बड़ी खबर :- DG मुकेश गुप्ता और IPS रजनेश सिंह के खिलाफ एंटरसेप्शन मामले में दर्ज दो FIR में कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट पेश…..ACB ने अदालत में कहा-अपराध ही नहीं हुआ था… जांच अधिकारी का कोर्ट में बयान दर्ज

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रायपुर 23 अगस्त 2024:-  भूपेश बघेल शासनकाल में तत्कालीन DG आईपीएस (रिटायर) मुकेश गुप्ता और IPS रजनेश सिंह के खिलाफ दर्ज अपराधिक मामले में सीजेएम कोर्ट में यह कहते हुए क्लोज़र रिपोर्ट पेश की है कि, जो आरोप लगाए गए वह अपराध हुआ ही नहीं है। दबंग आईपीएस के रुप में पहचाने जाने वाले मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के खिलाफ भूपेश सरकार ने अवैध इंटरसेप्शन करने का मामला दर्ज किया था, इन प्रकरणों में दोनों ही अधिकारियों ( मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह) के खिलाफ गंभीर धाराएँ प्रभावी की गई थीं।

जब भी कोई मामला पुलिस दर्ज करती है, तो उसके तीन ही अंत होते हैं। पहला पुलिस आरोप प्रमाणित पाकर आरोपी को कोर्ट में पेश करती है, दूसरा जबकि यह पाया जाए कि, अपराध हुआ है लेकिन साक्ष्य नही है तो ख़ात्मा पेश होगा, और यदि यह पाया जाए कि, अपराध ही नहीं हुआ है तो खारिजी पेश होगी। एसीबी/ईओडब्लू ने रिटायर आईपीएस मुकेश गुप्ता और आईपीएस रजनेश सिंह के खिलाफ ख़ारिजी पेश किया है।

3 साल सस्पेंड रहे IPS मुकेश गुप्ता
रिटायर्ड IPS मुकेश गुप्ता 1988 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के अफसर हैं। नान घोटाला मामले में कथित संलिप्तता को लेकर प्रदेश सरकार ने उन्हें 9 फरवरी 2019 को निलंबित कर दिया था। उसके बाद उन पर FIR भी दर्ज की गई। वो डीजी के पद पर प्रमोट हो चुके थे। सरकार ने वापस एडीजी रैंक पर रिवर्ट कर दिया था।
इस मामले में मुकेश गुप्ता को कैट से राहत मिलने के बाद राज्य सरकार ने कोर्ट में याचिका लगाई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुकेश गुप्ता के सस्पेंशन को वापस ले लिया। वो 30 सितंबर 2022 को रिटायर होने वाले थे उसके ठीक 14 दिन पहले उनका सस्पेंशन खत्म कर दिया गया था।

क्लोजर रिपोर्ट में जाँच एजेंसी ने कोर्ट से कहा – कोई अवैध इंटरसेप्शन नहीं हुआ

मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के खिलाफ दर्ज दोनों ही मामलों में एसीबी ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करते हुए कोर्ट से यह कहा है कि, बगैर अनुमति इंटरसेप्शन का आरोप ही फ़र्ज़ी है। कोर्ट से एसीबी/ इओडब्लू ने कहा है कि, जो भी इंटरसेप्शन हुआ वह नियमतः और विधिक अधिकारिता से किया गया।

जी पी सिंह ने दबाव/धमकी देकर बयान दर्ज कराए

राज्य सरकार की क्लोजर रिपोर्ट में उल्लेख है कि, मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के खिलाफ दर्ज एफ़आइआर में गवाहों से बयान एसीबी/ईओडब्लू के तत्कालीन निदेशक जीपी सिंह ने यह दबाव और डर दिखाकर कराया कि, यदि मन मुताबिक़ (मुकेश और रजनेश के खिलाफ ) बयान नहीं दिया तो वह गंभीर नुक़सान करेगा।

कोर्ट को यह भी बताया गया है

क्लोज़र रिपोर्ट में जिस एसीबी ने पहले दो दो एफ़आईआर क़ायम की थी, उसी एसीबी ने कोर्ट को बताया है कि, एसीबी ने जिन धाराओं में अपराध दर्ज किया उन धाराओं में अपराध दर्ज करने का अधिकार ही नहीं था। कोर्ट से यह भी कहा गया है कि, नान मामले में और आलोक अग्रवाल मामले में प्रकरण का चालान पेश हो चुका था। प्रकरण का न्यायालय में विचारण जारी था लेकिन फिर भी एसआईटी का गठन कर दिया गया। एसआईटी को अग्रिम विवेचना की अनुमति कोर्ट से नहीं मिली लेकिन इसके बावजूद एसीबी ने एफ़आईआर दर्ज की और विवेचना की जो न्यायालय के आदेश की अवहेलना थी।

क्लोजर में ख़ारिजी का ज़िक्र ख़ात्मा का नहीं

एसीबी/ईओडब्लू का पत्र क्रमांक 07/2019/पी-7447/2024 जो कि क्लोजर रिपोर्ट के साथ अदालत में जमा किया गया है। उसमें दोनों ही एफ़आईआर में अदालत के सामने एफ़आईआर ख़ारिज करने की बात कही गई है। एसीबी ने जून माह में खारिजी को कोर्ट में पेश करने पत्र जारी किया और 5 जुलाई 2024 को क्लोज़र कोर्ट में पेश कर दिया गया। गुरुवार 22 अगस्त को सीजेएम कोर्ट में इस प्रकरण के तत्कालीन विवेचना अधिकारी अलबर्ट कुजूर का बयान भी दर्ज हो चुका है।

ख़ात्मा और खारिजी में अंतर

जब भी कोई मामला पुलिस दर्ज करती है, तो उसके तीन ही अंत होते हैं। पहला पुलिस आरोप प्रमाणित पाकर आरोपी को कोर्ट में पेश करती है, दूसरा जबकि यह पाया जाए कि, अपराध हुआ है लेकिन साक्ष्य नही है तो ख़ात्मा पेश होगा, और यदि यह पाया जाए कि, अपराध ही नहीं हुआ है तो खारिजी पेश होगी। एसीबी/ईओडब्लू ने रिटायर आईपीएस मुकेश गुप्ता और आईपीएस रजनेश सिंह के खिलाफ ख़ारिजी पेश किया है।

क्या था आरोप

मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह पर भूपेश बघेल सरकार ने अपराध क्रमांक 6/19 और 7/19 के तहत मामला दर्ज किया था। इन दोनों एफ़आइआर में, 166,166 (ए)

(बी), 167,193,196,201,466,467,471,120 बी और 25,26 सहपठित धारा 5(2) भारतीय टेलीग्राफ एक्ट की धाराएं प्रभावी की गई थीं। इन एफ़आईआर के ज़रिए आरोप था कि सेवानिवृत्त आईपीएस मुकेश गुप्ता जो कि तत्कालीन इंटिलिजेंस चीफ तथा एसीबी/ईओडब्लू के चीफ़ थे, और आईपीएस रजनेश सिंह जो कि तब एसीबी के एसपी और एटीएस के नोडल अधिकारी थे। इन दोनों अधिकारियों ने विधि विरुद्ध तरीके से कॉल इंटरसेप्शन किया और आलोक अग्रवाल प्रकरण तथा बहुचर्चित नान मामले में कथित रुप से कार्यवाही करने के लिए उपयोग किया। भूपेश सरकार ने इस प्रकरण की जाँच के लिए एसआईटी का गठन किया था। एसआईटी सदस्य अनिल बख्शी के निष्कर्षों के आधार पर एफआइआर दर्ज की गई थी। आरोप यह भी लगाए गए कि नान प्रकरण में पेश चालान से इंटरसेप्शन के ट्रांसस्क्रिप्ट के बड़े हिस्से को विधि विरुद्ध तरीके से पहले हटाया गया और फिर चालान पेश किया गया।

कांग्रेस सरकार ने दर्ज कराई थी FIR

2018 के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में सत्ता बदल गई। 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके कुछ दिनों बाद नान घोटाले की जांच के लिए SIT का गठन किया गया। इस दौरान सामने आया कि नान घोटाले की जांच के दौरान ACB मुखिया मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह ने फर्जी दस्तावेज बनाए। अवैध रूप से अफसरों-नेताओं के फोन टेप किए गए।

इस आरोप के आधार पर सरकार ने मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को निलंबित कर दिया। उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक एसआईटी के खिलाफ कोर्ट गए और स्टे ले आए। मुकेश गुप्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से कार्रवाई पर स्टे लगवाने में कामयाब हो गए।


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