भिलाई नगर 1 जनवरी 2023 : संसार में व्यक्ति जिस प्रकार का कर्म करता है उसी प्रकार के युग में उसका जीवन भी व्यतीत होता है। सत्कर्म में निरंतर गति रखने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी कलयुग आता ही नहीं है वह तो हमेशा सतयुग में ही जीवन व्यतीत करता है।उक्त बातें जुनवानी, भिलाई स्थित श्री शंकराचार्य मेडिकल कालेज मैदान में गत शनिवार से प्रारम्भ हुई नौ दिवसीय श्रीराम कथा के छठे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि रामचरितमानस में यह उदाहरण प्रस्तुत किया गया है कि जब दशरथ जी ने अपने सुपुत्र राम जी को यज्ञ की रक्षा के लिए भेजा तो उसका परिणाम भी उनके सामने सभी पुत्रों के शुभ विवाह के रूप में आया। दशरथ जी को चार पुत्रों की प्राप्ति भी यज्ञ आदि कर्म से ही प्राप्त हुए थे। आज अपने आप को विकसित कहने वाले लोग सतकर्मों से दूर रहने का प्रयास करते हैं। किसी से यज्ञ, कथा, अनुष्ठान आदि के बारे में बात करें तो वह बताते हैं कि उनके पास समय ही नहीं है। लेकिन जीवन में जब आघटन उपस्थित होते हैं तब उन्हें पता चलता है कि हमसे कहीं ना कहीं चूक हो गई है।
मुझे श्री ने कहा कि अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं होता है प्रकाश की अनुपस्थिति का नाम ही अंधकार है और जैसे ही प्रकाश का आगमन होता है अंधकार अपने आप दूर हो जाता है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी धर्म का आगमन होने से ही उसके जीवन के जितने भी अंधकारमय पक्ष हैं वह अपने आप प्रकाशित हो जाते हैं।
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई भी कार्य बिना मुहूर्त विचार कि नहीं किया जाना चाहिए। कुछ लोग इसे महत्व नहीं देते हैं लेकिन इसका परिणाम सामने आता ही है। अपने धर्म संस्कृति के कारण ही भारत दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश पहले भी था और आज भी है भारत से अच्छा कोई भी देश दुनिया में नहीं है।
पूज्यश्री ने कहा कि आजकल हर ओर दूसरों की निंदा करके ख्याति प्राप्त करने की कोशिश हो रही है। वास्तव में जिसके पास अपना कुछ बताने को नहीं होता है वही दूसरों की निंदा करता है। यह प्रवृत्ति या संस्कृति किसी हाल में स्वीकार योग्य नहीं है। कोई भी संस्कारवान व्यक्ति ऐसा नहीं करता है । संस्कार हीन लोग ही ऐसा कर सकते हैं।
पूज्यश्री ने कहा आपाधापी और भागदौड़ में आम आदमी की पूरी जिंदगी निकल जाती है और जब मनुष्य को अपने बारे में सोचने का समय आता है तो उसके पास समय ही नहीं बचता है। सनातन धर्म के हिसाब से बचपन युवा अवस्था की तैयारी करता है। युवा अवस्था बुढ़ापे की तैयारी करता है और बुढ़ापा अगले बचपन की तैयारी करता है।
वो व्यक्ति जो अपना सब कार्य कर चुका हो अर्थात अपने जीवन से जुड़े सभी दायित्वों का निर्वहन कर चुका हो तो उसके लिए यह उचित होता है कि वह अब बचे हुए समय में अपने लिए तैयारी करे अपने अगले बचपन की तैयारी करे। परमार्थ पथ की यात्रा की तैयारी करे।
महाराज श्री ने कहा कि अगर आपको हमारी बातों पर विश्वास नहीं हो तो आप उन व्यक्तियों की सूची बनाना शुरू करिए जो आपके लिए समर्पित हों। आप सूची बनाते जाएंगे काटते जाएंगे और अंत में पाएंगे कि शायद एक या दो ही ऐसे व्यक्ति होंगे जो आपके लिए होंगे। उनमें भी आपको निर्मलता के भाव की तलाश नहीं करनी चाहिए अन्यथा दुख के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।
हमारे सनातन शास्त्र इस बारे में बार-बार चेतावनी देते हैं। मंदोदरी माता ने रावण को भी यही शिक्षा दी थी कि अब चौथेपन में वानप्रस्थ की सोच करें, लेकिन रावण नहीं माना और परिणाम सभी को पता है।पूज्य श्री ने कहा कि धर्म, स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं करता है। धर्म को जानना मानना और उसके अनुरूप आचरण करना यह तीनों अलग विषय हैं। धर्म के अनुसार आचरण करने वाला ही अपने प्रारब्ध को पुष्ट करते हुए अगले जन्म के लिए सुख पूर्वक यात्रा कर पाता है।
श्री सीताराम विवाह और उसके बाद के प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोता गण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।गुरुवार को बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया। बड़ी संख्या में विशिष्ट जन भी उपस्थित रहे।
कथा के मुख्य यजमान आई पी मिश्र ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया।