भिलाई नगर 12 फरवरी 2024 :- भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित स्कूल मे लोकप्रिय सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के पुरस्कार से पुरस्कृत इस्पात नगरी ही नहीं दल्ली राजहरा के स्कूलों में भी सेवाएं देने वाले मरोदा सेक्टर मकान नंबर 14 बी H पॉकेट निवासी आजमगढ़ उत्तर प्रदेश के मूल निवासी केशव सिंह गुरु जी का 11 फरवरी की रात्रि 8:30 बजे इलाज के दौरान सेक्टर 9 चिकित्सालय में निधन हो गया वह 71 साल के थे।
उनका अंतिम संस्कार 12 फरवरी को दोपहर में रामनगर मुक्तिधाम में किया गया भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित स्कूलों में साइंस के बेहतरीन शिक्षक के रूप में उनकी गिनती होती थी अनेक विधाओं में सर्वगुण संपन्न केशव सिंह गुरुजी सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के रूप में अनेकों बार पुरस्कार हासिल कर चुके हैं अनुशासन प्रिय केशव गुरु जी के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी
वे शिक्षा के साथ-साथ सत्संग की दिशा में भी हुए सक्रिय रहते थे केशव सिंह गुरुजी क्षत्रिय कल्याण सभा के भी आजीवन सदस्य थे सामाजिक कार्यों हमेशा बढ़-चढ कर हिस्सा लेने वाले केशव सिंह गुरुजी धार्मिक एवं सत्संग के कार्यों में हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़े होने वाले शख्सियत थे।
12 फरवरी को दोपहर में उनका अंतिम संस्कार रामनगर मुक्ति धाम में किया गया वे अनिल कुमार सिंह, नीरज कुमार सिंह व पंकज कुमार सिंह के पिता, एस.के. गौतम के समाधि थे। केशव सिंह गुरु जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए सत्संग कार्यों में हमेशा उनके साथ मौजूद रहने वाले भिलाई नगर निगम के वरिष्ठ स्वच्छता निरीक्षक कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि हमारे गुरूजी एक उत्कृष्ट शिक्षक के साथ ही एक आध्यात्मिक गुरु भी थे।
हमारे गुरुदेव की एक विशेषता थी कि वह अपने शिष्यों को कितना कुछ प्रदान कर दूं, हमेशा लालायित रहते थे। गुरूदेव के नजरों में शिष्य चाहे बीस दिन पहले जुड़ा हो अथवा बीस साल पहले, गुरु की दृष्टि में सभी बराबर होते हैं इसलिए प्रत्येक शिष्य को सम्मान देना चाहिए,आदर करना चाहिए, अपनी श्रद्धा को मात्र गुरु के चरणों के लिए ही सुरक्षित रखना चाहिए।
गुरुदेव द्वारा सत्संग में यही बात बताई गई कि शिष्य के जीवन में गुरू ही सर्वस्व होता है, इसलिए देवी -देवताओं की साधना करने के साथ गुरू साधना को ही जीवन में प्राथमिकता देनी चाहिए।जो शिष्य अपने अहम,छल-कपट , आदि को छोड़कर भौतिक श्रेष्ठताओं को भूलाकर गुरूचरणो में झुक जाता है, वही सफल होता है। गुरूदेव ने हमेशा हमें यही सिखाया कि साधना में सिद्धि प्राप्त करनी है तो तुम्हें प्रेम करने की कला सीखनी होगी। अपने एक एक सांस को गुरु को समर्पित कर देने की क्रिया सीखनी होगी और जिस दिन आप गुरु से प्यार करने लग जाते हैं उसी झण से वह सांस अपनी नहीं होती,वह गुरु की अमानत होती है।
गुरूदेव हमेशा यही चाहते थे कि प्रत्येक शिष्य को ऐसा मार्ग अवश्य ही खोजना चाहिए, जिससे उसके सम्मान की रक्षा और अनन्त संभावनाओं की पूर्णता की प्राप्ति हो सके।
गुरूदेव ने सत्संग में यह बात भी बताए थे कि एक अध्यापक प्रथम दिन ही अपने विधार्थी से दो -चार प्रश्न पूछकर समझ जाते हैं कि उसका ज्ञान किस स्तर पर खड़ा है और उसे किस प्रकार से कहां तक ले जाना है,वह ऊपर से सामान्य रहते हुए भी उसे ज्ञान/शिक्षा देते रहते हैं।