“हजारों परिवारों पर बना रोजी रोटी का खतरा,……सरगुजा जिले की खदान बंद होने से…..स्कूल-अस्पताल पर भी संकट…

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सरगुजा 10 सितंबर 2022:! “हजारों परिवारों पर बना रोजी रोटी का खतरा, सरगुजा जिले की खदान बंद होने से स्कूल-अस्पताल पर भी संकट पिछले लम्बे समय से राजस्थान की परसा ईस्ट एवं केते बासेन खदान के समर्थन में चल रहे अभियान के अंतर्गत परसा गाँव क्षेत्र के लोगों ने सरकार से मीडिया के माध्यम से जल्द ही योजना को शुरू कराने का अनुरोध किया है। सरगुजा जिले के परसा गाँव के करीब छः सौ से अधिक प्रतिनिधियों ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से लेकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को भी स्वहस्ताक्षरित कर पत्र लिखा है, और यह भी इशारा किया है कि यदि उनकी मांगो को अनुकूल परिणाम नहीं मिला तो उन्हें अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन करना पड़ेंगा……

पिछले कुछ महीनों से स्थानीय लोगों की रोजगार, व्यापार और विकास जो चिंता थी वह अगस्त 15 को राजस्थान सरकार की परसा ईस्ट केते बसन खदान परियोजना बंद होने से अब हकीकत बन गयी है। अब तक सेंकडो लोगों का रोजगार चले जाने से सरगुजा से पलायन शुरू हो गया है और अगर जल्द ही खदान को अगर शुरू किया नहीं जा सका राजस्थान की जनता के साथ-साथ सरगुजा के हज़ारों परिवारों का भविष्य भी अंधकारमय हो जाएगा।

“साल्हि मोड़ से परसा तक लगभग दस होटल हुआ करते थे, आज खदान बंद होने से सारी होटलें भी बंद हो गई हैं, अब चाय पानी मिलने पर भी आफत हो गई है। यह जगह आज एक सूनसान शमशान घात की तरह हो गई है। जो स्थानीय हैं वो तो परेशान हैं ही लेकिन बाहर से जो लोग काम करने के लिए इस माइन में आये थे, वो रो रहे हैं। उन पर अपने घर परिवार को चलाने का संकट आ गया है।” यह दर्द बयान किया है परसा के एक ग्रामीण और खदान में काम कर अजित राम विश्वकर्मा ने। उनका कहना है की “कुछ एनजीओ और राजनेताओं ने अपने लाभ के लिए इस खान को बंद करा के हमारे पेट पर जो लात मारी है, उन्हें सोचना चाहिए कि आज स्कूल भी बंद हो जायेगा तो हमारे बच्चे कहाँ, जाएंगे? आज 100 बेड का हॉस्पिटल बनने वाला है वो भी बंद हो जायेगा। हमें डर है कि हम सभी कहीं रोड पर न आ जाएं।” राजस्थान सरकार द्वारा चलाये जा रहे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में करीब 750 आदिवासी बच्चों को बिना कोई फीस के शिक्षण, किताबे और बस की सुविधा मिल रही है।

लेकिन यह सिर्फ किसी एक व्यक्ति का दर्द नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों कामगारों का भय है, जिन्होंने परसा खदान बंद होने के बाद अपने अस्तित्व को जीवित रखने का संघर्ष शुरू कर दिया है। दरअसल परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोयला खनन परियोजना बंद होने से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल आदि प्रकार के संकटो से जूझना पड़ रहा है। मुख्यतः उनकी आर्थिक स्थिति पर विशेष प्रभाव पड़ा है। जहाँ अभी तक इनके पास रोजगार था, वहीं इसके बंद होने से सभी लोग बेरोजगार हो गए हैं। अब इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीणों ने सरकार और नेताओं से अपनी मांगो का उचित निराकरण करने का आग्रह किया है।

“कंपनी बंद होने हमें बहुत नुकसान हो रहा है,अब कहां जायेंगे अपने छोटे-छोटे बाल बच्चों को छोड़कर। हम लोग यहां सी एस आर के काम में नौकरी मिला हुआ है। हमें कई तरह की सुविधा जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार इत्यादि के साथ साथ एम्बुलेंस सुविधा भी एक फ़ोन पर उपलब्ध हो जाती है।” ग्राम साल्हि की श्रीमती साधना ने बताया।

वहीं 2 अगस्त से धरने पर बैठे पूजितराम विश्वकर्मा ने कहा कि “मैं माइंस कंपनी में सर्वे डिपार्टमेंट में कार्यरत हूँ और अब कंपनी बंद होने पर मेरी नौकरी को भी खतरा है। इसके बंद होने से करीब आठ से नौ हजार लोग डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तौर पर बेरोजगार हो जायेंगे इसलिए हम सभी शासन से इसे चालू रखने की मांग करते हैं।”
छत्तीसगढ़ राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा की गयी लम्बी प्रक्रिया के बाद राजस्थान सरकार को इस खंड परियोजना को चलाने की अनुमति मिलने के बाद, स्थानीय निवासियों के लिए यहाँ कई विकास कार्य हुए हैं। ऐसे में जल्द ही परियोजनाओं को शुरू करने की बात दोहराते हुए प्रभावित क्षेत्र के स्थानीय लोगों ने ये भी बताया कि कुछ बाहरी लोग और फर्जी एनजीओ के साथ मिलकर, गांव वालों को इस परियोजना के खिलाफ भड़काने का कार्य कर रहे हैं। गांव वालों ने कांग्रेस के दोनों मुख्यमंत्री और गाँधी परिवार को लिखे अपने में अपने पत्रों अनुरोध किया था कि बाहरी लोगों एवं एनजीओ द्वारा क्षेत्र में चलाये जाने वाली गैरकानूनी गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए। ग्रामवासियों का कहना है की महामारी के समय पर खदान परियोजना के तहत चलने वाले जन जागरूकता अभियानों तथा गतिविधियों से उन्हें कोविड-19 से सफलता पूर्वक लड़ने की मदद मिली है।

राजस्थान की खदानों में कार्यरत रहे एक अन्य ग्रामीण ने स्थानीय मीडिया को बताया कि, करीब 8 से 9 हजार लोग है जो इस परियोजना से प्रभावित हो रहे है और बेरोजगार हो चुके हैं या तो कुछ ही दिन में हो जायेंगे। ग्रामवासियों को फिक्र है कि जब बाहरी तत्व परसा के भविष्य को अंधकार में डालकर चले जाएंगे तब वे रोजगार और विकास के लिए कई साल पीछे चले जाएंगे।

जाहिर है देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक राज्य छत्तीसगढ़ में, भारत सरकार द्वारा अन्य राज्य जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, आँध्रप्रदेश, राजस्थान इत्यादि को कोल् ब्लॉक आवंटित किये गए हैं। जिसमें राजस्थान सरकार के 4400 मेगावॉट के ताप विद्युत उत्पादन संयंत्रों के लिए सरगुजा जिले में तीन कोयला ब्लॉक परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी), परसा और केते एक्सटेंशन आवंटित किया गया है। आज राजस्थान की परसा ईस्ट एवं केते बासेन खदान पर करीब 5000 से ज्यादा परिवार निर्भर हैं और यह संख्या बाकी दो खदानों के शुरू हो जाने से तीन गुनी हो जायेगी।

इससे स्थानीय ग्रामवासियों को रोजगार के लिए पलायन करना नहीं पड़ेगा। साथ ही राजस्थान के विद्युत् निगम द्वारा सीएसआर के अनेक कार्यक्रमों का विस्तार होगा, जिसमें 100 बिस्तर वाला सर्वसुविधायुक्त अस्पताल भी शामिल है।


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