भोपाल 07 जून 2022:- आज 7 जून 2022 सुबह 6:30 बजे से 8 बजे तक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भोपाल में योग दिवस मनाया गया इस अवसर पर योग गुरु महेश अग्रवाल द्वारा सदस्यों को योग प्रशिक्षण दिया गया। वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी आयुष डॉ. दानिश जावेद ने कहा योगविद्या भारतवर्ष की सबसे प्राचीन संस्कृति और जीवन पद्धति है तथा इसी विद्या के बल पर भारतवासी प्राचीनकाल में सुखी, समृद्ध और स्वस्थ जीवन बिताते थे। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म से शान्ति मिलती है और योगाभ्यास से धन धान्य, समृद्धि और स्वास्थ्य। भारत में सुख, समृद्धि, शक्ति और स्वास्थ्य के लिए हर व्यक्ति को योगाभ्यास करना चाहिए। प्रमुख रुप से डॉ. वरुण मल्होत्रा प्रोफेसर शरीर क्रिया विज्ञान विभाग, चिकित्सा अधिकारी डॉ मुद्दा सोफिया योग,डॉ. रंजना पांडे आयुर्वेद , डॉ. श्वेता मिश्रा योग प्रशिक्षक एवं नर्सिंग, एम बी बी एस, एम. डी., एम. एस. के विद्यार्थी उपस्थित रहें।योग गुरु महेश अग्रवाल ने योग आसनों एवं प्राणायाम के अभ्यास का प्रशिक्षण देते हुए कहा कि हमें योग अभ्यास के द्वारा वह जो मुझमें है, वही सबमें है। वह जो मैं हूँ, वहीं अन्य सभी में है। जीवन में इसी बोध को प्राप्त करना है और इसी का अनुभव करना है। समग्र सृष्टि का यह एक सार है।यह मेरा दृढ़ अनुभव होना चाहिए कि समस्त सृष्टि मुझसे अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है, क्योंकि मुझे यह जानना और अनुभव करना चाहिए कि मन, शरीर और इन्द्रियों से बहुत परे एक अदृश्य सम्पर्क सूत्र है, जिसने दृश्य एवं अदृश्य जगत् के विविध मनकों को एक लड़ी में पिरो रखा है। हम ‘रक्त-सम्बन्ध’, ‘सामुदायिक सम्बन्ध’, ‘सामाजिक सम्बन्ध’ और विभिन्न प्रकार के सम्बन्धों की चर्चा करते हैं। आइए, हम उन विविध प्रकार के सम्बन्धों में एक विशिष्ट और एकात्म सम्बन्ध को जोड़ दें जो चिरस्थायी और विश्वव्यापी है-अन्तरात्मा का सम्बन्ध। इसका निहितार्थ यह है कि तत्त्वतः समस्त जगत् एक आत्मा की एकता के सूत्र में निबद्ध है।इस बोध की अनुभूति हमारे विचारों को सुस्थिर बनाकर रखती है और जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने बन्धु-बान्धवों, मित्रों, तथाकथित शत्रुओं और भू-मंडल के समस्त प्राणियों के साथ हमारे व्यवहार के स्वरूप का निर्धारण करती है। जब हम इन सबके बीच होते हैं तब कम-से-कम एक क्षण के लिए यह महसूस करने की चेष्टा करें कि वह जो मुझमें है, वही उनमें भी है और तत्त्वतः हम सभी एक ही हैं। इस प्रकार, विभक्त विविधता की प्रतीति के बीच एक अखण्ड एकता विद्यमान होती है।इस बोध को हृदयंगम करने की विधि क्या है? उसे जीवन के आचार व्यवहार में लाने का तरीका कौन सा है? आइए हम इस प्रकार प्रयोग करें। अपने पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी या मित्र की बात लें, जो हमारे विचार, सिद्धान्त और विश्वास से मेल नहीं रखते हैं और हमसे कटे-कटे से रहते हैं। अभ्यास और तप से प्राप्त इस बोध को प्रयोग में लायें कि वह जो हममें है वहीं उनमें भी है। हमारे और उनके बीच एक ही तत्त्व सदा से रहा है और सदा बना रहेगा। यही बोध बार-बार आपके अन्तर्तम में गूंजता रहे और तब तक गूंजता रहे जब तक मन के निगूड़तम क्षेत्र तक वह न पहुँच जाय अथवा आप यह अनुभव न करने लग जायें कि वह जो हमारे भीतर है, वही उनमें भी है।तात्त्विक एकत्व पर सम्यक् ध्यान के अभ्यास के द्वारा जब यह बोध उच्च आवृत्ति और प्रबलता प्राप्त कर लेता है तब एक अदृश्य कड़ी स्थापित हो जाती। है। तब महसूस होगा कि हमारे और उनके बीच एकत्व की यह डोर पहले से ही कायम थी। फलतः दूसरा व्यक्ति आपके विचार, सिद्धान्त और विश्वास के प्रति संवेदनशील होने लगेगा। आप दोनों के बीच का मतभेद विलुप्त हो जाएगा और दोनों के दृष्टिकोण समान हो जायेंगे। वह व्यक्ति आपसे ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति की तरह व्यवहार करने लगेगा। शारीरिक या मानसिक मतभेद से बिल्कुल परे, यह आध्यात्मिक संयुक्ति है।खवह जो मुझमें है, वही सबमें है। यही वास्तविक ज्ञान हम आपके मन पर अंकित करना चाहते हैं। हम चाहेंगे कि आप आत्मा की इस अजर, अमर कड़ी को आत्मसात् करें, जो समस्त प्राणियों के जीवन का मूल आधार है। आप इस बात को भी पूर्ण रूप से समझ लें कि आप अपने विश्वास, सिद्धान्त और व्यवहार के अनुरूप उनके ऊपर काम कर सकते हैं।
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