भोपाल 12 अप्रैल 2022:- 11 अप्रैल 2022 सुबह 7 बजे से राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान भोपाल द्वारा योग दिवस पर कार्यशाला आयोजित की गई | संस्थान के जॉइंट डायरेक्टर श्री अखिल सहाय ने इस अवसर पर कहा कि योगविद्या भारतवर्ष की सबसे प्राचीन संस्कृति और जीवन पद्धति है तथा इसी विद्या के बल पर भारतवासी प्राचीनकाल में सुखी, समृद्ध और स्वस्थ जीवन बिताते थे। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म से शान्ति मिलती है और योगाभ्यास से धन धान्य, समृद्धि और स्वास्थ्य। भारत में सुख, समृद्धि, शक्ति और स्वास्थ्य के लिए हर व्यक्ति को योगाभ्यास करना चाहिए।योग गुरु महेश अग्रवाल ने अपने अनुभवों से समस्त उपस्थित अधिकारी कर्मचारी एवं विधार्थीयों को योग अभ्यास की निरंतरता बनाने के लिये प्रेरित किया योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि योग मनुष्य की विचार प्रक्रिया को प्रकाश देगा और उसके विचारों और ज्ञान की गुणवत्ता को सुधारेगा। फलतः योग मनुष्य को उसकी समस्याओं की अनिवार्यता को समझने की शक्ति देगा और इसी की हम आशा कर रहे हैं।योग अगर शक्तिशाली विश्व संस्कृति बन जायेगा तो क्या हम मनुष्य के दुःखों और दुनिया की बुराइयों का अंत होने की आशा कर सकते हैं? यद्यपि योग इस शताब्दी के अंत से अगली शताब्दी के दौरान महान् शक्ति बनने जा रहा है, तथापि इसका मतलब यह नहीं है कि मनुष्य बीमार नहीं पड़ेगा या स्पर्धा नहीं होगी और हर कोई एक-दूसरे से प्रेम ही करने लगेगा। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि दुनिया में घृणा नहीं रहेगी और हर आदमी सुखी हो जायेगा अथवा समस्याओं व रोगों से वह मुक्त ही हो जायेगा।ऋषि-मुनियों के अनुसार यह बिल्कुल स्पष्ट है कि संसार त्रिगुणों की लीला-भूमि है, तीन गुणों का खेल मात्र है। ये तीन गुण हैं-तमस्, रजस और सत्त्व | अगर इन विभिन्न गुणों को एक साथ मिला दें, तो वे मानसिक स्तर पर लाखों पदार्थों की सृष्टि कर देते हैं। योग एक शक्तिशाली संस्कृति बने, लेकिन वे त्रिगुणात्मक पदार्थ विद्यमान रहेंगे, वे सदा एक से रहेंगे। संसार का वे स्वभाव ही विभिन्नता, विरोधाभास या विविधता का है। योग भी इस नियम के विपरीत नहीं जा सकता। समाज में परस्पर विरोधी धर्म और सम्प्रदाय रहेंगे ही। युद्ध भी होंगे, प्रेम भी होगा, घृणा भी रहेगी और जनसंहार भी होंगे। राम, कृष्ण, बुद्ध और ईसामसीह जैसे लोग भी समय-समय पर आते रहेंगे। इन सबसे परे तुम जा नहीं सकते, क्योंकि यह सृष्टि त्रिगुणों की लीला-स्थली है। तुम एक आदर्शवादी जीवन पद्धति, विश्व शान्ति या विश्व एकता का काल्पनिक मानसिक चित्र बना सकते हो, मगर यह होगा कैसे? यह संभव है ही नहीं। घास हमेशा रहेगी ही, कंटीली झाड़ियाँ होंगी ही, सर्प इत्यादि प्राणी भी होंगे। अति वृष्टि से बाढ़, अनावृष्टि से सूखा और अन्य संक्रामक से रोग होंगे ही, भले ही उच्च रक्तचाप, कैंसर और गठिया रोग समाप्त हो जायें। हाँ, एक बात याद रखना। योग की शक्ति से एक महान् परिवर्तन अवश्य आयेगा।
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