विश्व नृत्य दिवस – नृत्य योग है जीवन का उत्सव है, जिससे जुड़कर हम अपनी कुंठाओं, निराशाओं एवं तनाव को कम कर सकते हैं तथा संतुलित जीवन जी सकते हैं- योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल 30 अप्रैल 2022:- आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पूरे विश्व में 29 अप्रैल मनाया जाता है। नृत्य मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है- इन्हीं आंगिक -क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। नृत्य एक जन्मजात प्रतिभा है जिसे अभिव्यक्ति की एक सर्वोतम विधा के रूप में जाना जाता है। हमारी प्राचीन नृत्य शैलियाँ एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। ये नृत्य शैलियां हमें हमारी समृद्ध परम्पराओं से जोड़ कर रखने में सहायक हुई है। चाहे उत्साह से भरा भांगड़ा नृत्य हो, या मनमोहक बैले नृत्य, या रोमांटिक सालसा- ये सभी नृत्य अनूठे है और हमें आनन्द से विभोर कर देते हैं। चाहे आप बंद कमरे में नृत्य करें या सार्वजनिक रूप से, चाहे हिप हॉप डांस करे या टैप डांस (पैरों से ताल देते हुए), आप आनन्द से सरोबार हो जाते है और अत्यंत सुख व संतोष अनुभव करते हैं।

ऐसे सभी नृत्य आनन्द प्रदायक होते है जिसमें नर्तक पूरे जोश के साथ अपना नृत्य करे और स्वयं नृत्य में आनन्द अनुभव करे। ऐसा तभी संभव है जब नर्तक का तन स्वस्थ हो और मन प्रसन्न व मुक्त हो। योग शारीरिक व्यायाम व सांस की क्रियाओं का अनूठा मिश्रण है जो शरीर को स्वस्थ व मन को शांत रखने में सहायक है। यह एक प्राचीन तकनीक है जो नर्तक को भाव भंगिमाओं की अभिव्यक्ति की कुशलता प्रदान करती है। इससे शरीर लचीला व आकर्षक बनता है तथा नर्तक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। योग एक प्रकार का धीमी गति का नृत्य है जो शरीर को आवश्यकता के समय अधिक शक्ति व क्षमता प्रदान करता है।

मनुष्य की प्रवृत्ति है, सुख और शांति की तलाश, जिसमें नृत्य-कला की महत्वपूर्ण भूमिका है। नृत्य खुशी, शांति, संस्कृति और सभ्यता को जाहिर करने की एक प्रदर्शन-कला है। खुद नाचकर या नृत्य देखकर हमारा मिजाज भी थिरक उठता है और हमारी आत्मा तक उस पर ताल देती है। नृत्य जीवन की मुस्कान और खुशियों की बौछार है।

नृत्य है अपूर्व शांति प्राप्त करने का माध्यम-

हमारे देश में प्राचीन समय से नृत्य की समृद्ध परम्परा चली आ रही है। नृत्य के अनेक प्रकारों में कथकली प्रमुख है, यह नृत्य 17वीं शताब्दी में केरल राज्य से आया। इस नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, इशारों व शारीरिक थिरकन से पूरी एक कहानी को दर्शाया जाता है। इस नृत्य में कलाकार का गहरे रंग का श्रृंगार किया जाता है, जिससे उसके चेहरे की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे सके। मोहिनीअट्टम नृत्य भी केरल राज्य का है। मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है। ओडिसी ओडिशा राज्य का प्रमुख नृत्य है। यह नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है। कथक लोक नृत्य की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश में हुई है, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है। भरतनाट्यम नृत्य एक शास्त्रीय नृत्य है जो तमिलनाडु राज्य का है। इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है। यह पारंपरिक नृत्य पूरे विश्व में लोकप्रिय है। कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति आंध्रप्रदेश में हुई, इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में गीत, चरित्र की मनोदशा एक नाटक से शुरू होती है। मणिपुरी नृत्य शास्त्रीय नृत्यरूपों में से एक है। इस नृत्य की शैली को जोगाई कहा जाता है। प्राचीन समय में इस नृत्य को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की संज्ञा दी गई है।अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस भारत के इन नृत्यों से पूरे विश्व को परिचित कराने का माध्यम है। वैसे इस दिवस को मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता को उजागर करना था। जिससे लोगों में नृत्य के प्रति रूचि जागे, जागरूकता फैले। साथ ही सरकारें पूरे विश्व में नृत्य को शिक्षा प्रणाली से जोड़े। पारंपरिक शास्त्रीय कला लोगों को अपने जीवन को शांत एवं खुशहाल बनाने और व्यक्तित्व विकास में मदद कर सकता है क्योंकि यह मन, शरीर और आत्मा की भाषा से संबंधित है। भारतीय कला-संस्कृति सांस्कृतिक आदान-प्रदान करने और विश्वबधुंत्व की भावना, प्यार, दोस्ती और शांति फैलाने का सशक्त माध्यम है। निश्चित ही नृत्य एक सशक्त दैवीय अभिव्यक्ति है जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है। हमारी खुशी, हमारे भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है। नृत्य अमूर्त है फिर भी जन के मन के संज्ञान और बोध को परिलक्षित करता है। मनोदशाओं को और चरित्र को दर्शाता है। नृत्य में हाथों की श्रृंखला बनाकर एक दूसरे के स्नेह और जोश को महसूस किया जाता है, जिसे आपस में बांटा जाता हैं और सामूहिक लय पर गतिमान होते हुए देखा जाता हैं। नृत्य समानांतर रेखाओं के उस बिंदु पर होता है जहाँ रेखाएं एक-दूसरे से मिलती हुई प्रतीत होती हैं। गति और संचालन से भाव-भंगिमाओं का सृजन और ओझल होना एक ही पल में होता रहता है। नृत्य केवल उसी क्षणिक पल में अस्तित्व में आता है। यह क्षण बहुमूल्य एवं अनूठा होता है। यह जीवन का लक्षण है। आधुनिक युग में, भाव-भंगिमाओं की छवियाँ लाखों रूप ले लेती हैं। वो आकर्षक होती है। परन्तु ये नृत्य का स्थान नहीं ले सकतीं क्योंकि छवियाँ सांस नहीं लेती जबकि नृत्य जीवन का उत्सव है।नृत्य के महत्व पर एक कविता का भावार्थ है कि द्रवित भावनाएं शब्दों के अभाव में आहें बनती है, आहें भी अक्षम होने पर गीतों में व्यक्त होती है। गीत नहीं पूरे पड़ते तो अनायास हमारे हाथ नृत्य करने लगते हैं और पाँव थिरकने लगते हैं। इस तरह नृत्य का हमारे जीवन की खुशियों से सीधा रिश्ता है। नृत्य एक प्रकार का योग है, जिससे जुड़कर हम नृत्य द्वारा अपनी कुंठाओं, निराशाओं एवं तनाव को कम कर सकते हैं तथा संतुलित जीवन जी सकते हैं। नृत्य द्वारा स्वयं के साथ-साथ दूसरों को भी प्रफुल्लित किया जा सकता है। इसलिये अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को केवल आयोजनात्मक ही नहीं प्रयोजनात्मक बनाने की अपेक्षा है।


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