भिलाई नगर 13 मार्च 2024:- ” भारतीय ज्ञानपरम्परा से ही विकसित भारत की रचना सम्भव है। संस्कृत में ये परम्परा सुरक्षित है।वेद, रामायण, महाभारत,गीता, कालिदास और तुलसीदास आदि की प्रेरणा से विकास होगा। हमारी विरासत में धर्म और साहित्य के साथ विज्ञान की भी सभी शाखायें मौजूद हैं। पाश्चात्य इतिहासकार कोलब्रुक के अनुसार कणाद और प्रशस्तपाद आदि ने हजारों वर्ष पूर्व अणु-परमाणु और गुरुत्वाकर्षण आदि की खोज करली थी। इसलिये संस्कृत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार विकसित और सक्षम भारत रचना की शक्ति है।” ये उद्गार हैं भिलाई के संस्कृत शिक्षाविद् आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा के।


वे शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में ” भारतीय ज्ञानपरम्परा में विकसित ज्ञान परम्परा में ही विकसित भारत की परिकल्पना ” विषयक राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के सत्राध्यक्ष की आसन्दी से बोल रहे थे। आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने बताया कि ज्ञान -विज्ञान के साथ संस्कृत में निहित सामान्य ज्ञान भी विद्यार्थियों को लोकसेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक पदों पर नियुक्त कराता है। देश के केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों के साथ छ.ग.संस्कृत विद्या मण्डल भी भाषा प्रशिक्षण, ज्योतिष एवं कर्मकांड प्रशिक्षण आदि रोजगार उपलब्ध कराने वाली योजनायें बना रहा है।






छत्तीसगढ़ में संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हो, ऐसा संकल्प भी ध्वनिमत पास होगया है। ज्ञातव्य है ,डाॅ.शर्मा लिखित वाल्मीकि, व्यास, कालिदास आदि से छत्तीसगढ़ को प्रणाम सहित जोड़ने वाली एक शोधपूर्ण पुस्तक “छत्तीसगढ़ में संस्कृत” का प्रकाशन संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 2008 में किया गया, उसमें भी छत्तीसगढ़ संस्कृत विश्वविद्यालय की आवश्यकता बताई गई थी। आयोजकों द्वारा शाॅल- श्रीफल और स्मृतिचिह्न भेट कर आचार्य डा.शर्मा का सम्मान किया गया।





डाॅ. शर्मा ने वर्तमान शोध संगोष्ठी में मुख्य रूप से उपस्थित पाणिनि वैदिक संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति आचार्य विजय कुमार सी जी को भी ” छत्तीसगढ़ में संस्कृत ” पुस्तक भेंट की। संगोष्ठी की अध्यक्षता कालेज के प्राचार्य डॉ.के.एल.टांडेकर ने की। संयोजकत्व संस्कृत विभागाध्यक्षा डॉ. दिव्या देशपाण्डेय का था।




मौके पर सागर विश्वविद्यालय के डा.नौनिहाल गौतम, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के डा.जगदीश तिवारी, महिला महाविद्यालय राजनांदगांव की डा.सुषमा तिवारी , शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर महाविद्यालय दुर्ग के प्रो.जनेद्र कुमार दीवान एवं शासकीय महाविद्यालय वैशाली नगर के प्रो.महेश कुमार अलेन्द्र समेत कई संस्कृत विद्वान् और शोधार्थी उपस्थित थे।


