भिलाई नगर 30 मई 2023 : सनातन संस्कृति के सद्ग्रन्थों में इस बात के बार-बार प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में पुरुषार्थ से ही कुछ भी प्राप्त होता है और जो कोई भी जुगाड़ से कुछ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, उनकी यात्रा ज्यादा दूर तक नहीं हो पाती है।
उक्त बातें जुनवानी, भिलाई स्थित श्री शंकराचार्य मेडिकल कालेज मैदान में गत शनिवार से प्रारम्भ हुई नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं। श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि अगर मानव शरीर मिला है तो हमें परिश्रम करके कुछ हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।
जीवन यात्रा को सफल बनाने का सूत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में कुछ भी प्राप्त करना है तो हमें भगवान से अपना संबंध स्थापित करना चाहिए क्योंकि सामान्य मनुष्य भी वही ज्यादा आता है जहां उसका अपना संबंध होता है जब हम भगवान से अपना कोई भी संबंध स्थापित कर लेते हैं तो भगवान भी उस संबंध का निर्वाह जरूर करते हैं।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि श्री रामचरितमानस में यह स्पष्ट बताया गया है कि भगवान का यशोगान करना मंगल का घर है। कहते, सुनते और अनुमोदन करते ही जीवन के सभी चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है श्रीराम कथा से।
पूज्यश्री ने कहा कि जब हम किसी भी प्रकार से राम कथा सुनने लगते हैं तो हमारे जीवन में उपस्थित प्रमाद का शमन होने लगता है और फिर रामकथा में रस आना शुरू होता है। जीव को जब कथा में रस आने लगता है तो अन्य सांसारिक रस फीके पड़ने लगते हैं। कथा यात्रा में यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के मन में बहुत अधिक प्रश्न ना हो क्योंकि भक्ति और मर्यादा में अनेक प्रश्न नहीं होने चाहिए। केवल भक्ति और मर्यादा में ही नहीं, जहां भी हम अपने संबंधों को सुदृढ़ रखना चाहते हैं, वहां ज्यादा प्रश्नों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
पूज्य महाराज श्री ने बताया कि भगवान अपने अंशों सहित धरती पर आए और इसलिए वो अपने सभी कार्यों को सरलता से संपन्न कर पाए। हमें भी अपने जीवन में आसपास अपने अंशों की तलाश करनी चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि वह हमारे रक्त संबंधी हो। जिनसे मिलकर हमारे हृदय को हमारे मन को सुकून प्राप्त हो, वो हमारे अंशी हो सकते हैं।
पूज्य श्री ने कहा कि हमारी तैयारी ऐसी होनी चाहिए कि अगर भगवान भी हमसे पूछे तो हम उसे यह कह सकें कि अब हमें कुछ नहीं चाहिए। क्योंकि भगवान भी अपनी ओर से कुछ देते नहीं हैं। वास्तव में हम अपने कर्मों से जो हमारा प्रारब्ध तैयार करते हैं वही हमें भगवान की ओर से प्राप्त होता है। महाराज श्री ने कहा कि भगवान की सेवा में लगने वाला तन मन और धन सभी सुंदर स्वरूप धारण कर लेते हैं। श्रीरामचरितमानस के अलावा अन्य सभी ग्रंथों में भी यह सभी बातें लिखी हुई है लेकिन मनुष्य इन्हें मानता नहीं है। जैसे सड़कों पर गाड़ियों के रफ्तार की सीमा तय की हुई है फिर भी लोग अधिक रफ्तार से गाड़ी चला कर जुर्माना भरते हैं।
जीवन में सफल होने का एक महत्वपूर्ण सूत्र यह भी है कि अगर हमारा सोचा हुआ कोई कार्य हो जाए तो उसे हरि कृपा माने और अगर ना हो तो उसे हरि इच्छा मान लें।हमारे शास्त्रों में एक सरल सिद्धांत दिया गया है कि आदमी को सौ कार्य छोड़ कर भी भोजन करना चाहिए, हजार कार्य छोड़कर स्नान करना चाहिए और एक लाख कार्य छोड़कर भी दान करना चाहिए। चाहे वह दान थोड़ा ही हो । लेकिन, यह सभी कुछ छोड़कर के भगवान का भजन करना चाहिए।
जन्म-जन्मांतर के पुण्य के संग्रह के बाद सनातन धर्म में जन्म मिलता है
पिछले कई जन्मों के पुण्य का संग्रह हमें सनातन धर्म में जन्म लेने के का अवसर प्रदान करता है । इसे व्यर्थ ही नहीं गंवाना चाहिए और भटकना भी नहीं चाहिए। मैं बार-बार कहता हूं कि सनातन धर्म में जन्म लेने के बाद अन्यत्र भटकने से बचें।
भगवान श्रीराम की बाल लीला प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया। बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे।कथा के मुख्य यजमान आई पी मिश्र ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया।