विश्व पृथ्वी दिवस – भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को धरती माता के रुप में पूजा जाता है वह हमें हमारे जीवन में धैर्य, ज्ञान, बुद्धि, धन और साहस प्रदान करती है – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल। आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस जागरूकता अभियान के रुप मे मनाया जाता है । पृथ्वी दिवस मनाने का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि पृथ्वी जीवन का सार है। हम सब मिलकर पृथ्वी का सम्मान करें। वह हमारे जीवन में सभी प्रकार का लाभ और बेहतर स्थिति देती है। अगर हम लगातार उसकी पूजा करते हैं, तो वह हमें मोक्ष पाने में भी मदद करती है। वह हमें हमारे जीवन में धैर्य, ज्ञान, बुद्धि, धन और साहस प्रदान करेगी। आइए हम पवित्र माता की पूजा करें और धन्य हो।

योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि योग अभ्यास में भी पार्थिवी धारणा के बारे मे बताया जाता है । जिसके अभ्यास से व्यक्ति निरोगी होकर मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर सिद्ध हो जाता है । कर्मो का क्षय होता है और आत्मिक लाभ प्राप्त होता है । हस्त मुद्रा योग में पृथ्वी मुद्रा को अंग्रेजी में Gesture of the Earth कहा जाता है। इसका दूसरा नाम अग्नि शामक मुद्रा है। इसके द्वारा मनुष्य अपने भौतिक अंतरत्व में पृथ्वी तत्व को जाग्रत करता है और शरीर में बढऩे वाले अग्नि तत्व को घटाने में मदद करता है। जब इस मुद्रा को किया जाता है तब पृथ्वी तत्व बढ़कर सम हो जाते हैं। इस मुद्रा के अभ्यास से नए घटक बनते है। मनुष्य शरीर में दो नाडिय़ाँ होती है सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी। जब पृथ्वी मुद्रा की जाती है तो अनामिका अर्थात सूर्य अंगुली पर दबाव पड़ता है जिससे सूर्य नाड़ी और स्वर को सक्रीय होने में सहयोग मिलता है।अनामिका अंगुली पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। पृथ्वी तत्व हमें स्थूलता , स्थायित्व देता है। इससे पृथ्वी तत्व बढ़ता है। यह अंगुली सभी विटामिनों एवं प्राण शक्ति का केंद्र मानी जाती है। यह हर समय तेजस्वी विद्दुत प्रवाह करती है और साथ ही अंगूठा भी। इस अंगुली द्वारा ही हम तिलक लगाते हैं। पूजा अर्चना करते हैं और शादी में अंगूठी पहनते हैं।


पृथ्‍वी तत्व : इसे जड़ जगत का हिस्सा कहते हैं। हमारी देह जो दिखाई देती है वह भी जड़ जगत का हिस्सा है और पृथ्‍वी भी। इसी से हमारा भौतिक शरीर बना है, लेकिन उसमें तब तक जान नहीं आ सकती जब तक की अन्य तत्व उसका हिस्सा न बने। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी बनी है उन्हीं से यह हमारा शरीर भी बना है। इन्ही पांच तत्वों को सामूहिक रूप से पंचतत्व कहा जाता है। इनमें से शरीर में एक भी न हो तो बाकी चारों भी नहीं रहते हैं। किसी एक का बाहर निकल जाने ही मृत्यु है। आत्मा को प्रकट जगत में होने के लिए इन्हीं पंच तत्वों की आवश्यकता होती है। जो मनुष्य इन पंच तत्वों के महत्व को समझकर इनका सम्मान और इनको पोषित करता है वह निरोगी रहकर दीर्घजीवी होता है।पृथ्वी हमें सहनशीलता का गुण सिखाती है । पृथ्वी से मानव को सूंघने की क्षमता मिलती है । पृथ्वी ऐसा आधार है, जिस पर अन्य तीन तत्व जल,अग्नि व वायु सक्रिय होते हैं।


हमारे सौरमंडल में केवल धरती ही ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है, जहां नदी, झरने, पहाड़, वन, अनेक जंतु प्रजातियां हैं और जहां हम सब मनुष्य भी हैं। लेकिन हम सब की लालच और लापरवाही ने ना केवल दूसरी जीव प्रजातियों के लिए बल्कि खुद अपने लिए और संपूर्ण धरती के लिए संकट पैदा कर दिया है। ऐसे में पृथ्वी दिवस जैसे आयोजन हमें जागरूक करने के लिए जरूरी हैं। आइए इस पृथ्वी दिवस पर हम धरती की पुकार सुनें और इसे स्वच्छ-सुरक्षित बनाए रखने में अपना भरपूर योगदान दें।


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