दिव्य प्रवचन का आठवां दिवस :विलक्षण दार्शनिक प्रवचन में भक्तिमय हुए श्रद्धालु.. संसार में सुख दुख दोनो नहीं है, संसार सत्य है मन वाला संसार मिथ्या है। मन वाला संसार ज्यादा खतरनाक है।उसको मिटाना है, इस पर माया हावी है, -डॉ भक्तिश्वरी देवी

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भिलाई नगर 30 अप्रैल 2022:- सेक्टर-2 गणेश पंडाल में हो रहे विलक्षण दार्शनिक प्रवचन के आठवें दिन पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कृपा पात्र प्रचारिका डॉ भक्तिश्वरी देवी ने बताया कि शरणागत होने के लिए संसार से वैराग्य जरूरी है क्योंकि, हम अभी संसार की शरण में हैं। इसे भगवान में लगाने के लिए इसे संसार से हटाना होगा,और इसके लिए संसार के स्वरूप को समझना होगा। शरणागत होने के लिये संसार से मन को विरक्त करना है। विरक्त का मतलब यह है कि न कहीं राग हो, न कहीं द्वेष हो ।इन दोनों को छोड़ना होगा। इसके साथ साथ अहंकार को भी छोड़ना पड़ेगा। संसार दो प्रकार के है । एक बाह्य संसार एक भीतर का संसार। एक भगवान से बना हुआ है ,और एक मन से बना हुआ है। भगवान वाला संसार सत्य है मन वाला संसार मिथ्या है। मन वाला संसार ज्यादा खतरनाक है।उसको मिटाना है। इस पर माया हावी है। यह संसार तीन गुण वाला है।सत्व गुण ,रज गुण, तमो गुण। सबका यह तीन गुण मात्रा में अंतर रहता है। वही गुण बृति दिखाई पड़ता है। संसार में सब स्वार्थी है। स्वार्थ कम प्यार कम, स्वार्थ खत्म प्यार खत्म। इसलिए संसार में राग द्वेष कम करना है। संसार में हम सोचा करते हैं कि सुख है या दुःख है। ना सुख है,ना दुःख है।कुछ नहीं है।मन कल्पित सुख दुःख हमको अनुभव होता है।यदि मन की कामना को हम छोड़ दें तो भगवान बन जाए । अतः हम को संसार में उदासीन होते हुए पुर्ण वैराग्य होना है। मन को खाली करना है।तब ईश्वर का विषय समझ मे आएगा।


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