भोपाल 01 अप्रैल 2022:- आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क औलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने योग अभ्यास से उपचार, प्राण शक्ति एवं आध्यात्मिक विकास के बारे में बताया कि उपचार क्या है? अगर उपचार का लक्ष्य दूसरों का दुःख दूर करना ही है तो क्या उससे उपचारक या रोगी का आध्यात्मिक विकास भी होता है? उपचार की अवधि में, उस प्रक्रिया में तुम रोगी को अतिरिक्त शक्ति से आवेशित करते हो- अपने व्यक्तित्व से, शरीर से या आत्मा से अथवा तुम उसकी ऊर्जा को बढ़ाते हो, ताकि वह ऊर्जा रोगी की रोग-स्थिति सहित तुम्हारे पास वापस आ जाये। दोनों ही हालत में यदि तुम्हारी उपचार पद्धति रोगी को आध्यात्मिक दिशा नहीं देती तो उसका कोई उपकारी प्रयोजन नहीं हैं।मरीज को कोई दवा बताते हो, वह लेता है और ठीक अनुभव करता है। उसके लक्षण, संकेत सब गायब हो जाते हैं। यहाँ औषधि सिर्फ बीमारी ठीक करती है, रोगी के व्यक्तित्व और मन को कोई आध्यात्मिक दिशा नहीं देती, लेकिन इसके साथ ही यह भी आवश्यक कि उपचारकर्ता अपने लिये स्वयं एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक दिशा प्राप्त करे और इस ओर परिश्रम करे, ताकि उसके आदर्शों, विचार प्रणाली और रहन-सहन में आवश्यक सुधार आ सके। यही सबसे बड़ी आवश्यकता है। योग गुरु अग्रवाल ने बताया उपचार के तीन तरीके होते हैं- सम्मोहन या मनोवैज्ञानिक उपचार, आध्यात्मिक उपचार और प्राणिक उपचार। इन तीनों में से प्राणिक उपचार सबसे अधिक वैज्ञानिक है और साथ ही वह आध्यात्मिक भी है। कुछ इस प्रकार के लोग हैं जिन्हें रोगों की मानसिक चिकित्सा करने की शक्ति प्राप्त है और अपने जीवन काल में कभी-न-कभी उन्हें अपने भीतर इस गुणवत्ता का एहसास हो जाता है। सच बात तो यह है कि प्राय: प्रत्येक व्यक्ति को यह गुणवत्ता प्राप्त है। मानव शरीर मांस, अस्थि, रक्त और मज्जा ही नहीं है। यह ऊर्जा क्षेत्र है। योग में इसे शक्ति कहते हैं और यह शक्ति दो प्रकार की है- मानसिक और प्राणिक। होता यह है कि जब प्रााणिक शक्ति अधिक प्रबल हो जाती है, जो प्राणायाम द्वारा प्राप्त की जा सकती है तब यह चुम्बकीय शक्ति इस शरीर से प्रवाहित होने लगती है।जैसे आग से गर्मी पैदा होती है, चुम्बक का एक क्षेत्र होता है, विद्युत चुम्बकीय शक्तियों का भी एक क्षेत्र होता है, रेडियोधर्मी शक्तियों का एक क्षेत्र होता है, ठीक उसी प्रकार प्राणशक्ति का भी ऊर्जा क्षेत्र होता है। यह ऊर्जा क्षेत्र बाहर से दृष्टिगोचर नहीं होता है, पर यह हर व्यक्ति में विद्यमान है। अपवाद वे ही व्यक्ति हैं जो शीघ्र मृत्यु प्राप्त होने वाले हैं, क्योंकि मृत्यु-काल में प्राणशक्ति बिल्कुल सिमट जाती है।हाल में वैज्ञानिकों ने ‘किलियन’ फोटोग्राफी पर अनुसंधान किया है। इस प्रणाली से किसी पदार्थ के इर्दगिर्द फैले विकिरणों का छायांकन किया गया है और पाया गया है कि प्रत्येक पदार्थ का एक ऊर्जा क्षेत्र है। जिसे आभा-मंडल या प्राणशक्ति कह सकते हैं। कभी तो यह ऊर्जा क्षेत्र सिकुड़ जाता है, कभी फैल जाता है, कभी समतल हो जाता है और कभी ऊबड़-खाबड़। यह क्षेत्र उस ऊर्जा का परिचायक है जो पदार्थ विशेष से निकलती है। पत्ते, सिक्के और कागज के टुकड़े में भी प्राण विद्यमान है। किसी पेड़ से एक पत्ता लेकर उसके दो टुकड़े किये जायें और उनका फोटो लिया जाये, और फिर उस पेड़ का दूसरा पत्ता तोड़ा जाये और उसका फोटो लिया जाये और बिना टुकड़े किये उसकी तस्वीर उतारी जाये तो दोनों से निकलने वाले विकिरण भिन्न-भिन्न प्रकार के होंगे और उनके प्राण के भिन्न क्षेत्र होंगे।इस प्रकार यह प्राणिक या चुम्बकीय शक्ति, जिसकी चर्चा वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही है, वही शक्ति है जो एक मनोचिकित्सक द्वारा प्रकट की जाती है। उन विकिरणों के माध्यम से मनोचिकित्सक अपनी प्राण-शक्ति को अन्तरित करने में सक्षम होता है और व्याधिग्रस्त उन विकिरणों को ग्रहण कर लेता है। यह भी याद रखना कि कई योग-कर्मियों की धारणा है कि प्राण शक्ति की क्षीणता के कारण हम रोग ग्रस्त होते हैं। अतः मनोचिकित्सा से अतिरिक्त प्राणशक्ति प्राप्त कर रोगी के स्वास्थ्य में सुधार दिखाई पड़ता है।इस योजना के अन्तर्गत चिकित्सक में यह क्षमता होनी चाहिए कि वह अपने द्वारा अंतरित प्राण शक्ति को पुनः प्राप्त कर ले। आध्यात्मिक चिकित्सा के खतरे भी हैं। चिकित्सक को खोयी हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने की विधि आनी चाहिए। यह सामान्य समझदारी की बात है। दूसरी बात यह है कि इस प्रक्रिया में बहुधा चिकित्सक रोगी से उसका रोग अपने ऊपर ग्रहण करने के कारण स्वयं रोगग्रस्त हो जाता है। अतएव चिकित्सक में स्वतः आरोपित रोग से मुक्त होने की भी क्षमता होनी आवश्यक है। ऐसे कई आध्यात्मिक चिकित्सकों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ जो बड़े दयालु एवं करुणाशील थे, किन्तु वे स्वयं बहुधा रोग ग्रस्त हो जाया करते थे।
कभी-कभी मैं अपनी विचार शक्ति से लोगों का उपचार कर सकता हूँ, क्या ऐसा करना ठीक है? प्राकृतिक नियम ऐसा है कि प्रकृति अपना समय और व्यवस्था पूरी कर ही लेगी। किसी को कोई रोग है तो उसके कर्म के कारण है, जीवन पद्धति के कारण है, उसके मन के स्वभाव के कारण है। उसके मनोविकार, निराशाएँ और भावनाएँ ही उसकी बीमारी के कारण हैं। अगर तुम उपचार करने में काबिल हो तो सिर्फ रोग को दबाने का ही काम करोगे, क्योंकि कारण तो अपरिवर्तनीय हालत में ही रह जायेगा।उसके मन में वही विचार, वही स्वभाव, वही कमजोरी, वही विकार रहेंगे। अगर वे सब मनोविकार वगैरह पहली बार बीमारी पैदा कर सकते हैं तो आगे दुबारा भी करेंगे। अपने आध्यात्मिक जीवन में मैंने देखा है कि यदि मानसिक शक्तियाँ रोग के कारण की चिकित्सा कर सकें, तो ठीक है, अन्यथा अगर वे लक्षणों या संकेतों का उपचार ही करती हैं तो उनका कोई सही उपयोग नहीं। वह रोग या दु:ख तो उसी रूप में पुन: लौट आयेगा। हाँ, अगर तुम व्यक्ति के सोचने की संपूर्ण दिशा को बदल सको, उसकी चेतना को रूपान्तरित कर सको, संपूर्ण मन और दिमाग को एक नवीन स्तर पर नया रूप दे सको, तभी माना जायेगा कि मानसिक शक्तियाँ उपयोगी हैं। इसलिए जिस किसी को रोग मुक्त करने का यह नैसर्गिक वरदान प्राप्त है उसे यह भी जानना चाहिए कि प्राण के शाश्वत उत्स के साथ कैसे संपर्क बनाये रखा जा सके तथा रोगी की जो बीमारी उसने अपने ऊपर आरोपित कर ली है उससे कैसे निपटा जाये।