सेवा की प्रतिमूर्ति: वंदनीय सरस्वती ताई आप्टे
(द्वितीय प्रमुख संचालिका, राष्ट्र सेविका समिति)


“सर्वभूतहिते रतः और पर दुःखेन दुःखितो “
अर्थात -स्वार्थ से अलग रहिकर दिन रात दूसरमन के भलाई म जुटे रहिना अऊ दूसर के दुख मे दुखी हो जाना। अइसन सुभाव के कारण ही हमर ताई जी हर समिति के जेन आदर्श के रूप म रखे गइस मातृत्व, नेतृत्व और कृतित्व जैसन गुणो के कसौटी म खरे उतरिस हवए।


ताई जी के व्यक्तित्व में भी सरलता ,सहजता,सहनशीलता,समरसता,सहकारिता,समन्वयता, सक्रियता,सदविद्या सेवा, स्नेह, अउ सभी उत्तमोतम गुण के संग्रह हवै।लेकिन ये सब्बो के विकास ल अपन लिए नही,वो तो समाज अऊ राष्ट्र बर रहिस।
ताई जी के जीवन ल हमन एक साधिका के जीवन कह सकथहन जेन 1936 ले 1994 तक मतलब 58 वर्ष के समय ल सतत् समिति कार्यरत जीवन ध्येय के ओर निरंतर, प्रतिपल आगे बढ़े वाला जीवन रहिस।ताई जी हर हजारो व्यक्तिमन ल,सेविकामन ल जोड़कर वो मन से संबंध बनाए रखत रहिस, आज तक अनेको सेविका के मन ताई जी के प्रतिमा विराजमान हवै।ओखर गृहस्थ जीवन भी एक आदर्श वस्तुपाठ रहिस ऐमा कोई दो राय नई हवै। कतकोझन ओखर छाँव म सुख शांति प्राप्त करिन हवै।कईझन तो राष्ट्र कार्य के साधक बनिन है।ताई जी के 84 वर्ष के लौकिक अऊ 58 वर्ष के साधनामय व संगठनात्मक जीवन ल शब्द मे बखान करे असंभव हवै।






वंदनीय सरस्वती ताई जी के स्मृति दिवस के अऊसर पर हमन उनकर सुरता करथन अऊ ओखर अभिनंदन के साथे-साथे उनकरे सेवा भाव लं आत्मसात् करें के कोशिश करबो ।
इंद्रधनुष के सात रंग हर जेन गुणों के प्रतीक हवै वो सब्बो गुण हमर वंदनीय ताई जी के चरित्र मं समाहित हवै।
सतेजोऽस्तु नित्यं शांतपावित्र्यस्य।
दिव्यचारित्र्यस्य नंदादीपः।।
ये श्लोक मं व्याख्यान गुणों के साक्षात रूप रहिस् वंदनीय ताई जी सरस्वती बाई आपटे राष्ट्र सेविका समिति के एहर द्वितीय प्रमुख संचालिका रहिस्।


नोनि के नामकरण :-
कोंकण मं आजर्ले नाम के छोटकुन गाँव मा अपन ननिहाल मा एक नोनी हर १७ मार्च सन् १९१० के जनम लेहिस् ओखर माँ के नाव सावित्री अऊ पिता गंगाधर पंत रहिस्। सांवर् रंग के तेज तर्रार नोनि के नामकरण महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश अऊ गुजरात ला संपन्न करे वाले तापी नदी के नाम पर रखे गईस, जेकर मतलब होथे “ताप हरण करे वाले”। तापी के एक बड़े बहिन, दो छोटे भाई अऊ दो छोटी बहिन रहिन।
सदगुण के बालघुट्टी
तापी हर कोंकण मं अधिक समय नहीं रह पाईस ६-७ बरस के होइस तव गंगाधर पंत जी के मामा लोकमान्य तिलक जी हर ओला पुणे बुला लेहिस्, पुणे के रहैया तापी अब विद्यालय जाए लगिस। ओहर नाना के संग बाजार जात-जात सुंदर कहानी मन के माध्यम से सदगुण के बालघुट्टी ला पियत रहिस्।
तापी सरस्वती बनिस्
१५ बरस के उमर मं कक्षा सातवी तक पढ़ पाए रहिस् तभीच उनकर विवाह विनायक राव आप्टे जी से तय हो गईस् ओहर पुणे के विद्यालय मं शिक्षक रहिस्। ओखर पहले पत्नी के देहांत के बाद एहर उनकर दूसर विवाह रहिस्, सन् १९२५ मं गीता जयंती के सुभ बेला मं तापी के विवाह विनायक राव आप्टे के संग हो गईस। विवाह उपरांत तापी सरस्वती विनायक आप्टे बनिस् उनकर दूसर नाव भी नदी के नाव पर रखे गए रहिस् जैसे नदी के प्रवाह हमेशा गतिमान रहीथे वैसने ही सरस्वती ताई आगे बढे वाली व अपन ध्येय विषय तक पहुंचे वाले रहिस्।


देश के परिस्तिथि पर विचार
सरस्वती ताई अपन ससुराल अऊ जेन बाड़ा मं रहत रहिस् ऊहाँ अपन हंसमुखता अऊ मिलनसार, नम्र-स्वभाव ले सब्बो झिन के मन ला जीत ले रहिस्। संझा बेरा को विनायक राव जी अपन सँगवारी मन साथ बैठक रखत रहिन जे मं देश के परिस्तिथि पर विचार किये जात रहिस्, सरस्वती ताई घरेलू कार्य ला करत-करत ओमन के गोठ ला सुनत रहिस् थोड़ा बहुत सम्झत रहिस् जेला नई समझ पात रहिस् ओला विनायक राव से पूछत् रहिस्।
परिवार
ताई जी के वैवहिक जीवन मं बसंत के बहार आ गईस ओला पुत्र रत्न के प्राप्ति होईस् जेखर नाव बसंत रखे गईस, अऊ बाद मं फिर कुमुद् अऊ विजया नाव के दु कलियाँ खिलिन, जेमा से एक हर छोटे आयु मं ही मुरझा गईस।


महिला मन मा कार्य
१९३६ मं विनायक राव जी राष्ट्रीय संघ के स्वयं सेवक बन गईस ओखर बाद उनखर दिनक्रम बहुत व्यस्त हो गईस घर मं आये जाए वाला मन के ताता लगे रहत रहिस् सब्बो झिन के आतिथ्य सत्कार मं सरस्वती जी के क्षण भर भी फुर्सत नई रहत रहिस्। पति के कार्य ला देख के ताई के मन मं विचार आईस संघ जैसे कार्य हम महिला मन बर भी बहुत जरूरी है, फेर पति के अनुमति ले २०-२५ महिला मन ला हल्दी-कुमकुम के नाव पर अपन घर मं बुलायीन सब्बो झिन के स्वागत सत्कार कर उमन के समझाइस की हम महिला मन अपन घर मं सास ससुर व सब्बो झिन के सेवा करथन तं हमन समाज व देश के सेवा काबर नि कर सकन। सब्बो झिन ला उनकर विचार बहुते पसंद आईस सरस्वती अब सरस्वती ताई के नाव से प्रसिद्ध हो गईस।

लक्ष्मी अऊ सरस्वती के मनोहारी मिलन
सरस्वती ताई से मिले बर वर्धा से लक्ष्मी केलकर आये रहिन, लक्ष्मी अऊ सरस्वती के मनोहारी मिलन हो गईस दो महिला मन एकजुट होईन, अपन देश, अपन समाज, अपन संस्कृति, अपन धरम के बारे मं सोचे लागिन अऊ अपन देश बर दुनो संगे मिल कर बहुत काम करिन।
ताई अऊ दादा शिवशक्ति के प्रत्यक्ष स्वरूप रहिन, समिति के कार्य हर बढ़त जात रहिस् १९४५ मं मुंबई अऊ १९४७ मं मीरज मं समिति के सम्मेलन होईस, काबर की अब समिति के कार्य हर केवल महाराष्ट्र तक सीमित नई रहिस् ओहर मध्यप्रदेश, पंजाब, गुजरात, दिल्ली, सिंध, जम्मू तक फैल गए रहिस्।

सेवा ही परमो धर्म:
पानशेत मं जब बाढ़ आय रहिस तव ताई जी हर घर-घर ले सामाग्री लं एकत्रित कर आपदाग्रसत मन लं वितरण करें के काज लं प्रारंभ कर दे रहिसे । यही समय मं पुणे के बहुतकेन महिला संस्थामन एक जुट होईन ।ओमा ताई जी के अहं भूमिका रहिसे । एकर अध्यक्षा गंगूताई पटवरधन जी रहिन सबो कार्यकर्तामन के साथ ओखर बहुते प्रेमपूर्वक संबंध रहिसे ।
गोवा मुक्ती संग्राम
१९४७ मं भारत अंग्रेज मन से स्वतंत्र होए रहिस् लेकिन गोवा हर पूर्तगाली मन के कब्जा मं रहिस् ओला मुक्त कराये बर “गोवा मुक्ति संग्राम समिति” बनाये गईस, गोवा ला मुक्त कराये बर महाराष्ट्र के बहुत बड़ा दायित्व रहिस्। श्री जयंतराव, दादा आप्टे ऐ समिति के कार्यवाहक रहिन, ताई जी हर निश्चित कर ले रहिस् की ओहर भी दादा के संगे सत्याग्रह मं जाहि दादा हर ताई ला कहिस् तुंहर सिवाय सत्याग्रही मन के परिवार के मनोबल ला कोनो नई बना सके। ताई हर अपन नाव के अनुसार सरस्वती मतलब रस से युक्त रहिस् प्रेम, आत्मीयता, आत्मविश्वासी, साहसी, संयमी, दूरदर्शी आदि गुणों से परिपूर्ण रहिस् अंततः अथक प्रयास के बाद १९६१ मं गोवा हर मुक्त होइस अऊ भारतीय गणराज्य के अभिन्न अंग बन गईस। गोवा मुक्ति संग्राम मं सहभागी मन के सत्कार के कार्यक्रम रखे गईस जेमा परमपूज्य बालासाहब देवरस जी द्वारा वंदनीय ताई जी के भी ओतने सत्कार होए रहिस् जितना की विनायक राव जी के।

ताई जी के मानना रहिस की समिति के काम संगठन के हे, ओखर लक्ष्य है तेजस्वी हिंदू राष्ट्र के निर्माण तेजस्विता निर्माण होहि संस्कार ले नेता, वक्ता, शिक्षक अऊ लेखक ऐ ४ झन समाज के आधार स्तंभ हवै। ओहर चाहि तो योग्य दिशा मं समाज ला मोड सकत हवै।
मार्गदर्शन
९ मार्च सन् १९९४ के पुणे में सरस्वती ताई हर अंतिम सांस लेहिस् ओखर मानना रहिस् एक सेविका ला सुदृढ़, मन से निश्चल, दृष्टि भेदक, हृदय प्रेम से पूर्ण, निष्ठवान होवे लं चाहि। जोहर व्यक्ति व्यक्ति के जोड़ के राष्ट्र कार्य बर प्रेरित करे। एक बिंदु ले जोड़े से सिंधु अपन आप बन जाथै।
अऊ अंत मं
“लो श्रद्धांजलि वंदनीय माँ, भवपुष्प से अर्चन
तेजोमय वात्सल्यमूर्ति माँ, तुमको अंतिम वंदन”।



