घृणा के समय में प्रेम: अंतिम दिन इंडियन रोलर बैंड ने मचाया धमाल….
एकजुट होकर ही नफ़रत का सामना किया जा सकता है…
चर्चा, कविता पाठ, कहानी पाठ व रोलर बैंड की शानदार प्रस्तुति के साथ ‘घृणा के समय में प्रेम’ विषय पर दो दिवसीय महत्वपूर्ण आयोजन का राजधानी में समापन….

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रायपुर 12 फरवरी 2023। साहित्य अकादमी, छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद ‘घृणा के समय में प्रेम’ विषय पर दो दिवसीय महत्वपूर्ण आयोजन दूसरे व अंतिम दिन रविवार को चर्चा, कविता पाठ, कहानी पाठ के साथ ही इंडियन रोलर बैंड की करीब एक घंटे की शानदार प्रस्तुति की गई। पूरे कार्यक्रम में सुबह से शाम तक नौजवानों की अच्छी भागीदारी रही।

रविवार को सुबह दूसरे दिन के अंतिम सत्र में ‘घृणा का प्रतिवाद: लेखकों और कलाकारों की भूमिका’ विषय पर प्रबुद्धजनों ने चर्चा की। गोष्ठी में वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कहा कि आज राजनीतिक विफलताओं को छिपाने के लिए धर्म का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को आगे किया जा रहा है। आज की सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या धर्मों को घृणा व सांप्रदायिक हिंसा से मुक्त किया जा सकता है। आज लेखक की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि वह यह पहचाने कि नफरत के स्रोत क्या है और वह कैसे दूर हो सकती है। उन्होंने कहा कि एकजुट होकर ही नफ़रत का सामना किया जा सकता है।


‘आलोचना’ के संपादक आशुतोष कुमार ने कहा कि प्रेम हमेशा प्रतिरोध के साथ जुड़कर ही सार्थक होता है। हमें याद रखना चाहिए कि घृणा गैर-बराबरी को बनाए रखने का एक तरीका है। हमें घृणा के ठोस रूपों को और उनके अन्याय व शोषण के साथ रिश्तों को पहचानना होगा और उसके मुकाबले कि लिए ठोस रणनीति बनानी होगी।


युवा कवि व आलोचक अंशु मालवीय ने कहा कि घृणा सबसे पहले लोगों के बीच के यकीन को तोड़ देती है, फिर हमारे सामूहिक तर्क और विवेक को धीमा कर देती है। जब सामूहिक रूप से तर्क और विवेक का स्तर नीचा होता जाता है, तब उस स्थिति को फासीवाद कहा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सद्भाव और शांति का कोई आंदोलन आज नहीं है, गांधी ने यह आंदोलन किया था। आज यह आंदोलन फिर से पैदा करना होगा।


लेखक व पत्रकार विजेंद्र सोनी ने कहा कि मौजूदा समय में नफरत यूं ही नहीं पैदा हो गई है, उसके लिए डर का माहौल बनाया गया है। विभाजन के समय भी एक नफरत पैदा हुई थी, उस घृणा को हमने बहुत जल्दी समाप्त कर लिया था। तब राज नेतृत्व की यह जिम्मेदारी थी कि समाज में डर का माहौल नहीं बनने दे। मगर आज विडंबना यह है कि पिछले आठ नौ सालों से हुकूमत ही डर का माहौल पैदा कर रही हैं।


युवा लेखिका अनुपम सिंह ने कहा कि धर्म राजनीति और पूँजी का गठजोड़ आज हिंसा के रुझान को फैलाने के लिए जिम्मेदार है। आज भारत में भीड़तंत्र को जिस तरह बढ़ाया जा रहा है, वह बड़े पैमाने पर समाज को असंवेदनशील बना रहा है। उन्होंने कहा कि प्रेम का पंथ कठिन है, वह तलवार की धार पर चलने के समान है। प्रेम के रास्ते पर चलने वालों को बहुत धैर्यवान होना होता है। साहित्यकार वंदना चौबे ने कहा प्रेम व घृणा को संदर्भों के भीतर समझना चाहिए। गोष्ठी का संचालन पत्रकार व लेखक राजकुमार सोनी ने किया।


दोपहर को कविता पाठ का सत्र हुआ। इसमें नामी व युवा कवियों विष्णु नागर, नासिर अहमद सिकंदर, राकेश पाठक, रजत कृष्ण, संजय शाम, अंशु मालवीय, अदनान कफ़ील दरवेश और बच्चालाल उन्मेष ने अपनी कविताएं पढ़ीं। कविता पाठ सत्र का संचालन युवा लेखिका अनुपम सिंह ने किया। इसके बाद हुए कहानी पाठ के सत्र में राकेश मिश्र और श्रद्धा थवाईत ने अपनी कहानियों का पाठ किया। कहानी पाठ सत्र का संचालन विजेंद्र सोनी ने किया।


शाम को इंडियन रोलर बैंड ने घृणा के विरोध में प्रेम के बहुत से गीत गाए, जिन्हें बहुत पसंद किया गया। इंडियन रोलर बैंड के गाए गए गीतों में ‘बेखौफ आज़ाद… मज़हबों से आगे’, ‘आबाद रहेंगे वीराने…शादाब रहेंगी जंजीरें’, ‘खून के छीटों से लिखा है मातम, जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे मारे जाएंगे’ को खूब तालियां मिली और हॉल ‘वंस मोर’ से गूंजता रहा। अंत में उपस्थित सभी लोगों ने घृणा के इस दौर को प्रेम से खत्म करने का संकल्प दोहराया। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने उपस्थिति के लिए सभी का आभार जताया।


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