रायपुर 10 जनवरी 2023 / आदिवासी लोक कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद ओर से राम कथा पर आधारित 9 दिवसीय चित्र कला शिविर शुरुआत मंगलवार को हुई। 18 जनवरी तक रोजाना सुबह 11:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक कला वीथिका महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय परिसर रायपुर में होने वाले इस शिविर में देश की विविध लोक एवं आंचलिक शैलियों में पारंगत चित्रकार अपनी कला के माध्यम से राम कथा को प्रदर्शित कर रहे हैं।
शिविर में उड़िया पट्ट, चेरियल पट्टम, गंजीफा, मधुबनी, चित्रकथि एवं पटुआ जैसी शैलियों में प्रहलाद महाराणा, विनय कुमार, रघुपति भट्ट, शांति देवी झा, चेतम गंगावणे, मोनी माला, बनमवर महापात्र एवं कुमकुम झा जैसे प्रसिद्ध चित्रकार रामकथा में रंग भर रहे हैं।



पूरी रामकथा चित्रित होगी अलग-अलग शैलियों में
आयोजन के संबंध में आदिवासी लोक कला अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ला ने कहा कि श्रीराम व छत्तीसगढ़ का गहरा संबंध रहा है। समकालीन-पौराणिक मान्यताओं व मिथक में श्रीराम और उस काल के चरित्रों से छत्तीसगढ़ अछूता नहीं रहा। वहीं देश की विभिन्न शैलियों में रामकथा का अलग-अलग ढंग से रूपांकन और चित्रांकन होता रहा है


।नवल शुक्ला ने कहा कि ऐसे आयोजन उस श्रृंखला का हिस्सा हैं, जिसके अंतर्गत पूरी रामकथा चित्रित करवाई जाएगी। जिसमें रामकथा के अलग-अलग कांड व घटनाओं को शामिल किया जाएगा। जिससे भविष्य में छत्तीसगढ़ में देश का एक वृहद रामकथा संग्रहालय बनाने योजना को अमली जामा पहनाया जा सके।


ठाकर जनजाति ने सहेज कर
रखा है रामकथा को
महाराष्ट्र के सिंधु दुर्ग इलाके में रहने वाली ठाकर जनजाति को छत्रपति शिवाजी महाराज के गुप्तचर के तौर पर जाना जाता है और इस जनजाति ने ‘चित्रकथी’ नाम की चित्रशैली के माध्यम से रामकथा व महाभारत कालीन कथा को सहेज कर रखा है। वर्तमान में ‘चित्रकथी’ के गुरु पद्मश्री परशुराम विश्राम गंगावने ने इस शैली को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके सुपुत्र चेतम परशुराम गंगावने बताते हैं कि ‘चित्रकथी’ शैली की धरोहर के तौर पर उनके परिवार के पास 300 से 350 साल पुरानी पेंटिंग संरक्षित है।


पेशे से आईटी इंजीनियर चेतम ने बताया कि पिता के साथ वह और उनके भाई एकनाथ भी इस कला के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने बताया कि ‘चित्रकथी’ में वादकों के साथ प्रदर्शन होता है। जिसमें कंधे वाली वीणा, टाल (मंजीरा) और डमरू (हुडुक) लेकर कलाकार बैठते हैं और इन वाद्यों के साथ चित्र प्रदर्शित करते हुए कथा बोली जाती है। आज भी यह कथा मंदिरों में नवरात्र में, दीवाली में और तुलसी विवाह जैसे अवसरों पर होती है। उन्होंने बताया कि सिंधुदुर्ग स्थित तिनगुली गांव के अपने घर पर ‘चित्रकथी’ को समर्पित संग्रहालय बनाया है।