भिलाई नगर 19 फरवरी 2023 :- सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र की मॉडेक्स योजना के तहत आनेवाला आरएमपी-3 का नया विभाग एलडीसीपी, अब अपने अपशिष्ट जल का संचयन कर इसका उपयोग सिंचाई के लिए करेगा। आरएमपी-3 परिसर में पेड़ों के लिये एक बड़ा बगीचा तैयार किया गया है, जहाँ इस अपशिष्ट जल का उपयोग किया जायगा। यहाँ मुख्यतः नीम, बादाम और अर्जुन के 100 पौधों का रोपण किया गया हैं। बीएसपी, पर्यावरण को लेकर सदा ही सजग रहा है और इन पेड़ों के जल संचयन से वातावरण तो शुद्ध होगा ही साथ ही जमीन में जल स्तर भी बढ़ेगा। इसे हाल ही में आयोजित बीएसपी की इनप्लांट क्वालिटी सर्कल प्रतियोगिता-2023 में भी प्रस्तुत किया गया है।
इस पूरे प्रोजेक्ट को महाप्रबंधक प्रभारी (आयरन) श्री तापस दासगुप्ता द्वारा प्रेरित किया गया है और इसके लिए उन्होंने शुभकामनाएं भी दी है। इसका मार्गदर्शन महाप्रबंधक प्रभारी श्री आर के मुखर्जी, महाप्रबंधक श्री राम पाल, श्री सुशांत पाल और आरएमपी-3 एलडीसीपी के अन्य अधिकारियों द्वारा किया गया है। प्रतिभागियों में फैसिलेटर के रूप में महाप्रबंधक (एलडीसीपी) श्री दिगेंद्र कुमार वर्मा, लीडर के रूप में चीफ मास्टर ऑपरेटिव श्री संजय पटले और सदस्य के रूप में श्री अशोक चौधरी हैं।
आरएमपी-3 का नया विभाग एलडीसीपी, वर्तमान में सभी पांच भट्टियों के संचालन के साथ एसएमएस और सिंटर प्लांट्स को फ्लक्स की पूर्ति कर रहा है। फ्लक्स (धूल) प्रसंस्करण अर्थात भट्ठे से निस्तापन एक उच्च तापमान प्रक्रिया है। आवश्यक तापमान को पूरा करने के लिए कोक ओवन गैस का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है,
जो बीएसपी के कोक ओवन विभाग का उत्पाद है। इसलिए इस गैस से चलने वाले भट्टे के उत्पाद सबसे किफायती हैं। भट्ठों के संचालन में पानी का उपयोग विभिन्न प्रयोजनों जैसे: उपकरणों को ठंडा करना, गैस लाइनों पर यू-सील और पानी के कॉलम में, गैस लाइनों व पानी के स्तंभों को बाहर निकालने आदि के लिए किया जाता है। उपरोक्त प्रयोजन के लिए उपयोग किया गया पानी कई बार प्रयुक्त होने के बाद बेकार हो जाता है और नाली आदि में चला जाता है। एलडीसीपी के किनारे, बड़ी खुली भूमि है जो पहले स्लैग डंप यार्ड था, इसलिए पूरा क्षेत्र चट्टानी स्लैग से भरा हुआ है। इस क्षेत्र में वृहद वृक्षारोपण कर बगीचा बनाया गया है।
आरएमपी-3 समूह ने कुछ पेड़ लगाए, जिसके लिए सिविल इंजीनियरिंग विभाग ने पौधे, काली मिट्टी उपलब्ध कराने में सहयोग प्रदान किया। इसकी फैंसिंग आदि की व्यवस्था आंतरिक संसाधनों से की गयी। रोपे गए पौधों को नियमित पानी की आवश्यकता को पूरी करने हेतु आरएमपी-3 टीम ने उपयोग किए गए अपशिष्ट जल को एकत्रित करने का निर्णय लिया और अब, इस जल से ही सिंचाई की जा रही है।
अपशिष्ट जल को संचयन के लिए ले जाने से पहले टार के लिए कुछ फ़िल्टरिंग व्यवस्था की जाती है, जो कोक ओवन गैस से दूषित हिस्से को पृथक कर लेता है। इस निस्पंदन को सोख्ता गड्ढे बनाकर टार के अवशेष को जमा किया जाता है। फिर इस पानी को संचयन के लिए बड़े गड्ढों में ले जाया जाता है। यह सर्किट दो सेटों में बनाया गया था एक- बड़े क्षेत्र को कवर करने के लिए और दूसरा- स्टैंड बाय रखने के लिए।
साप्ताहिक रूप से एक-एक करके अपशिष्ट जल संचयन के सर्किट का उपयोग किया जाता है। इस बगीचे को बनाने से यह पानी जमीन में अवशोषित होता है और पेड़ों को पानी मिल जाता है, पेड़ बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के बड़े होते हैं, जनशक्ति और ताजे पानी का उपयोग कम हो जाता है, किसी फ्रेश पानी की लाइन आदि की आवश्यकता नहीं होती है, सोख्ता गड्ढों से एकत्र किए गए टार अवशेषों को उचित तरीके से पुनर्चक्रित किया जाता है, जिससे कोई बर्बादी नहीं होती है, भट्ठे का कामकाज और उत्पादन सामान्य रूप से होता रहता है और कर्मचारियों को भविष्य में ऐसे ही कार्य करने के लिए प्रेरणा मिलती है इत्यादि जैसे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।