छत्तीसगढ़ ने दिया राजस्थान को बिजली संकट से बचाने का भरोसा…कोयले की आपूर्ति को लेकर ऊर्जा सचिव ने की प्रदेश के उच्चाधिकारियों से चर्चा

IMG-20220629-WA0480.jpg

अंबिकापुर; 29 जून 2022: राजस्थान राज्य के प्रधान ऊर्जा सचिव और आईएएस भास्कर ए सावंत और राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) के चेयरमैन तथा मैनेजिंग डायरेक्टर आर के शर्मा ने दो दिन के रायपुर प्रवास के दौरान छत्तीसगढ़ के आला अफसरों से कोयले की निरंतर आपूर्ति के बारे में चर्चा की। छत्तीसगढ़ प्रशासन ने आश्वासन दिलाया है की वह राजस्थान में बिजली की किल्लत ना हो उसके लिए हर मुमकिन प्रयास करेगी।

आरआरवीयूएनएल की कुल विद्युत् उत्पादन क्षमता 7,580 मेगावाट है, जिसमें से 4,340 मेगावाट के लिए कोयला छत्तीसगढ़ आता है। ऐसे में राजस्थान की आधे से भी ज्यादा कोयला आधारित विद्युत् क्षमता छत्तीसगढ़ पर आधारित है। छत्तीसगढ़ में राजस्थान को तीन कोयला खदानें आवंटित है जिसमे से हाल में सिर्फ परसा ईस्ट कांता बसन (पीईकेबी) ब्लॉक से साल का करीब 150 लाख टन कोयला उत्पादन होता है। पीईकेबी ब्लॉक के प्रथम चरण में अब कुछ ही दिनों का कोयला बचा है और अगर दूसरे चरण में जल्द ही काम शुरू नहीं हो पाया तो राज्य को बिजली की कटौती का सामना करना पड सकता है। सोमवार को श्री सावंत और श्री शर्मा, छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव श्री अमिताभ जैन, मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के सचिव, डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस श्री अशोक जुनेजा और प्रिंसिपल चीफ कंज़र्वेटर ऑफ़ फारेस्ट श्री आर के चतुर्वेदी से मिले। वहीं श्री शर्मा मंगलवार को सुरगुजा कलेक्टर श्री संजीव कुमार झा से भी मिले और जिला प्रशासन से भी सहकार के लिए अनुरोध किया। “राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्यों की सरकारें और प्रशासन जितना की निरंतर बिजली की आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है उतना ही पर्यावरण के प्रति सजग है। पीइकेबी खदान के रिक्लेम क्षेत्र में ही आठ लाख से ज्यादा वृक्षारोपण किया गया है जो अब एक नए जंगल का रूप ले चुके हैं। इसके अलावा दोनों राज्यों ने कोयला खदान से पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए छत्तीसगढ़ के वन विभाग द्वारा 40 लाख पेड़ो का रोपण करवाया है। साथ ही आरआरवीयूएनएल एक जिम्मदार संस्थान है और सुरगुजा क्षेत्र में स्थानीय लोगो के सशक्तिकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अनेक कार्यक्रम चल रहे है जिसने CSR में नए मानक स्थापित किये है ,” श्री सावंत ने बताया। अंबिकापुर में कलेक्टर संजीव कुमार झा से आज मुलाकात करने के बाद श्री आर के शर्मा ने उपस्थित पत्रकारों के द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में कहा, “राजस्थान की 4340 मेगावाट की ताप विधुत परियोजना का कोयला छत्तीसगढ़ की हमारी कैप्टिव कोल् माइंस से जाता है उसको लेकर हम लोग बहुत चिंतित हैं। हमारे जो प्रिंसिपल एनर्जी सेक्रेटरी भास्कर सामंत भी कल यहाँ आये थे।कल हमने यहाँ पर चीफ सेक्रेटरी, प्रिंसिपल कंज़र्वेटर फॉरेस्ट, DGP साहब से भी बात की है और हमने हमारी चिंताओं, और राजस्थान में जो बिजली संकट मंडरा रहा है उस पर बात की। क्यूंकि अगर हमें इन कैप्टिव कोल माइंस से कोयला नहीं मिलता है तो राजस्थान वाकई बहुत बड़ी परेशानी में फंस जायेगा।“उल्लेखनिय है की राजस्थान के ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कल ट्वीट करके बताया था की वो राजकीय कार्यों में व्यस्त होने की वजह से छत्तीसगढ़ नहीं जा पा रहे हैं। साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रशासन और लोगों से जल्द से जल्द खनन शुरू करने में सहयोग की अपील की थीशर्मा ने ये भी बताया की छत्तीसगढ़ सरकार के तरफ से उन्हें हर तरह का आश्वाशन दिया गया है। “पुरे सहयोग का आश्वाशन सब जगह से दिया गया है। केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार से पहले ही सारी स्वीकृतियां आ चुकी हैं। हमारा ये मानना है की सरकार पूरी तरह से हमारे साथ है। कुछ NGOs हैं जिन्होंने ये मूवमेंट चला रखा है और इस कार्य को बाधित कर रहे हैं, उन्हें तुरंत प्रभाव से इस से मुक्ति दिला कर हमारी माइनिंग शुरू की जाये”उन्होंने ये भी बताया स्थानीय लोग भी माइनिंग के समर्थन में हैं और वहां के विधायक टी एस सिंह देव भी राजस्थान सरकार की आवश्यकता को समझते हैं। “क्यूंकि वो उसी क्षेत्र के विधायक हैं तो उनकी सोच ये है की वहां की जनता में कोई असंतोष है तो उसका जवाब देना उनकी जिम्मेदारी है। इस वजह से उन्होंने कोई स्टेटमेंट दिया है, बाकी राजस्थान सरकार की जो आवश्यकता है उसको वो भी समझते हैं और उनका भी सहयोग हमें मिलता रहा है और मिलेगा” शर्मा ने बताया की ये कुछ NGOs इस पुरे मामले में कई तरह की भ्रान्ति फैलाने में लगी हुई है। “2007 – 08 में माइंस का अलॉटमेंट हुआ था और 2013 से ये माइनिंग हो रही है। ये NGO जो आदिवासियों के हितैसी बन रहे हैं, क्या किया है इन्होने आज तक। 2007-08 से पहले क्या किया, या 2013 के पहले हमारी माइंस जब तक वहां नहीं आयी थी, इस क्षेत्र के विकास के लिए क्या किया है।आज वहां के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 25000 लोगों को रोजगार मिला है। अगर इसको रोका जाता है तो आप सोचिये कितने लोग बेरोजगार हो जायेंगे। उस क्षेत्र समग्र विकास हो रहा है, बहुत सारे CSR एक्टिविटीज चल रही हैं। कुटीर उद्योग, मसाला उद्योग चल रहे हैं। हम 100 बैड का एक मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल बना रहे हैं और उसके लिए मैंने कलेक्टर साहब से बात भी की थी। उन्होंने जंगल बचाने के लिए किये गए प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा, “एक लाख अस्सी हज़ार हेक्टेयर वन क्षेत्र है हसदेव अरण्य का, उसमे से चार हज़ार हेक्टेयर के आस पास की जमीन हमने ली है। और 2013 से 2022 तक 8.11 लाख पेड़ हम लगा चुके हैं। साथ ही फारेस्ट डिपार्टमेंट 40 लाख से ज्यादा पेड़ लगा चुका है और साथ में 9000 पेड़ हमने सीधे सीधे उखाड़ के लगाए हैं। जैसे जैसे खनन पूरा हो गया उसमे बैक फिलिंग करके, जमीन समतल करके,उसपर और पेड़ लगाए जा रहे हैं।”उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य के आपसी सहयोग से सरगुजा जिले में चलाए जा रहे विभिन्न विकास कार्यों पर चर्चा कर स्थानियों को हो रहे विभिन्न फायदों से अवगत कराया। राजस्थान के अधिकारिओ ने बताया कि आरआरवीयूएनएल के चलते पीईकेबी ब्लॉक में करीब 7,000 स्थानीयों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त हो रहे है और बाकी के दो ब्लॉक के शुरू होने से भविष्य में राजस्थान सरकार के निगम द्वारा सुरगुजा जिले में करीब 30,000 लोगो के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।यह उल्लेखनीय है की पीईकेबी खदान के द्वितीय चरण की योजना समय पर शुरु ना होने पर सिर्फ राजस्थान में बिजली की किल्लत ही नहीं पर छत्तीसगढ़ में भी हज़ारो लोगो को रोजगार की समस्या से गुजरना पड़ेगा। इन हालात में राजस्थान सरकार अपनी कोयला खदानों के विकास और छत्तीसगढ़ में स्थानीय लोगो के रोजगार को लेकर प्रतिबद्ध है।


scroll to top