महिला दिवस पर एमजे कॉलेज में हुई सार्थक विचार गोष्ठी

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भिलाई नगर 9 मार्च 2023:. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में एमजे कालेज में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी में पद्मश्री उषा बारले, स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ डॉ मानसी गुलाटी, कार्डियो वैस्कुलर सर्जन डॉ सुरप्रीतब चोपड़ा, पुलिस अधिकारी इंस्पेक्टर नवी मोनिका पाण्डेय, एमजे ग्रुप ऑफ एजुकेशन की डायरेक्टर डॉ श्रीलेखा विरुलकर एवं महाविद्यालय की शिक्षा संकाय की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया ने हिस्सा लिया. सभी ने अपने विचारों को बेहद रोचक एवं मजेदार शैली में अभिव्यक्ति दी और तालियां और ठहाके बटोरे.


कार्डियो वैस्कुलर सर्जन एवं समाजसेवी डॉ सुरप्रीत चोपड़ा ने कहा कि महिला और पुरुष दोनों के लिए समाज ने कुछ जिम्मेदारियां तय की थीं. यह गलत नहीं है. ये दोनों ही कार्य जरूरी हैं. जितना जरूरी बाहर जाकर काम करना या रोजगार करना है, उतना ही जरूरी घर गृहस्थी को संभालना या बच्चों की परवरिश करना भी है. हालांकि यह तय करने का अधिकार महिलाओं और पुरुषों को होना चाहिए कि वे इसमें से कौन सा रोग करना चाहते हैं. यदि पुरुष घर पर रहकर गृहस्थी संभालना चाहता है तो इसके लिए उसे ताने देना भी जेंडर बायस है. महिला यदि कुछ बनना चाहती है तो उसे केवल इसलिए रोकना कि वह औरत है, सही नहीं है. महिलाओं को करियर चुनने, उसपर आगे बढ़ने और समाज में अपना योगदान देने का भी उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुषों को.


पद्मश्री उषा बारले ने कहा कि महिलाएं ही पुरुषों को जन्म देती हैं, पाल पोशकर बड़ा करती हैं. उन्होंने बताया कि बचपन में जब वे मंचीय कार्यक्रम करती थीं तो पिताजी बहुत नाराज होते थे पर यह नाराजगी उनकी सुरक्षा की चिंता से जुड़ी थीं. एक बार तो गुस्से में उन्होंने उसे कुएं में डाल दिया. वह तो गनीमत है कि कुएं में पानी कम था और उन्हें बाल्टी डालकर सुरक्षित निकाल लिया गया. पर जब उन्होंने गाना नहीं छोड़ा तो उसी पिता ने हर कदम पर सहयोग किया. बाद में यही सहयोग पति से भी मिला और वे देश की चौथी सर्वोच्च सम्मान तक पहुंच पाईं.


स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ डॉ मानसी गुलाटी ने कहा कि महिलाओं को जितने रूप धारण करने की क्षमता ईश्वर ने दी है, उतनी शायद पुरुषों को भी नहीं दी. वह प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, डाक्टर, इंजीनियर, पायलट से लेकर वकील, टीचर पुलिस सबकुछ हो सकती है. कर्मजीवन की व्यस्तता के बीच भी वह गृहस्थी के लिए वक्त निकाल लेती है. भारत में महिलाओं को हमेशा सम्मान मिला है. हम अपने देश को, अपनी मिट्टी को भी मां और देवी मानते हैं. उसके लिए सभी अवसरों के द्वार खोल दिये गये हैं पर वह खुद ही सहजता के साथ उसे स्वीकार नहीं कर पा रही है. एक बेटे की आस में वे बार-बार गर्भधारण कर रही हैं और अपने स्वास्थ्य तथा परिवार को खतरे में डाल रही हैं. शिक्षित लोग भी इसका अपवाद नहीं हैं. उन्होंने शिक्षित समाज का आह्वान किया के वे थोड़ा समय निकालकर उन परिवारों तक भी पहुंचें जो आज भी रूढ़ियों में उलझे हुए हैं.


पुलिस की वरिष्ठ अधिकारी इंस्पेक्टर नवी मोनिका पाण्डेय ने कहा कि महिलाएं बहुमुखी प्रतिभा की धनी होती हैं. उनमें चुनौतियों को स्वीकार करने का माद्दा होता है. वह अकेले बच्चे की परवरिश कर सकती है. बच्चों को संस्कार दे सकती हैं. महिलाओं को सभी विषयों का स्वाभाविक ज्ञान होता है. आज की नारी अबला नहीं है. पर एक तबका है जो गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और रूढ़ियों में जकड़ी हुई है, हमें उन तक महिला सशक्तीकरण की मशाल को पहुंचाना है. हालांकि, इनमें से कई महिलाएं आज वह करके दिखा रही हैं जो आधुनिक समाज नहीं कर पा रहा है. वे सफलता की बुलंदियों तक पहुंच रही हैं. विज्ञापन में नारी के उपयोग पर उन्होंने कहा कि यह तो अच्छी बात है कि हम जिसपर हाथ रख दें वह सोना हो जाता है. उसकी विश्वसनीयता और स्वीकार्यता बढ़ जाती है.


एमजे ग्रुप ऑफ एजुकेशन की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर ने विज्ञापनों में महिलाओं के फूहड़ उपयोग पर अपनी आपत्ति दर्ज की. उन्होंने कहा कि किसी भी उत्पाद को, फिर चाहे वह उत्पाद केवल पुरुषों के लिए ही क्यों न हो, उसमें महिलाओं का आब्जेक्ट की तरह उपयोग किया जाता है. फिल्मों को चलाने के लिए महिलाओं के ही आयटम डांस क्यों होते हैं, पुरुषों के क्यों नहीं? महिलाओं की सुन्दरता को 24-36-24 में फिट करने की मानसिकता पर भी उन्होंने तल्ख टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि महिलाओं को केवल एक खूबसूरत आब्जेक्ट मानने की इस परम्परा पर रोक लगानी चाहिए. उन्होंने वैवाहिक विज्ञापनों में महिला के लिए सेट स्टैंडर्ड्स – सुन्दर, गोरी, स्लिम जैसी बातों पर भी आपत्ति दर्ज की.


अतिथियों को एनएसएस बैज लगाकर एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी शकुन्तला जलकारे ने सबको महिला दिवस की बधाई दी. आरंभ में सहायक प्राध्यापक दीपक रंजन दास ने विषय पर संक्षेप में प्रकाश डाला और मंच वक्ताओं को सौंप दिया. स्वागत भाषण देते हुए डॉ श्वेता भाटिया ने आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति को रेखांकित किया. धन्यवाद ज्ञापन करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे ने सभी अतिथियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि अपने अपने क्षेत्र में असाधारण सफलता अर्जित करने वाले ये महिलाएं पूरे समाज के लिए एक आदर्श का सृजन करती हैं. उनका जीवन और संघर्ष लोगों को प्रेरित करेगा.


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