भिलाईनगर। आत्मज्ञानी भी भक्ति के द्वारा ही ब्रह्मज्ञानी बनते है। सेक्टर 2 गणेश पंडाल में हो रहे विलक्षण दार्शनिक प्रवचन के 13 वे दिन पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कृपापात्र प्रचारिका डॉ भक्तिश्वरी देवी ने बताया कि, एक तरफ तो ज्ञान की निंदा की गई किंतु एक तरफ ज्ञान की प्रसंसा भी की गई है। एक शाब्दिक ज्ञानी दूसरा अनुभव सिद्ध ज्ञानी। शाब्दिक ज्ञान से मिथ्या अभिमान पैदा होती है। इसलिए ज्ञान की निंदा की गई। कितना भी ज्ञान हो भक्ति रहित मनुष्य को मोक्ष भी नहीं मिलता । यानी ज्ञान के साथ भक्ति भी करना है। ज्ञान की मार्ग अत्यंत कठिन है। तलवार की धार पर चलना है। ज्ञान मार्ग की बात छोड़ दीजिये शास्त्र पढऩे के लिए भी हम अधिकारी नही है।
पूर्ण निबिर्ण हो, फिर ज्ञान मार्ग का अधिकारी होता है। तब फिर मोक्ष मिलता है। ज्ञानी साधना करने के बाद आत्मज्ञानी बनता है। फिर भक्ति करने के बाद ब्रम्ह ज्ञानी होता है।बड़े बड़े परमहँस ज्ञानी भक्ति के a, b, c, d सीखने के लिए चली आते हैं। ब्रम्हा, सनकादिक, जनकादिक, उद्धब जी,ब्यास,सुकदेव परमहंस, आदिजगदगुरु शंकराचार्य आदि सब के सब भक्ति कर रहे हैं। प्रेमानंद चाह रहे हैं। अपना ब्रम्हानंद को धिक्कार रहे है। ब्रज की गोपियों की चरण रज चाह रहे हैं। मोक्ष को नकार रहे है। निराकार की उपासना छोड़ कर सगुण साकार की भक्ति कर रहे है। अत: चाहे किसी भी मार्ग में जाओ भक्ति कंपलसरी है।