बुद्ध पूर्णिमा – आत्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम विधि है ध्यान, संकल्प लें योग करके हम सब बुद्ध हो जायें – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल। आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से नि:शुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन एवं प्रत्यक्ष माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है। योग गुरु अग्रवाल ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें देते हुए कहा कि आत्म ज्ञान प्राप्त करने की सर्वोत्तम विधि है ध्यान, आज हम सब संकल्प लें योग करके बुद्ध हो जाने का।
भगवान बुद्ध की वाणी बुद्धं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। संघ शरणं गच्छामि। मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ। मैं धर्म की शरण में जाता हूँ। मैं संघ की शरण में जाता हूँ। का ध्यान करने से अलौकिक शांति की प्राप्ति होती है।


योग गुरु अग्रवाल ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध के बारे में बताया भगवान बुद्ध दुनिया का एक रहस्य हैं।भगवान बुद्ध ने चेतना के शिखर को छुआ एवं पूरा जीवन सत्य की खोज और निर्वाण को प्राप्त करने में लगा दिया, उन्होंने मानव मनोविज्ञान और दु:ख के हर पहलू पर कहा और उसके समाधान बताए । वे केवल ‘एशिया की ज्योति’ ही नहीं थे, अपितु सारे संसार की ज्योति’ थे। मानवता के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक उन्नयन के लिए उनका अवधान महान् तथा अपरिमेय है। उनके जीवन एवं उपदेशों ने लोगों के दैनंदिन जीवन तथा चिन्तन को प्रभावित किया है।

योग भारतवर्ष में प्राचीनतम विधा है। यह विश्व को भारत की अमूल्य देन है। बौद्ध धर्म का जन्म और विकास भी भारत में ही हुआ। बौद्ध धर्म में साधना विधि का मुख्य रूप से वर्णन किया गया है। योग में भी मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना ही मुख्य है। योग और बौद्ध धर्म दोनों ही जन्म-मरण के चक्र की समाप्ति मानते हैं। अत: योग और बौद्ध धर्म दोनों ही सिद्धांतों में समानता है। योग और बौद्ध धर्म दोनों में ही इस बात पर बल दिया है कि मानसिक प्रशिक्षण के लिए शारीरिक एवं स्वास्थ्य संबंधी अवस्थाओं का अनुकूल होना आवश्यक है। इस क्रिया से शरीर को वश में करना और ज्ञान की प्राप्ति के लिए तैयार करना है।


योग के अष्टांग योग की भांति, बौद्ध साधना में भी निर्वाण के लिए अष्टांग मार्ग का वर्णन है, जिसमें यम और नियम का भी समावेश है। बौद्ध साधना का अष्टांगिक मार्ग है, सम्यक दृष्टि अर्थात आर्य-सत्य का ज्ञान। सम्यक संकल्प अर्थात राग, द्वेष, हिंसा तथा संसारी विषयों के परित्याग के लिए दृढ़ निश्चय। सम्यक वाक अर्थात मिथ्या, अनुचित तथा दुर्वचनों का परित्याग एवं सत्य वचन की रक्षा। सम्यक कर्मांत अर्थात हिसां परद्रव्य का अपहरण, वासना-पूर्ति की इच्छा का परित्याग कर अच्छा कर्म करना। सम्यक आजीव अर्थात न्यायपूर्ण जीविका। सम्यक व्यायाम अर्थात बुराई का नाश कर अच्छे कर्म के लिए उद्यत रहना। सम्यक स्मृति अर्थात लोभ आदि को रोककर चित्तशुद्धि। सम्यक समाधि चित्त की एकाग्रता।

इन आठ अंगों का पालन करना आवश्यक है। इनके पालन से अन्त:करण की शुद्धि होती है और ज्ञान का उदय होता है। यम और नियम के पश्चात योग में आसन का वर्णन है, जोकि स्थिरतापूर्वक शरीर की किसी स्थिति का नाम है। बौद्ध-साधना में साधक ध्यान आदि के लिए किसी न किसी आसन का प्रयोग करता ही है। स्वयं भगवान बुद्ध की मूर्ति पदमासन में पाई जाती है। जहां तक प्राणायाम का प्रश्न है, तो बुद्ध ने भी च्आनापान सतिज् के रूप में प्राणायाम का उपदेश दिया था। ध्यान दोनों में एक मुख्य प्रकिया है। योग में ध्यान के बिना लक्ष्य की प्राप्ति ही असंभव है। बुद्ध के अनुसार, एकांत में ध्यान करना ही आध्यात्मिक शांति एवं अनासक्ति प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। इसके अतिरिक्त बुद्ध धर्म में समाधि की भी चर्चा की गई है। बौद्ध धर्म के अनुसार, समाधि से चित्त एकाग्र हो जाने पर प्रज्ञा की प्राप्ति होती है। योग में भी कहा गया है कि समाधि मे सिद्ध होने से योगियों को आलौकिक ज्ञान का लाभ होता है। बुद्ध ने अपने शिष्यों को चमत्कार प्रदर्शन से मना कर रखा था। बुद्ध स्वयं एक उच्च कोटी के योगी थे।

चार आर्यसत्य – दु:ख है। दु:ख का कारण है। दु:ख का निदान है। वह मार्ग है, जिससे दु:ख का निदान होता है। पंचशील -हत्या , चोरी , व्यभिचार , मद्यपान न करने का असत्य न बोलने का धर्मादेश ग्रहण करो। बुद्ध की आज्ञाएँ – हत्या, चोरी, व्यभिचार , निन्दा , दूसरों की सम्पत्ति का लोभ, घृणा न कर। झूठ,कर्कश मत बोल। व्यर्थ बात मत कर,सम्यक् रूप से विचार कर। पुण्य कर्म – सत्पात्र को दान, नैतिकता के नियमों का पालन , शुभ विचारों का अभ्यास और विकास, दूसरों की सेवा और देखभाल, माता-पिता और बड़ों का सम्मान और उनकी शुश्रूषा कर। अपने पुण्य का भाग दूसरों को दे कर। दूसरों के द्वारा दिये गये पुण्य को स्वीकार कर, सम्यकता के सिद्धान्त का श्रवण एवं प्रचार कर, अपनी त्रुटियों का सुधार कर। तीन चेतावनीयाँ – तुम्हारा भी क्षय होगा, तुम भी रुग्ण हो सकते हो, तुम भी मृत्यु को प्राप्त होगे । आज हम सब उपरोक्त चार आर्य सत्य, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, बुद्ध की आज्ञाएँ, पुण्य कर्म एवं तीन चेतावनीयाँ का ध्यान करें एवं संकल्प लें की हम सब बुद्ध हो।
हमारी प्रार्थना है कि प्रेम और करुणा के मूर्तिमान् विग्रह भगवान् बुद्ध अपनी कृपा-वर्षा हम सब पर करें!


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