श्रीराम कथा पंचम दिवस ब्रेकिंग : धर्मशील राजा के लिए प्रकृति भी अपना कोष खोल देती है – पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज….

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भिलाई नगर 31 मई 2023 : सनातन धर्म, सत्य आचरण के समाज के निर्माण पर ही आधारित है। सतकर्मों में रहने वाले व्यक्ति के लिए हर वस्तु सुलभ होती है । ठीक इसी प्रकार से अगर राजा धर्मशील हो तो प्रकृति भी उसके प्रजा पालन में उसका पूरा पूरा साथ देती है। उक्त बातें जुनवानी, भिलाई स्थित श्री शंकराचार्य मेडिकल कालेज मैदान में गत शनिवार से प्रारम्भ हुई नौ दिवसीय श्रीराम कथा के पांचवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं

श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि मिथिलेश की वाटिका में भगवान राम के स्वागत में पूरी प्रकृति उमड़ पड़ी थी। ठीक है इसी प्रकार से त्रेता में जहाँ भी राजा धर्मशील होते थे, समुद्र देव उनके स्वागत में अपने गर्भ से खजाने को लाकर तट पर बिखेर देते थे।


पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में भगवान राम के मिथिला प्रवेश के बाद के कथा प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि सनातन धर्म और संस्कृति में भगवान राम जी का चरित्र हमें बार-बार यह सिखाता है कि हमें जीवन में किस प्रकार रहना है। जब हम राजा जनक जी की वाटिका के प्रसंग का दर्शन करते हैं जहां भगवान श्री राम और माता सीता जी को एक दूसरे का पहली बार दर्शन हुआ था तो हमें यह पता चलता है कि शीलवान व्यक्ति कैसा होता है?


महाराज श्री ने कहा कि संसार में अच्छा बुरा दोनों ही उपस्थित है जो भगत लोग हैं उन्हें अच्छे को ग्रहण करते हुए अपने जीवन को धन्य बनाने की आवश्यकता होती है। अपनी दृष्टि पर संयम से यह संभव हो पाता है। जब हम अच्छा देखने का प्रयास करते हैं तो हमें सब कुछ अच्छा ही देखता है जैसे युधिष्ठिर को ढूंढने पर भी कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला लेकिन उसी जगह पर दुर्योधन को ढूंढने पर कोई एक भी अच्छा व्यक्ति नहीं मिला। हमें अपने भलाई के लिए अच्छा देखने का अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि हम जो देखते हैं वही सोचते हैं और धीरे-धीरे वैसा ही बन जाते हैं।


जीवन में हमें किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि वो आपसे परेशान हो जाए। जितना हो सके जीवन को सरल और सहज बनाना चाहिए। सहजता ही ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है।
पूज्यश्री ने कहा कि राम और रावण की एक राशि थी। रावण ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था और भगवान राम क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कुल तो रावण का श्रेष्ठ था लेकिन, जब हम दोनों के व्यवहार की बात करते हैं, आचरण की बात करते हैं, आहार की बात करते हैं तो हर मामले में राम जी रावण से श्रेष्ठ थे।


समाज में लोग श्रेष्ठ के ही आचरण का अनुकरण और अनुसरण करते हैं ऐसे में सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आचार, व्यवहार, आहार में श्रेष्ठता का प्रदर्शन करें जिनका अनुकरण किया जा सके।भारतीय सनातन संस्कृति में यह बार-बार प्रमाणित हुआ है कि जो भी व्यक्ति धर्म पथ पर चलते हुए संसार में विचरण करते हैं, उनके घर से दुख भी दूरी बना कर रहता है और ऐश्वर्य स्वयं चलकर उनके घर पहुंचते हैं।


महाराज जी ने कहा कि मनुष्य को किसी के भी अपकर्मों की चर्चा करने से बचना चाहिए। जब हम किसी के किए गए गलत कार्यों की बार-बार चर्चा करते हैं तो उस तरह की स्थिति हमारे अपने जीवन में भी उपस्थित होने लगती है। महाराज श्री ने बताया आम जन जीवन में कहां उठना बैठना है, कहां नहीं जाना है, क्या खाना है? क्या नहीं खाना है ।

किससे कुछ लेना है और किससे कुछ नहीं लेना है आदि-आदि यही तो धर्म है। जब कोई व्यक्ति धर्म पूर्वक धर्मशीलता के
जीवन को जीने का प्रयास करता है तो भगवान भी उसकी मदद करते हैं। पूज्य महाराज श्री ने कहा कि भारतीय सनातन परंपरा में माताओं को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। यहां तक कि जब भगवान का भी हम पूजन करते हैं


तो सबसे पहले भगवान को त्वमेव माता कहते हैं। माताओं ने सनातन संस्कृति को जीवंत बना रखा है। भगवान श्री राम की मिथिला यात्रा और धनुषभंग के प्रसंगों का गायन करते हुए पूज्य महाराज जी ने कहा कि हम जिस युग में जी रहे हैं उस काल में दान ही सर्वश्रेष्ठ धर्म कार्य है। भगवान ने हमें कुछ देने के लिए ही दिया है । हम जो देते हैं , हमें वही वापस और ज्यादा मिलता है जैसे अगर हम धरती में एक मुट्ठी अन्न डालते हैं तो धरती माता हमें उसे 100 गुना करके देती हैं।


धनुष भंग प्रसंग का श्रवण करने के लिय बुधवार को बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया। बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे।
कथा के मुख्य यजमान आई पी मिश्र ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया।


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