सुरक्षाबलों के जवान किन परिस्थितियों में शहीद हुए अथवा घायल हुए?
घटना से पहले, उसके दौरान और बाद के मुद्दे जो उससे संबंधित हो?
क्या राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच समुचित समन्वय रहा है?


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