भिलाईनगर 3 जून 2023। अंतरराष्ट्रीय श्री राम कथा वाचक श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि यहां बच्चों को हम किताबों में जो पढ़ाया जा रहा है उसकी उपयोगिता ही नहीं है गुलामी पराजय के विषय में पढ़ाते हैं जबकि देश के बच्चों को चैतन्य महापुरुषों के विषय में पढ़ाना चाहिए जो परीक्षा होती है तो उसमें ऐसे विषय आते हैं जिसे पढ़ाया ही नहीं गया है स्वामी विवेकानंद मेरे आदर्श रहे हैं बच्चों में संस्कार परिवार से आता है इसे घोलकर कर नहीं पिलाया जा सकता अगर संस्कार देना है तो बचपन से ही ध्यान देना होगा। पत्रकारों से शिक्षाविद आई पी मिश्रा के नेहरू नगर पश्चिमी स्थित निवास पर चर्चा करते हुए कही उन्होंने पत्रकारों से चर्चा के दौरान राजनीति व बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री व सीहोर वाले महाराज पर किसी भी प्रकार से टिप्पणी करने से इंकार कर दिया उनका कहना है कि वह अपनो से छोटे पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी कभी नहीं करते और ना ही वे राजनीति पर चर्चा करना चाहते हैं महा में केवल दो दफा राम कथा का प्रवचन करने के अलावा जून-जुलाई में वे कथा वाचन नहीं करते।
लोग उच्च शिक्षा देने बच्चों को बाहर भेजते हैं। हॉस्टल में रहकर ही बच्चे बढ़ाई करते हैं। इसलिए घर से दूर रहने से वे संस्कार से भी दूर होते जा रहे हैं। जबकि बच्चे परिवार के वातावरण से ही संस्कार सीखते हैं। महाराज ने कहा कि मनुष्य तीन प्रकार से सोचता है। ऐसे इसलिए हो रहा है कि व्यक्ति वर्तमान में जीना चाहता है। बच्चों को संस्कार देने के लिए पैरेंट्स को शुरू से ही कड़ाई से रखना चाहिए। संस्कार हाथ में रखकर नहीं दिया जा सकता है। इसलिए आज आप जो बच्चों को देंगे तो ही वे उसे जीवन में उतारेंगे।
यह बातें आज शिक्षाविद् आईपी मिश्रा के नेहरू नगर निवास पर पत्रकार वार्ता में प्रसिद्ध कथा वाचक प्रेमभूषण महाराज ने कही।
एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि इस धरा में भगवान के बाद पहला सत्य अर्थ है। बिना अर्थ के आज कोई भी कार्य नहीं किए जा सकते हैं। अर्थ एक महिमा है।महाराज ने आगे कहा कि आज जो भी किताबों में पढ़ाई जा रही है उसकी उपयोगिता नहीं है। इतिहास में देखें तो भारत की गुलामी को पढ़ाया जाता है जबकि चैतन्य महापुरुषों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए] यह देश का दुर्भाग्य है। वहीं विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी के समय युवाओं को उन चीजों को पढ़ना पड़ता है जिन्हें उन्हें कभी पढ़ाया ही नहीं गया है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति विनाश की ओर ले जा रही है। बच्चे संस्कार व धर्म भूलते जा रहे हैं।
युवाओं में भारतीय संस्कृति को लेकर रूझान कम होता जा रहा है जबकि विदेश के लोग भारतीय संस्कृति को अपना रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि लोगों को लग रहा है कि उन्हें स्वतंत्रता चाहिए] जबकि व्यक्ति मर्यादा में रहकर ही स्वतंत्र है। जिन परिवारों में मुखिया का सांस्कारिक प्रेशर नहीं है] वहां ऐसी स्थिति है।
शनिवार की सुबह आई पी मिश्रा जी के निवास पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रेम भूषण जी महाराज ने कहा कि अगर हम अपने बच्चे को संस्कारित करना चाहते हैं तो हमें अपने घर के माहौल को उसके अनुरूप बनाने की जरूरत है। संस्कार की कोई टिकिया नहीं आती है जिसे घोलकर बच्चों को पिलाया जा सके।
हम अपने घर में जैसा जीवन जीते हैं हमारे बच्चे हफ्ते देख देखकर वैसा ही आचरण करते हैं और सीखते हैं।एक अन्य प्रश्न के सवाल में पूज्य श्री ने बताया कि समाज की बच्चियों के साथ कई प्रकार की गलत घटनाओं की सूचना आती रहती है। जिसके लिए माता-पिता भी दोषी हैं। माता पिता ने अपने बच्चियों को क्यों यह नहीं सिखाया कि उन्हें किन के साथ मिलना जुलना चाहिए। कहां जाना चाहिए फिर कहां नहीं जाना चाहिए।
बेटा हो या बेटी अगर हम उन्हें उचित शिक्षा नहीं देंगे, उनमें संस्कारों का आधान नहीं करेंगे तो उनसे हम अच्छे आचरण की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं। बेटियों के साथ अन्याय अत्याचार की घटनाएं सर्वथा निंदनीय हैं लेकिन इसके लिए हमें भी कहीं ना कहीं अपने दायित्व से इंकार नहीं करना होगा। नई पीढ़ी में संस्कारों के पुनर्प्रतिष्ठा के बाद एक ऐसी घटनाओं को रोकने में हम सक्षम हो सकते हैं।