भिलाईनगर। रमजान के इस आखिरी अशरा (दस दिन) में अपने शहर में अमन व सलामती की खास इबादत व दुआओं के लिए रोजेदार ‘एतकाफ’ पर बैठे हैं। जिनमें मर्द जहां मस्जिदों में ‘एतकाफ’ कर रहे हैं वहीं औरतें अपने घरों में एक खास जगह पर ‘एतकाफ’ पर बैठी हैं।
शेखुल हदीस मौलाना जकारिया रहमतुल्लाह अलैहि ने अपने रिसाले फजाइले रमजान में ‘एतकाफ’ की अहमियत बताई है। उन्होंने सात हदीसों के जरिए इस अहम इबादत को लेकर प्यारे नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम का तरीका बताया है। उन्होंने कहा कि मस्जिद मे ‘एतकाफ’ की नीयत से ठहरने के मामले में इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह के नजदीक तीन किस्में हैं। एक वाजिब जो मन्नत और जिंदगी की वजह से हो जैसे मेरा फलां काम हो जाए तो मै इतने दिनों का ‘एतकाफ’ करूंगा, इसका करना वाजिब है।
दूसरी किस्म सुन्नत है जो रमजान मुबारक के आखिर अशरे (दस दिन) में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम की आदतों के मुताबिक है। जिसमें अपने घर-परिवार से दूर मस्जिद में पूरे 10 दिन तक रह कर खास इबादत की जाती है और अपने शहर के लोगों के अमन व उनकी सलामती के लिए दुआएं की जाती है।
वहीं तीसरी किस्म नफल ‘एतकाफ’ है जिसके लिए दिनों की गिनती नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि ‘एतकाफ’ करने का सवाब बहुत है। इससे ज्यादा इसकी फजीलत क्या होगी के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम हमेशा इसका एहतेमाम पाबंदी करते थे। उन्होंने कहा कि ‘एतकाफ’ पर बैठने वाले मोतीकफ की मिसाल नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि ‘एतकाफ’ करने की सबसे अच्छी जगह अल्लाह का घर (मस्जिद) है जहां हर जगह और हर चीज से अपने दिल को हटाकर उसको राजी करने पड़े रहे और अल्लाह जल्ले शानहू अपने बंदो की माफी के लिए उसकी करीम जात बहाने ढूढती है।
इब्ने कय्यूम रहमतुल्लाह कहते है कि ‘एतकाफ’ का मकसद ओर इसकी रूह दिल को अल्लाह की पाक जात के साथ वाबस्ता कर लेना है कि सब तरफ से हटकर उसी के साथ मज्तमा हो जाए और उसी पाक जात से मशगूल हो जाए। इस ‘एतकाफ’ की बडी गरज शबे कद्र की तलाश है। ‘एतकाफ’ करने वालो को उसके उसूल ओलेमा दीन से मालूम करके बैठने से बड़े फायदे है इसके अलावा जो शख्स एक दिन का भी ‘एतकाफ’ अल्लाह की रजा के वास्ते करता है तो हक ताला शानहू उसके ओर जहन्नम (नरक) के दरमियान तीन खंदक की रुकावट फरमा देते हैं।
कैम्प-2 मस्जिद में जारी है ‘एतकाफ’
रजा जामा मस्जिद लिंक रोड कैम्प-2 में माहे रमजान ने खास इबादतों का सिलसिला चल रहा है। यहां इस साल भी माहे रमजान के इस आखिरी अशरे (दस दिन) में रोजेदार ‘एतकाफ’ पर बैठे हैं। यह सभी मोतकिफ मस्जिद में ही रहते हुए दिन रात खास इबादत में जुटे हैं। इस साल ‘एतकाफ’ पर बैठने वालों में मोहम्मद गौस संतोषी पारा, कमालुद्दीन चौहान अहमद नगर, मोहम्मद हैदर चरोदा, पतासी मोहम्मद तौसीफ रायपुर, मोहम्मद आरिफ सेक्टर 11 और मोहम्मद सैफुद्दीन चटाई क्वार्टर शामिल हैं। यह सभी अपने शहर की खुशहाली और अमन चैन के लिए 10 दिनों का ‘एतकाफ’ कर रहे हैं। इन 10 दिनों में यह सभी अपने कारोबार-नौकरी से दूर रहते हुए घर-परिवार छोड़ कर अपने शहर की अमन व सलामती के लिए खास दुआए करने बैठे हैं।