भोपाल। आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि वनों के बिना मानव जीवन ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों के जीवन की भी कल्पना नहीं की जा सकती है इसलिए वनों का संरक्षण बेहद जरूरी है। वनों के महत्व को बताने और इसके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से 21 मार्च का दिन दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाया जाता है। वनों की अंधाधुंध कटाई की वजह से पृथ्वी पर अब वन और उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं के घर सिमटते जा रहे हैं। वनों में पाए जाने वाले पेड़-पौधे ही पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मुख्य स्त्रोत है। ऑक्सीजन की कमी मानव जीवन के लिए खतरे के बराबर है तो इस दिवस को मनाने का खास उद्देश्य लोगों को इस बात से अवगत कराना है। इस साल 2022 के विश्व वन दिवस की थीम है वन और सतत उत्पादन और खपत।


योग गुरु अग्रवाल ने इस अवसर पर बताया हमारे देश की समग्र सभ्यता, संस्कृति, धर्म एवं अध्यात्म-दर्शन का विकास वनों में वृक्षों, के नीचे ही हुआ है। हम सब वैदिक सभ्यता के अनुयायी हैं, और हमारा धर्म भी वैदिक ही है। इस वैदिक धर्म एवं वैदिक सभ्यता के प्रणेता ऋषि मुनियों ने वनों के बीच वृक्षों के नीचे बैठकर ही चिन्तन, मनन एवं ज्ञान ग्रहण किया था। वैदिक ज्ञान के वांग्मय में आरण्यक ग्रन्थों का विशेष स्थान है। ग्रन्थों का यह आरण्यक नाम ही इस बात का द्योतक है कि इनका प्रणयन वनों में ही किया गया है। अरण्य का अर्थ वन ही होता है।


जिन वृक्षों के नीचे बैठकर ऋषियों ने ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति की और हमारे सामाजिक जीवन की रूपरेखा बनाई, वन के बीच बने आश्रमों के जिन वृक्षों के नीचे गुरुकुलों में राष्ट्र के कर्णधारों, राजाओं, मंत्रियों , राज गुरुओं, सेनापतियों, राजनीतिज्ञों, विद्वानों, कवियों, दार्शनिकों एवं कलाकारों का निर्माण किया गया, जो वृक्ष उन गुरुकुलों की भोजन व्यवस्था, छाया तथा निर्माण सामग्री के साधक बने, उन वृक्षों के महत्व का विस्मरण कर देना हम भारत-वासियों के लिये कृतघ्नता के समान पाप है। वृक्षों के पूजन एवं आरोपण की जो पुण्य परम्परा भारतीय धर्म विधान में पाई जाती है वह वृक्षों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति ही है। इस परम्परा को चलाने में ऋषियों का उद्देश्य यह रहा है कि जनसाधारण धर्माचार के माध्यम से वृक्षों के संपर्क में आता रहे जिससे उनके लाभ उनकी उपयोगिता, उनके महत्व एवं उनके उपकार अवगत रहे। उनकी रक्षा करे और उनके नष्ट करने को पाप समझता रहे।
आध्यात्मिक उन्नति के लिये मनुष्य का परोपकारी होना आवश्यक है। मनुष्य का स्वयं परोपकारी होना और किसी परोपकारी के प्रति आदर भाव रखना, श्रद्धा करना अथवा उसकी रक्षा करना भी परोपकार ही है और यदि विचारपूर्वक देखा जावे तो पता चलेगा कि किसी की सेवा करना, भला अथवा सहायता करना एकधा परोपकार करना है, किन्तु किसी परोपकारी, समाज सेवी, दानी, दयालु आदि परमार्थी व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा रखना, आपत्ति के समय उनकी रक्षा में सहायक होना, उनके पुण्य कार्यों में सहयोग करना द्विधा परोपकार है। एक तो व्यक्ति का पोषण, परिवर्धन, रक्षा करना, परोक्ष रूप में उन सब लोगों की सेवा सहायता में मूल परोपकारी के माध्यम से भागीदार बनना है ।
पूर्वकाल में गुरु-आश्रम तथा गुरुकुल वन वृक्षों के बीच ही स्थापित किये जाते थे। विद्यार्थी स्वयं अपने हाथों से वृक्षों को लगाते तथा सींचते थे। उन्हीं के नीचे बैठकर पढ़ते तथा उन्हीं की छाया में शयन भी करते थे। ऐसे नियम का कारण यही था कि जहाँ इस प्रकार वे प्रकृति के संसर्ग में रहकर मन, बुद्धि तथा आत्मा से शुद्ध रहते थे वहाँ शरीर से स्वस्थ भी रहते थे। वृक्ष साधकों की आध्यात्मिक भावनाएँ जगाने, बढ़ाने तथा स्थिर रखने में स्वाभाविक रूप से सहायक होते थे।यही कारण है कि उन – दिन वृक्षों के बीच स्थापित गुरुकुलों से पढ़कर निकलने वाले स्नातक एवं आचार्य बड़े ही स्वस्थ सुन्दर, सबल, विद्वान तथा चरित्रवान होते थे। अरण्य विद्यालयों में शिक्षित एवं दीक्षित विद्यार्थी काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि किसी प्रकार के विचारों से आजीवन परास्त न होते थे। वृक्षों का यह उपयोगी आध्यात्मिक महत्व आज भी कम नहीं है। उनके उन दिव्य गुणों में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है।
वन मानव जाति के लिए एक वरदान है। वन प्रकृति का एक सुंदर सृजन हैं। भारत को विशेष रूप से कुछ सुंदर जंगलों का आशीष मिला है जो पक्षियों और जानवरों की कई दुर्लभ प्रजातियों के लिए घर हैं। वनों के महत्व को पहचाना जाना चाहिए और सरकार को वनों की कटाई के मुद्दे पर नियंत्रण के लिए उपाय करना चाहिए। पेड़ लगाने के बराबर संसार में कोई पुण्य कार्य नहीं है, क्योंकि पेड़ से अनेकों जीवो का उद्धार होता है, दुश्मन को भी वह उतना ही लाभ पहुँचाते है। वन पर्यावरण का एक अनिवार्य हिस्सा है। हालांकि दुर्भाग्य से मनुष्य विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पेड़ों को काट रहा है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है। पेड़ों और जंगलों को बचाने की आवश्यकता को और अधिक गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस प्रकार मानव जाति के अस्तित्व के लिए वन महत्वपूर्ण हैं। ताजा हवा से लेकर लकड़ी तक जिसका इस्तेमाल हम सोने के लिए बिस्तर के रूप में करते हैं – यह सब कुछ जंगलों से प्राप्त होता है। इसलिए मानव को रोगों से, प्रदूषण से बचाने के लिए पेड़ों की सख्या बढ़ानी चाहिए। हमारी सरकार को भी वनों की सुरक्षा करनी चाहिए और उनकी वृद्धि के लिए नए पेड़ लगाने चाहिए। जीव जगत की वृद्धि के साथ पेड़ों की भी वृद्धि होनी चाहिए।