उर्दू पत्रकारिता के 200 साल मुकम्मल होने के अवसर जश्न का एहतमाम, प्रतिभागियों ने उर्दू की बका़ और प्रचार-प्रसार और मसाएल पर पूरे भारत में आंदोलन चलाने की अपील

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भोपाल। 27 मार्च 2022 को उर्दू पत्रकारिता का 200 साल पूरा होने के अवसर पर बेनज़ीर अंसार एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा हमीद मंजिल, सदर मंजिल के पास भोपाल में जश्न उर्दू पत्रकारिता का आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध लेखक और बुद्धिजीवी प्रो. विजय बहादुर सिंह साहब ने की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो विजय बहादुर सिंह साहब ने उर्दू पत्रकारिता के बारे में लोगों में फैली गलतफहमियों (भ्रांतियों) पर चर्चा करते हुए कहा कि उर्दू की तरक्की में मुल्क के तमाम लोगों ने अनगिनत सेवाएं प्रदान कीं हैं, लेकिन आज उर्दू भाषा को एक वर्ग की भाषा और सभ्यता को विशेष वर्ग की भाषा और सभ्यता कहकर उसकी उपेक्षा की जा रही है जिसके खिलाफ हमें एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए।


विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेने वाले वरिष्ठ उर्दू पत्रकार और कवि श्री चंद्र भान ख्याल ने उर्दू पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं पर बात की और उर्दू के महत्व पर प्रकाश डाला। उर्दू पत्रकारिता की 200 साला इतिहास के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप सरसरी तौर पर उर्दू पत्रकारिता के इतिहास पर प्रकाश डालें तो हमारे सामने शहादतों और बलिदान के कई दृश्य सामने आ जाते हैं। उर्दू पत्रकारिता का इतिहास ऐसे अनगिनत महानायकों, वीरों, मुजाहिदीन, बे-बाक पत्रकारों की उपलब्धियों और बलिदानों से भरा पड़ा है। उर्दू पत्रकारिता किरदार आनदोलन स्वतंत्रता संग्राम में ऐसा था कि एक तरफ तमाम मुजाहिदीन आजादी को रखा जाए और दूसरी तरफ उर्दू सहाफत को रखा जाए तो उर्दू सहाफत का पलड़ा भारी होगा। केवल उर्दू पत्रकारिता ही थी जिसके माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों में उत्साह पैदा किया गया और देश की स्वतंत्रता के बाद भारत वासियों में भाइचारा को बढ़ाने, एकजुट करने, शांति स्थापित करने और देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


वक्ता के रूप में भाग लेने वाले आरिफ अजीज, जिन्होंने एक साहब ”उर्दू पत्रकारिता के मुद्दों” पर बात करते हुए उर्दू के साथ हो रहे अन्याय पर चर्चा की। अपने संबोधन में उन्होंने उर्दू के विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला। अजीज ने कहा कि आज सरकारें उर्दू के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपना रही हैं और उर्दूदां, उर्दू वाले ऐसे गैरजिम्मेदार फैसलों और सरकारों के बयानों के खिलाफ आवाज नहीं रहे उठा हैं। उन्होंने कहा कि जब तक हम सरकारों के इन गैर जिम्मेदाराना फैसलों के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे, उर्दू के साथ ज़ुल्म व जियादती होती रहेगी।


प्रो. एम. नोमान ने ”उर्दू पत्रकारिता का इतिहास और गैर-मुसलमानों की भूमिका” विषय पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज सरकारों ने व्यवस्थित तरीके से सरकारी संस्थानों और सरकारी कार्यालयों से उर्दू को हटाना शुरू कर दिया है। कहीं उर्दू को मुगलों की जबान कहा जा रहा है तो कहीं उर्दू को मुसलमानों की भाषा बताई जा रही है। और सरकारी तौर पर ह रवह काम किया जा रहा है जिससे उर्दू भाषा खत्म हो जाए, जो असंभव है। हकीकत यह है कि उर्दू भारत की भाषा है। प्रारंभिक काल में सभी वर्गों, संप्रदायों और क्षेत्रों के लोगों ने उर्दू भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उर्दू की प्रचार-प्रसार में भारत की विभिन्न बोलियों, जबानों ने नुमायां हिस्सा लिया और उर्दू भाषा को संवारने और परवान चढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।


डॉ. मेहताब आलम साहब ”उर्दू इलेक्ट्रॉनिक मीडिया” उर्दू पत्रकारिता पर बोलते हुए, अगली पीढ़ी, नई नस्ल की उर्दू के अस्तित्व और प्रचार-प्रसार के लिए किया रणनीति होनी चाहिए इसके बारे में बात की। उन्होंने कहा कि उर्दू के अस्तित्व व प्रचार-परसार के महत्वपूर्ण है कि छात्र उर्दू पत्रकारिता में उचित शिक्षा प्राप्त करे और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता में सक्रिय हों, इसके लिए छात्रों को पत्रकारिता का पूरा ज्ञान होना चाहिए जिसके बिना पत्रकारिता का हक़ अदा नहीं किया जा सकता है। नेजा़मत के कर्तव्यों को बद्र वस्ती साहब ने अपनी अभिव्यक्ति की शैली और कविता के माध्यम सेे बेहतरीन तरीके से निभाया।


इस अवसर पर सानी टीपू सुल्तान शहीद शेख बुखारी उर्फ शेख भिकारी पर संकलित पुस्तक का विमोचन किया गया। शैख बुखारी वह जांबाज मुजाहिद थे जिन्होंने 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में ईस्ट इण्डिया कमपनी की फोजों के पसीने छुड़ा दिये थे। वे अंतिम क्षण तक ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ते रहे। शेख बुखारी को अंतत: एक युद्ध में गिरफतार कर लिया गया और 8 जनवरी, 1858 को चाटूपालू घाटी (जा झारखंड में है) बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गई। आज भी वह बरगद का पेड़ मोजूद है जिसे सिपाही बरगद के नाम से जाना जाता है। ऐसे वीर योद्धा को पूरी तरह से भुला दिया गया है। जिन पर एम.डब्ल्यू अंसारी साहब एक किताब संकलित कराए हैं। इस पुस्तक को संकलित करने का उद्देश्य उन सभी दिग्गज स्वतंत्रता सेनानियों को सामने लाना है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है, इसके द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना और लोगों में देशभक्ति की भावना जगाना है।


वाजेह रहे कि उर्दू की समस्याएं बे शुमार हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में, देश के सभी राज्यों में उर्दू के साथ अन्याय हो रहा है। कहीं उर्दू का बोर्ड नहीं है तो कहीं उर्दू में निसाब की किताबें मुहैया नहीं कराई जा रही हैं तो कहीं उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है तो कहीं उर्दू शिक्षकों को वेतन नहीं दिया जा रहा है। उर्दू संस्थानों को फण्ड नहीं दिया जा रहा है।
उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्षीय कार्यक्रम में सरकार से मांग की गई कि:
1. मध्य प्रदेश में अंजुमन-ए-तरक्की उर्दू को सक्रिय किया जाए या इस जैसी किसी उर्दू संगठन के लिए मिम्बर साजी की जाए।
2. उर्दू आधुनिक भारतीय भाषा है। भारत के संविधान में निम्नलिखित महत्वपूर्ण भारतीय भाषा को मान्यता दी गई है, इसके अस्तित्व और संवर्धन के लिए सरकारी तौर पर अमली एकदामात किए जाएं।
3. उर्दू पत्रकारिता का पाठ्यक्रम को माखन लाल चटर्जी विश्वविद्यालय के एक सेमेस्टर के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।


4. भोज विश्वविद्यालय में अल्पकालीन उर्दू पत्रकारिता पाठ्यक्रम को परिचय कराया जाए ।
5. मध्य प्रदेश के शासन प्रकाशन विभाग द्वारा हिन्दी-उर्दू भाषा में ”मध्य प्रदेश संदेश” के नाम से जो पत्रिका प्रकाशित होती थी, वह अब बंद हो गई है, इसे फिर से जारी किया जाए।
6. ऑल इंडिया रेडियो और मध्य प्रदेश दूरदर्शन से उर्दू कार्यक्रमों और समाचार प्रसारण की अवधि बढ़ाई जाए।
7. माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में उर्दू पत्रकारिता की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
8. मध्य प्रदेश के उर्दू समाचार पत्रों को अन्य भाषा के समाचार पत्रों के समान विज्ञापन दिया जाए।
9. मुजाहिद आज़ादी मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली न केवल भारत की पहली स्वतंत्र सरकार के प्रधान मंत्री थे बल्कि उन्होंने ”ग़दर” नामक एक समाचार पत्र भी जारी किये थे। उनके नाम से सरकारी स्मारक या विशेष विभाग स्थापित की जाए।

10. उर्दू पत्रकारों को अन्य भाषा के पत्रकारों की तरह सुविधाएं प्रदान की जाए।
11. मध्य प्रदेश के स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानियों और पत्रकारों की आत्मकथाओं को शामिल किया जाए।
12. उर्दू में गणित, विज्ञान आदि जैसे पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराएं, जिससे बच्चों में उर्दू पढऩे में रुचि बढ़ेगी और बच्चे उर्दू पढ़ेंगे, पाठ्यपुस्तकें नहीं हाने के कारण बच्चे उर्दू से दूर भाग रहे हैं।
उर्दू के अस्तित्व और प्रचार-प्रसार के लिए हमारी भी जि़म्मेदारी है। और वह यह है कि हम अपने बच्चों को उर्दू पढऩे पर जोर दें, और उर्दू अखबारों, पत्रिकाओं, मेगजीन्स और उर्दू किताबों को खरीदें और पढ़ें।

इसके साथ ही तमाम लोगों से अपील है कि:
1. स्कूलों, दीनी मदरसों के जिम्मेदारान से संपर्क कर के उर्दू भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार पर ध्यान आकर्षित कराएं।
2. मातृभाषा का महत्व, उर्दू लिपि की आवश्यकता और इसके संरक्षण के लिए वातावरण तैयार किया जाए।
3. मातृभाषा, उर्दू भाषा, साहित्य और पत्रकारिता से संबंधित पोस्टर प्रकाशित कराकर शहर के महलों की दीवारों पर चिपकाएं।
4. निजी कामों, नेम-प्लेट्स, दुकानों के बोडर्् और शादी के निमंत्रणों में उर्दू भाषा का प्रयोग किया जाए।
5. उर्दू भाषा, साहित्य और पत्रकारिता के प्रचार-प्रसार में गैर-मुस्लिमों की सेवाओं से नई पीढ़ी को अवगत कराया जाए।

6. प्रत्येक सरकारी फार्म के खाने में मातृभाषा के रूप में उर्दू पंजीकृत होनी चाहिए।
स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू भाषा के साहित्य और लेखकों की भूमिका से नई पीढ़ी को परिचित कराया जाए।
7. गैर-उर्दू दां लोगों को उर्दू सिखाने के लिए शबीना क्लास की व्यवस्था की जाए।
8. उर्दू भाषा की आगाज व इरतका युवाओं को परिचित कराया जाए और यह उल्लेख किया जाए कि उर्दू भाषा का संबंध इंडो-आर्याई परिवार से है।
9. उर्दू पात्रिकाओं को हर उर्दू वाले के घर में पहुचाने के लिए नौजवानों की टीम बनाई जाए। ज्यादा से ज्यादा खरीदार बनाने वाले को इनाम दिया जाए। उसकी प्रचार-प्रसार के लिए अखबार मालिका इनामात के लिए तआवुन की अपील करें।

10. उर्दू पत्रकारों को अपग्रेड करने के लिए केन्द्र व राज्य स्तर पर पंद्रह दिवसीय कार्यशाला आदि का आयोजन किया जाए।
11. पत्रकारिता और मीडिया में प्रकाशित पुस्तकों को प्रोत्साहित किया जाए।
कार्यक्रम के संयोजक एम डब्ल्यू अंसारी ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्ष पूरे होने पर हम 27 मार्च से 2022 से 27 मार्च 2023 तक इस श्रंखला को पूरे भारत में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलाने के लिए कृतसंकल्प हैं। और भारत की मातृभाषा को न्याय दिलाया जाएगा। अंत में इकबाल मसूद साहब ने सभी प्रतिभागियों और गणमान्य व्यक्तियों का धन्यवाद किया।


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