भोपाल। श्री हनुमान जयंती के अवसर पर आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरू महेश अग्रवाल ने सभी को हार्दिक शुभकामनायें देते हुए कहा कि अंजनी पुत्र हनुमान जी के जीवन से कुशल प्रबंधन के साथ मन, कर्म और वाणी पर कैसे संतुलन रहें सीखा जा सकता हैं। ज्ञान, बुद्धि, विद्या और बल के साथ ही उनमें विनम्रता भी अपार थी। सही समय पर सही कार्य करना और कार्य को अंजाम तक पहुंचाने का उनमें चमत्कारिक गुण था। उनमें कार्य का संपादन करने की अद्भुत क्षमता थी जो आज के प्रबंधक और कर्मठ लोगों को सीखना चाहिए। सीखने की लगन, कार्य में कुशलता और निपुणता, मूल्यों और प्रतिबद्धता के साथ सही योजना, दूरदर्शिता , नीति कुशल हनुमानजी प्रबंधन की यह सीख देते हैं कि अगर लक्ष्य महान हो और उसे पाना सभी के हित में हो तो हर प्रकार की नीति अपनाई जा सकती है।
साहस – हनुमानजी में अदम्य साहस है। वे किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों से विचलित हुए बगैर दृढ़ इच्छाशक्ति से आगे बढ़ते गए। रावण को सीख देने में उनकी निर्भीकता, दृढ़ता, स्पष्टता और निश्चिंतता अप्रतिम है। उनमें न कहीं दिखावा है, न छल कपट। व्यवहार में पारदर्शिता है, कुटिलता नहीं। उनमें अपनी बात को कहने का नैतिक साहस हैं। उनके साहस और बुद्धि कौशल व नीति की प्रशंसा तो रावण भी करता था।
लीडरशिप – हनुमानजी श्रीराम की आज्ञा जरूर मानते थे परंतु वह वानरयूथ थे। अर्थात वह संपूर्ण वानर सेना के लीडर थे। सबको साथ लेकर चलने की क्षमता श्रीराम पहचान गए थे। कठिनाइयों में जो निर्भयता और साहसपूर्वक साथियों का सहायक और मार्गदर्शक बन सके लक्ष्य प्राप्ति हेतु जिसमें उत्साह और जोश, धैर्य और लगन हो, कठिनाइयों पर विजय पाने, परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने का संकल्प और क्षमता हो, सबकी सलाह सुनने का गुण हो वही तो लीडर बन सकता है। उन्होंने जामवंत से मार्गदर्शन लिया और उत्साह पूर्वक रामकाज किया। सबको सम्मानित करना, सक्रिय और ऊर्जा संपन्न होकर कार्य में निरंतरता बनाए रखने की क्षमता भी कार्यसिद्धि का सिद्ध मंत्र है। हर परिस्थिति में मस्त रहना, शुत्र पर निगाहें ।
विनम्रता – यदि आप टीमवर्क कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं फिर भी एक प्रबंधक का विनम्र होना जरूरी है अन्यथा उसे समझना चाहिए कि उसका घमंड भी कुछ ही समय का होगा।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि हनुमान चालीसा के दोहे एवं चौपाई को ध्यान से समझें तो जीवन कैसे जीना उसकी सीख मिलती है।
गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं। इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। माता-पिता को पहला गुरु ही कहा गया है। समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। अगर तरक्की की राह पर आगे बढऩा है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें। आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है। लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे। विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी। हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।
जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए। अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।
कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है। सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया। अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।
हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी। विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।
अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं। आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है। अपने आप पर पूरा भरोसा रखें।