भिलाईनगर, 13 अप्रैल । संयंत्र में सहायक महाप्रबंधक यशवंत साहू ने अपनी पुस्तक दसमत में वर्तमान परिस्थितियों में गरीबी व अमीर खाई को पढऩे का प्रयास किया है उनकी इस पुस्तक में मार्मिकता को पेश किया गया है। उनकी पुस्तक दशमत में रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी लिखी गई है कहानी में मधुसूदन यानी सूदन नामक एक युवक जो काफी गरीब था। घर में उनकी अपाहिज माता केजिया के साथ रहती है। सूदन के घर में अनाज का एक दाना नहीं है मां की भूख कैसे मिटा पाएगा इसके इंतजाम में हुए भूखे पेट दिन भर काम करने के पश्चात चावल की पोटली लेकर अपनी अपाहिज मां को देता है। खाना खाने के बाद उनका पुत्र जमीन पर सो जाता है। कहानी के कहानी के लेखक ने आगे चित्रण किया है कि सूदन के घर के समीप ही राजा का महल था। राजा देवभोग प्रतिदिन अपनी सभा को बुलाता है व उनकी समस्या का निदान करता है। किंतु एक दिन वे अपने सैनिकों व मंत्रियों को आदेश देते हैं कि उनके राज्य में जो सबसे गरीब व्यक्ति है उन्हें खोज कर लाये। राजा के आदेश का परिपालन कर राज्य शासन तुरंत सबसे गरीब व्यक्ति की तलाश में जुड़ जाता है वह गांव के प्रत्येक घर में गरीब की तलाश करते हैं तभी वह रात को सूदन के घर पहुंचते हैं। उनके घर में एक मटका व कुछ वर्तन गैती फवड़ा है। सैनिक सुदन को बंदी बनाकर राजा के पास पेश करते हैं। इस बीच उनकी अपाहिज माता केजिया का रो-रोकर बुलाहर होता है, क्योंकि कुछ दिन पहले ही उनके पति की मृत्यु की हो चुकी है घर में कमाने वाला कोई नहीं था। सैनिक जब राजा देवभोग के सामने उन्हें पेश करते हैं। राजा बंदी बनाकर रखने का आदेश देते हैं और सैनिकों से कहते हैं कि इन्हें स्वादिष्ट भोजन दिया जाए तथा सूदन के नया वस्त्र दिया जाये। उनकी निगरानी के लिए वहां पदस्थ अधिकारी श्याम सिंह तैनात किए जाते हैं। सुदन का एक.एक पल काटना सुनने के लिए मुश्किल हो रहा था। एक दिन सैनिकों ने सूजन की आंख पर काली पट्टी बांधकर वह काली मंदिर ले जाते हैं एक स्थान पर पहुंचकर सैनिक उसके आंख की पट्टी खोलते हैं तब सुदन लघु शंका निवृत होने की बात कहते हुए वहां से बाहर निकलते हैं। थोड़ी ही दूर में हुए सूदन को बंदी किया वहीं दूसरी ओर राजा देवभोग अपने बेटियों से पूछते हैं कि यह बताओ कि आप किसका दिया खाते हो राजा की अन्य बेटियों ने यह कहा कि पिता हम आपका दिया हुआ कहते हैं किंतु उनकी छोटी बेटी जिनका नाम दशमत रहता है वह अपने पिता राजा देवभोग से कहती है कि मैं अपने कर्म का खाती हूं राजा यह बात सुनकर काफी क्रोधित होता है अपनी पुत्री दशमत की बात सुनकर राजा दुखी होता है और अपनी महारानी से कहता है की आज मेरी पुत्री दसमत ने जो कहा उसे मेरे हृदय को ठेस पहुंची है रानी केतकी अपनी बेटी दसमत को समझाने का काफी प्रयास करती है किंतु वह नही मानती है। राजा यह निर्णय कर लेता है कि दसमत की शादी वह उसके गांव के सबसे गरीब सूदन के साथ करेग। राजा देवभोग दसमत की शादी सुदन से कराकर उसकी बिदाई करता है। सुदन अपने घर पहुंचता है और अपनी मां से शादी के बाद कहते हुए अपनी मां का आशीर्वाद लेता है। सुदन अपनी कहता है कि मेरा विवाह राजा देवभोग की छोटी बेटी दुश्मन हो गया है। इस बीच दसमत अपनी पिता राजा देवभोग के द्वारा विदाई के समय दिये गये स्वर्ण अभूषण पिता को यह कह कर बापस कर देती है, कि जहां मेरी शादी हुई है वहां मजदूरी का काम करना पड़ता है। इस बीच देवभोग में भीषण अकाल पड़ता है, तब सुदन व दसतमत पानी की तालाश में धुमते-धुमते दुर्ग के हरनाबांधा में तालाब की खुदाई करते है। वहां का राजा दसतम पर अशक्त हो जाता है। जिसके कारण वहां मारपीट की स्थिति बन जाती है। वहां से सुदन व दसमत ओडार पहुंचते है। जहां युद्ध में सुदन की मौत हो जाती है। इस गम में उनकी पत्नि व पति के शव में अपने आपको सती कर लेती है।
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