ब्रेकिंग:-  बड़े मामलों के संदिग्धों को पकड़ने फूल रहे पुलिस के हाथ – पांव…..रामगोपाल अग्रवाल, देवेंद्र डड़सेना, पप्पू बंसल और सहदेव यादव साल भर से हैं फरार……

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भिलाई नगर 04 जुलाई 2024:-  जटिल से जटिल मामले का खुलासा करने और अपराधियों के गिरेबान तक पहुंचने वाली छत्तीसगढ़ की पुलिस का बड़े मामलों के नामचीन संदिग्धों को पकड़ने में पुलिस का दम निकल रहा है। कोल स्कैम और चांवल लेव्ही मामले में फरार पीसीसी कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल, देवेंद्र डड़सेना और पप्पू बंसल की गिरफ्तारी अब तलक नहीं हो सकी है। महादेव सट्टा ऐप में संदिग्ध आरक्षक सहदेव यादव भी साल भर से फरार है। आखिर ऐसा क्या है कि एसीबी और ईओडब्ल्यू की लंबे हाथ इन संदिग्धों के गिरेबान तक नहीं पहुंच पा रही है। आखिर इन लोगों के गिरेबंद तक पुलिस का न पहुंचना कई चर्चाओं को जन्म देता है इन्हें जमीन खा गई या आसमान निगल गया की इन रसूखदार आरोपियों के गिरेबान तक तेज तर्रार छत्तीसगढ़ की पुलिस नहीं पहुंच पा रही है।


बड़े से बड़े अपराधियों को पकड़ने का दावा करने वाली पुलिस के हाथ पांव कोल स्कैम और चांवल लेव्ही सहित महादेव सट्टा ऐप के संदिग्धों को पकड़ने में फूल रहा है। इन मामलों में रामगोपाल अग्रवाल, देवेंद्र डड़सेना, पप्पू बंसल और सहदेव यादव की संलिप्तता उजागर हुई है। महादेव सट्टा ऐप के संदिग्ध सहदेव यादव के दोनों भाई अर्जुन यादव और भीम यादव जेल में बंद हैं।

सहदेव के घर पर पुलिस ने नोटिस चस्पा कर रखा है। ऐसा ही नोटिस रामगोपाल अग्रवाल, देवेंद्र डड़सेना और पप्पू बंसल के घरों में भी चस्पा किया जा चुका है। नोटिस की मियाद खत्म हो जाने के बावजूद पुलिस द्वारा उनकी सम्पत्ति कुर्की जैसा कदम नहीं उठाए जाने से सवाल खड़े हो रहे हैं। एसीबी और ईओडब्ल्यू के अधिकारी जिस तरीके से इन संदिग्धों की गिरफ्तारी को लेकर उदासीन रुख बनाए हुए हैं अधिकारियों की क्या मजबूरी है कि इस मामले में कार्यवाही धीमी गति से चल रही है इस मामले में नोटिस चश्मा के बावजूद भी आगे की कार्यवाही ना होना परिजनों पर नजर न बनाए रखना इस बात को इंगित करता है कि कहीं इस मामले के बड़े रसूखदारों को बचाने के लिए पुलिस कछुआ चाल से जांच की कार्यवाही को आगे बढ़ा रही है

उससे इस चर्चा को बल मिल रहा है कि इन संदिग्धों को भाजपा के ही कुछ सफेदपोश नेताओं का साथ मिल रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर साल भर बाद भी इन फरार संदिग्धों पर पुलिस का रुख सख्त क्यों नहीं हो पाया है। जबकि छोटे मामलों में आम आदमी का नाम सामने आते ही पुलिस की सख्ती और मुस्तैदी देखते बनती है।


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