दुर्ग। सही मायनों में यह भगीरथ प्रयास है। भगीरथ प्रयास इसलिए क्योंकि कुछ किमी तक नालों के पैच का जीर्णोद्धार ही नहीं किया जा रहा है अपितु 732 किमी में फैले 196 नालों के जीर्णोद्धार के लिए काम हो रहा है। यह कितना महती काम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका कैचमेंट एरिया 248 गांवों के एक लाख 67 हजार स्क्वायर मीटर तक फैला है। बारिश शुरू होने से पहले इन नालों में लगभग प्रगतिरत साढ़े तीन हजार कामों को पूरा करने की महती जिम्मेदारी है क्योंकि बारिश शुरू होते ही नालों का काम प्रभावित हो जाएगा और असली लाभ भी बारिश का ही उठाना है ताकि एक-एक बूंद हम सुरक्षित कर सकें और धरती के भीतर का जलस्तर बढ़ जाए।
कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने आज जिले में चल रहे नरवा कार्यों का निरीक्षण किया। इसके लिए वे गजरा नाला जीर्णोद्धार कार्य को देखने पहुंचे। रवेली से आरंभ हुआ यह नाला तर्रा, बटंग होते हुए कुरुदडीह तक 27 किमी की लंबाई में फैला हुआ है। वर्ष 2002 में इसका जीर्णोद्धार उस समय के पीएचई मंत्री और अब प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कराया था। समय के साथ गजरा नाला को भी जीर्णोद्धार की जरूरत पड़ी है और अब यहां अनेक तरह के स्ट्रक्चर बनाये जा रहे हैं। कलेक्टर ने अपने भ्रमण की शुरूआत रवेली से की। जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन ने बताया कि नरवा प्रोजेक्ट के कामों को तेजी से पूरा किये जाने के निर्देश दिये गये हैं। इसके लिए मटेरियल आदि की सप्लाई भी कर दी गई है और डीएमएफ तथा मनरेगा के समन्वय से यह कार्य हो रहा है। कलेक्टर ने बटंग में मजदूरों से चर्चा की।
मजदूरों ने बताया कि यह जलसंरक्षण का काम है और हमारे काम का बड़ा लाभ हमें इस बारिश में दिखेगा जब बारिश की एक-एक बूंद हम सहेज पाएंगे। कलेक्टर ने नालों के किनारे बसे सभी गांवों का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि जहां स्ट्रक्चर के जीर्णोद्धार की जरूरत है वहां स्ट्रक्चर ठीक करें। जहां डिसेल्टिंग की जरूरत है वहां डिसेल्टिंग करें। उन्होंने कहा कि काम युद्धस्तर पर किया जाना पहली प्राथमिकता होगी। गजरा नाला के किनारे बसे ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 2002 में जब इसका जीर्णोद्धार हुआ, उसके बाद तेजी से जलस्तर बढ़ा। समय के साथ इसमें गाद भी जमा होती गई है। अब डिसेल्टिंग किये जाने से इसका लाभ होगा। उल्लेखनीय है कि प्रथम चरण में जिन नालों में जीर्णोद्धार का कार्य हुआ, उनके समीपस्थ कृषि की स्थिति में सुखद परिवर्तन हुआ है और भूमिगत जलस्तर बढऩे से किसान दूसरी फसल भी ले पा रहे हैं।