भारत छोड़ो आन्दोलन और साझी विरासतः अज़ीम मुजाहिदे आज़ादी यूसुफ मेहर अली ने दिया था भारत छोड़ो’ का नाराः एम. डब्ल्यू. अंसारी

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भोपाल 9 अगस्त 2023 :- आज पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आज देश को आजादी मिले 76 साल से ज्यादा हो गए हैं। आज़ादी की लड़ाई, एकजुटता आपसी भाईचारे के अलावा एक गौरवशाली घटना थी भारत छोड़ो आंदोलन। साथ ही इतने लंबे समय के बाद भी यह आंदोलन लोगों के लिए शक्ति का ज्वलंत उदाहरण है। आज हमें उन लोगों को याद करने की जरूरत है जिन्होंने वर्षों से हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे कई मुजाहिदीन हैं जिन्होने भारत के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया ।

बता दें कि 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने मुम्बई में ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया और 9 अगस्त को भारत में सभी लोग इसमें कूद पड़े। जिसे देखकर अंग्रेज उत्तेजित हो गए, लेकिन विडंबना यह है कि हममें से कितने लोग इस ऐतिहासिक तथ्य से परिचित हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दो नारे जो भारत के इतिहास में मील के पत्थर हैं। उनके कहने वाले मुम्बई के मेयर यूसुफ मेहर अली थे, जो महात्मा गांधी के करीबी थे और विपक्ष के सामने चट्टान की तरह खड़े थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान इतना महान है कि उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

8 अगस्त, 1942 को जब कांग्रेस पार्टी ने मुम्बई की बैठक में मौलाना आजाद की अध्यक्षता और यूसुफ मेहर अली के नारे के साथ ‘भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो समाज के हर वर्ग, विशेषकर महिलाओं ने इसमें बड़े पैमाने पर भाग लिया।

इनमें खास तोर पर महात्मा गांधी के साथ-साथ मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस, अशोक मेहता, जय प्रकाश नारायण, पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि थे। अगस्त आंदोलन या भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेजों और अंग्रेजी सरकार की चूलें हिला दीं। आंदोलन का खोफ इतना हुआ कि कांग्रेस के सभी नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने सलाखों के पीछे भेज दिया, शायद ही कोई नेता हो जो जेलों के अंदर न गया हो।

इन पुरुष मुजाहिदीनों के साथ-साथ महिला मुजाहिदीन आज़ादी भी थीं जो इन सभी नेताओं के अंदर होने के बाद मोर्चा संभाले हुए थीं, जिनमें प्रमुख थीं अरुणा आसिफ अली, सरोजिनी नायडू बेगम उर्फ बी अम्मा, फातिमा इस्माइल, रेहाना तैय्यबजी, फातिमा तैय्यबजी, हमीदा तैय्यबजी और सुगरा खातून आदि इन सभी महिलाओं ने सभी कष्टों को हँसते हुए सहन किया, अपनी मातृभूमि के प्रति सच्चे प्रेम का प्रमाण दिया और अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।

यह बात भी काबिले गोर है कि आजादी के इस महान युद्ध में जहां एक ओर पुरुषों और महिलाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी और पूरा भारत अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था, वहीं दूसरी और इस तेहरीक और आंदोलन को रोकने और कमजोर करने का भी भरपूर प्रयास किया गया। न केवल इसका बहिष्कार किया गया बल्कि एक अपील भी जारी की गई जिसमें यूनियनिस्ट पार्टी ऑफ पंजाब आदि के साथ हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के सभी नेता शामिल थे। आज भारत की राजनीतिक परिस्थितियों और सत्ता में बैठे लोगो पर ये शेर बिल्कुल दुरूस्त है।

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मंज़िल उन्हें मिली जो शरीक-ए-सफर न थे

1942 में महात्मा गांधी के भारत छोडो अभियान ने अंग्रेज़ों को देश से बाहर निकाला था। आज के नए भारत में, जैसा कि प्रधान मंत्री ने कहा, हम गरीबी, असमानता, अशिक्षा, खुले में शौच आतंकवाद और भेदभाव को मिटाने का संकल्प लेते हैं और हम इन सभी बुराइयों से कह सकते हैं भारत छोड़ों। यह बात और है कि सफलता नहीं मिली जैसा कि अपेक्षित था और प्रांतीय सरकार और राष्ट्रीय सरकार उस पर खरी नहीं उतरी। बल्कि आज पूरे भारत को लग रहा है कि राष्ट्रीय सरकार या प्रांतीय सरकारें अपने वादे पूरे नहीं कर रही हैं। इसके विपरीत हो रहा है। भारत की साझी विरासत, भाईचारा सब नष्ट हो गई है।

भारत छोड़ो आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 9 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी और सभी कांग्रेस नेताओं द्वारा भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खात्मे के लिए शुरू किया गया था।

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने अंग्रेजों को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर किया कि भारत पर शासन करना जारी रखना संभव नहीं होगा और उन्हें भारत से बाहर निकलना ही होगा। ऐसे मुजाहिद यूसुफ मेहर अली जिन्होंने यह नारा दिया था हम उन्हें सलाम करते हैं और सभी देशभक्तों से अपील करते हैं कि वे ऐसे मुजाहिदीनों का इतिहास खुद भी पढ़ें और अपने बच्चों को भी सिखाएं जिस से उनमें देशभक्ति की भावना जागृत हो और देश की साझी विरासत को बचाएं और देश की साझी विरासत को मजबूत करने का काम करें ताकि भारत देश मजबूत हो और खुब तरक्की करे।


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