महाशिवरात्रि पर्व – अंदर की ओर मुड़ना” ही मनुष्यों के कल्याण और मुक्ति का इकलौता साधन है – योग गुरु महेश अग्रवाल

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भोपाल 18 फरवरी 2023 : महाशिवरात्रि के अवसर पर आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र के योग साधकों द्वारा पर्व कलिया सोत डेम के मध्य स्थित प्राचीन विश्वनाथ मंदिर पर धूमधाम से सामूहिक योग साधना एवं आदि योगी भगवान शिव की पूजन अभिषेक करके मनाया गया। इस अवसर पर मंदिर के महंत सुनीलसिंह, सुमित दास योग गुरु महेश अग्रवाल उपस्थित रहें

योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि महाशिवरात्रि पर्व मानवता की रक्षा की प्रार्थना करने का दिन है, जब बड़े लोग लड़ते हैं तो छोटे या तो सहम जाते हैं, दर्शक बन जाते हैं या भाग जाते हैं। युद्ध तो होता ही विनाशकारी है। भगवान शंकर से विनती करें कि महाशक्तियां टकराएं नहीं, बल्कि एक होकर विश्व की सर्वशक्ति बनें।शिवरात्रि की तैयारी के बीच अपनी प्रार्थना में परमशक्ति से निवेदन करें कि लड़ने वालों को शांति की प्रेरणा दें, पूरी मानवता की रक्षा करें।
आदियोगी ने व्यक्तिगत रूपांतरण के साधन दिए क्योंकि यही संसार के रूपांतरण का एकमात्र उपाय है। उनका बुनियादी संदेश है, “अंदर की ओर मुड़ना” ही मनुष्यों के कल्याण और मुक्ति का इकलौता साधन है।’ अब समय आ गया है कि हम मनुष्य के कल्याण के लिए चेतना संबंधी तकनीकों के साथ काम करें।

तनाव प्रबंधन भगवान शंकर से सीखें – जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि (जल और आग की दुश्मनी) – चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर (अमृत और जहर की दुश्मनी). – शरीर मे भभूत और भूत का संग ( भभूत और भूत की दुश्मनी) – गले मे सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर ( तीनो की आपस मे दुश्मनी) – नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह ( दोनों में दुश्मनी) – एक तरफ तांडव और दूसरी तरफ गहन समाधि ( विरोधाभास) – देवाधिदेव लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन – भगवान विष्णु इन्हें प्रणाम करते है और ये भगवान विष्णु को प्रणाम करते है। इत्यादि इतने विरुद्ध स्वभाव के वाहन और गणों के बाद भी, सबको साथ लेकर चिंता से मुक्त रहते है। तनाव रहित रहते हैं और हम लोग विपरीत स्वभाव वाले सास-बहू, दामाद-ससुर, बाप-बेटे , माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी इत्यादि की नोकझोंक में तनावग्रस्त हो जाते है। ऑफिस में विपरीत स्वभाव के लोगों के व्यवहार देखकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।

भगवान शंकर बड़े बड़े राक्षसों से लड़ते है और फिर समाधि में ध्यानस्थ हो जाते है, हम छोटी छोटी समस्या में उलझे रहते है और नींद तक नहीं आती। युगनिर्माण में आने वाली कठिनाई से डर जाते है, सँगठित विपरीत स्वभाव वाले एक उद्देश्य के लिए रह ही नहीं पाते है। भगवान शंकर की पूजा तो करते है, पर उनके गुणों को धारण नहीं करते।


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