दुर्ग 9 अगस्त 2024 :- न्यायिक मजिस्ट्रेट विवेक नेताम के न्यायालय में धारा 138 नेगोशिएट के मामले में 14 मंडलम इन्वेस्टमेंट और फाइनेंस कंपनी की ओर से प्रस्तुत परिवार प्रकरण में अभियुक्त को दोष मुक्त कर दिया है।
न्यायालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभियुक्ता श्रीमती सारिका मिश्रा के विरूद्ध धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 के अंतर्गत आरोप है कि अभियुक्ता ने प्रगति महिला नागरिक बैंक शाखा सेक्टर 2 भिलाई (छ०ग०) के चेक क्रमांक 402825 दिनांक 21/06/2016 राशि 7,06,905/- रुपये (अक्षरी सात लाख छः हजार नौ सौ पांच रूपये) परिवादी को अपने विधिक दायित्वों के निर्वहन हेतु दिया, जिसे परिवादी द्वारा संग्रहण हेतु अपने बैंक आई०सी०आई०सी०आई० बैंक शाखा भिलाई में जमा किये जाने पर उक्त चेक “Funds Insufficient” की टीप के साथ बैंक द्वारा अनादरित कर परिवादी को वापस कर दिया गया ।
– चेक के अनादरण की विधिक सूचना को परिवादी की ओर से अभियुक्ता को भेजे जाने पर, इसके उपरांत भी नियत अवधि के भीतर परिवादी को रकम अदा नहीं कर की धारा 138 के अधीन दण्डनीय अपराध कारित करने का अभियोग है।
– परिवाद का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी कंपनी चोला मंडलम इन्वेस्टमेंट एण्ड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड एक फायनेंस कंपनी है जो फाइनेंस का कार्य करती है। अभियुक्ता के द्वारा परिवादी कंपनी से वाहन ए० एल० एच० सी० व्ही० 2516, वाहन क्र. सी जी 04/जे.सी./2960 की खरीदी हेतु दिनांक 30/11/2015 को 6,50,000/- रूपये (अक्षरी छः लाख पचास हजार रूपये) का फाइनेंस कराया गया था, जिसके संबंध में एक अनुबंध क्र. XSHUBLA 1550183 अभियुक्ता एवं परिवादी के मध्य निष्पादित किया गया
उक्त फाइनेंस रकम की अदायगी हेतु अभियुक्ता द्वारा परिवादी को एक अपने बैक, प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक, शाखा सेक्टर 2, भिलाई (छ०ग०) का चेक, चेक क्र. 402825, चेक दिनांक 21/06/2016, राशि 7,06,905/- रूपये (अक्षरी सात लाख छः हजार नौ सौ पांच रूपये) का परिवादी को अपने विधिक दायित्वों के निर्वहन हेतु दिया । उक्त चेक को परिवादी द्वारा संग्रहण हेतु अपने खाते वाले बैंक आई.सी.आई.सी.आई. बैंक, शाखा भिलाई में जमा किये जाने पर, उक्त चेक “Funds Insufficient ” की टीप के साथ बैंक द्वारा अनादरित कर परिवादी को ज्ञापन सहित वापस कर दिया गया। चेक अनादरण होने पर परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 29/07/2016 को रजिस्टर्ड नोटिस प्रेषित किया ।
भियुक्ता द्वारा परिवादी कंपनी से वाहन ए० एल० एच० सी० वी० 2516 पंजीयन क्र. सी जी 04 जे सी 2960 की खरीदी हेतु दिनांक 30/11/2015 को 16,50,000/- रूपये (सोलह लाख पचास हजार रूपये) का फायनेंस कराया गया था जिसके संबंध में एक अनुबंध क्र. XSHUBLA 1550183 अभियुक्ता एवं परिवादी कंपनी के मध्य निष्पादित किया गया था । अभियुक्ता द्वारा उक्त फाइनेंस रकम के भुगतान स्वरूप अपने खाते के चेक दिनांक 21/06/2016 का ₹7,06,905/- (अक्षरी सात लाख छः हजार नौ सौ पांच रूपये) का चेक क्रमांक-402825 का बैंक प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक, शाखा सेक्टर 2 भिलाई छ०ग० का इस आश्वासन के साथ परिवादी को दिया कि उक्त चेक बैंक में जमा करने पर भुगतान हो जाएगा ।
परिवादी ने अपने प्रतिपरीक्षण में यह भी स्वीकार किया है कि अनुबंध करते समय 2 साक्षियों का हस्ताक्षर होना अनिवार्य है, उक्त अनुबंध में 2 साक्षियों का हस्ताक्षर नहीं होने से अनुबंध अवैध माना जाता है, प्रतिमाह फाइनेंस की 25,330/- रूपये थी, अभियुक्ता ने उक्त फाइनेंस की राशि 2,04,100/- रूपये अदा की थी। अभियुक्ता को वाहन फाइनेंस की गई उक्त वाहन अन्य व्यक्ति को उच्चतम मूल्य पर विक्रय कर दिया गया है। अधिवक्ता द्वारा चेक अनादरण की सूचना के संबंध में नोटिस अभियुक्ता को प्राप्त नहीं हुआ था ।
परिवादी संस्था को 2,04,100/- रूपये का भुगतान किया था। अतः परिवाद प्रस्तुति के समय परिवादी को आरोपी से चेक राशि 7,06,905/-रु० से कम की राशि लिया जाना शेष होना स्पष्ट होता है। इसके अतिरिक्त परिवादी ने स्पष्ट रूप से अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि अभियुक्ता को जिस वाहन के संबंध में फाइनेंस की गई थी उसे अन्य व्यक्ति को उच्चतम मूल्य पर विक्रय कर दिया गया है। यद्यपि परिवादी द्वारा अपने प्रतिपरीक्षण में अभियुक्ता को बिना सूचना दिये अन्य व्यक्ति को वाहन विक्रय किये जाने से इंकार किया है किंतु उक्त सूचना प्रकरण में संलग्न नहीं होने से परिवादी का कथन उचित एवं सदभाविक प्रतीत नहीं होता है।
उन्मोचन हेतु चेक क्रमांक-402825, ₹7,06,905/- (अक्षरी सात लाख छः हजार नौ सौ पांच रूपये) की राशि का चेक दिया था व उक्त चेक उसके खाते में फंडस इनसफिसियेंट होने के कारण अनादरित हो जाने पर परिवादी द्वारा उक्त राशि की अदायगी हेतु भेजे गए मांग सूचना पत्र प्राप्त होने के बाद भी अभियुक्ता ने भुगतान नहीं किया। परिणामस्वरूप अभियुक्ता श्रीमती सारिका मिश्रा को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अधीन दण्डनीय अपराध के आरोप से दोषमुक्त कर स्वतंत्र किया जाता हैं।
प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट विवेक नेताम ने परिणामस्वरूप अभियुक्ता श्रीमती सारिका मिश्रा को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अधीन दण्डनीय अपराध के आरोप से दोषमुक्त कर स्वतंत्र किया जाता हैं। इस मामले में बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता नीरज गुप्ता ने पैरवी की जबकि परिवादी के अधिवक्ता देवेंद्र साहू थे।