सुप्रीम कोर्ट ने भूपेश, चैतन्य को हाईकोर्ट जाने का निर्देश

⭕️ पीएमएलए की धाराओं 50, 63 पर संवैधानिक चुनौती हेतु नई याचिका की अनुमति

⭕️ गिरफ्तारी से संरक्षण व जांच को चुनौती पर हाईकोर्ट से शीघ्र सुनवाई का आग्रह; धाराओं 50 व 63 पर नई याचिका 6 अगस्त को होगी
⭕️ वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल ने दी पैरवी; एएसजी एस.वी. राजू ने ईडी का पक्ष रखा
⭕️ इस कानूनी घटनाक्रम की खबर द हितवाद के समाचार संपादक मुकेश एस. सिंह ने छत्तीसगढ़ प्रदेश में सबसे पहले ट्वीट कर साझा की ?https://x.com/truth_finder04/status/1952304444378693815?s=4
नई दिल्ली/रायपुर/ 4 अगस्त, 2025 :- छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश जारी करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री एवं मौजूदा विधायक भूपेश बघेल और उनके पुत्र चैतन्य बघेल को गिरफ्तारी से संरक्षण और ईडी की जांच प्रक्रिया को चुनौती देने के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने हाईकोर्ट से मामले की सुनवाई “शीघ्र” करने का विशेष आग्रह भी किया।
इस कानूनी घटनाक्रम की खबर द हितवाद (The Hitavada) के समाचार संपादक एवं वरिष्ठ खोजी पत्रकार मुकेश एस. सिंह ने छत्तीसगढ़ प्रदेश में सबसे पहले अपने आधिकारिक ट्विटर (एक्स) हैंडल से साझा की थी। उनका ट्वीट लिंक यहां देखा जा सकता है –
? https://x.com/truth_finder04/status/1952304444378693815?s=46
अदालत में क्या हुआ
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कई राहतें मांगी थीं, जिनमें ईडी की जांच को निरस्त करना, गिरफ्तारी से संरक्षण, और पीएमएलए के कुछ प्रावधानों तथा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धाराओं को चुनौती देना शामिल था। इनमें धारा 44 का स्पष्टीकरण भी था, जो ईडी को बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के आगे की जांच (Further Investigation) करने का अधिकार देता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने चैतन्य बघेल की ओर से दलील दी कि जुलाई 2025 में की गई गिरफ्तारी अवैध और अनावश्यक थी, क्योंकि उनका नाम न तो किसी ईसीआईआर (ECIR) में था और न ही पूर्ववर्ती अभियोजन शिकायत (Prosecution Complaint) में। उन्होंने Vinay Tyagi बनाम राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि बिना न्यायालय की अनुमति आगे की जांच करना विधि के विरुद्ध है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भूपेश बघेल का पक्ष रखते हुए कहा कि धारा 44 का यह स्पष्टीकरण अनिश्चित काल तक आरोपपत्र दायर करने और नये आरोपियों को जोड़ने की अनुमति देता है, जिससे अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता है। उन्होंने इसे “पीस-मील चार्जशीट” की प्रवृत्ति बताया, जो अभियुक्तों को लगातार कानूनी दबाव में रखती है।
पीएमएलए धाराओं 50 और 63 पर नई बहस
पीठ ने पीएमएलए की धाराओं 50 और 63 की संवैधानिक वैधता को लेकर नई रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर करने की अनुमति दी और इसे 6 अगस्त 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। धारा 50 ईडी को तलब करने और बयान दर्ज करने का अधिकार देती है, जबकि धारा 63 गैर-अनुपालन पर दंड का प्रावधान करती है। न्यायालय ने टिप्पणी की – “यदि हाईकोर्ट्स इन मुद्दों की सुनवाई नहीं कर सकते, तो ये संवैधानिक मंच किसलिए हैं?”
ईडी का पक्ष
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने ईडी की ओर से दलील दी कि भूपेश बघेल के खिलाफ वर्तमान में कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं है, जबकि चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी कानूनी प्रावधानों के अनुसार हुई। उन्होंने कहा कि ईडी को आगे की जांच करने का पूर्ण अधिकार है, खासकर तब जब मामला बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हो।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
सुनवाई के अंत में पीठ ने डॉ. सिंघवी के बयान को रिकॉर्ड करते हुए याचिकाएं वापस लेने की अनुमति दी, ताकि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत राहत के लिए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकें और संवैधानिक चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट में अलग याचिका दायर कर सकें। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकों की स्वतंत्रता को अनिश्चितता में नहीं छोड़ा जा सकता और जांच एजेंसियों को पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए।