श्री राम कथा सप्तम दिवस ब्रेकिंग : पूजा-पाठ और कर्मकांड हमारे जीवन में क्यों आवश्यक है – पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज….

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भिलाई नगर 2 जून 2023 : मनुष्य का जीवन सुख और दुख से सर्वदा जुड़ा रहता है। इसलिए जब अत्यंतिक सुख की स्थिति हो , तभी आदमी को सावधान हो जाना चाहिए । क्योंकि दुख भी दरवाजे पर ही खड़ा होता है और अवसर की तलाश में होता है। अगर मनुष्य पूजा-पाठ और कर्मकांड से जुड़ा होता है तो उसे दुखों के ताप से बचने की छतरी प्राप्त हो जाती है।उक्त बातें जुनवानी, भिलाई स्थित श्री शंकराचार्य मेडिकल कालेज मैदान में गत शनिवार से प्रारम्भ हुई नौ दिवसीय श्रीराम कथा के सातवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।


श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म के सदग्रंथों में यह बताया गया है कि भगवान भोलेनाथ की सेवा में रहने वाले व्यक्ति के जीवन में दुख आने के बाद भी उसका उतना प्रभाव नहीं होता है। कहा भी गया है – भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी। भगवान भोलेनाथ के शरण में रहने वाले और उनका नियमित रूप से अभिषेक आदि पूजन करने वाले व्यक्ति के जीवन में कोई अघटन की स्थिति आने के बाद भी उतना प्रभाव नहीं डाल पाता है जितना पूजा पाठ नहीं करने वाले पर प्रभाव पड़ता है।


पूज्यश्री ने कहा कि अगर हमें जीवन का आनंद लेना है तो हमें जीवन को उत्सव में बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
जब हम सभी में कमी ही देखते रहेंगे तो आनंद भी हमसे दूर दूर ही रहेगा। आनंद पाना है तो हमें स्वयं को इसके लिए तैयार रखना होगा। किसी को कोई चाह कर भी आनंद नहीं प्रदान कर सकता है आनंद अनुभूत का विषय है और यह स्वयं ही प्राप्त करना होता है। लोग सोचते हैं कि ऐसी व्यवस्था हो जाएगी तो हम भगवान के भजन में लगेंगे। जबकि भजन में लगने वाले के लिए ही भगवान व्यवस्था बनाते जाते हैं।


पूज्य श्री ने कहा कि श्री रामचरितमानस के दो पक्ष हैं। राम जी की कथा में एक पक्ष लीला का है और दूसरे पक्ष में राम जी के चरित्र का दर्शन होता है। मनुष्य के जैसे प्रवृत्ति होती है उसे वैसे ही प्रसंग में आनंद आता है। श्रेष्ठ व्यक्ति जहां पहुंच जाता है वहां ही उत्सव का माहौल बन जाता है। महाराज श्री ने कहा कि भारत की भूमि देवभूमि है, धर्म की भूमि है । यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने ही पड़ते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में सनातन धर्म और परंपरा के साथ कई तरह के खिलवाड़ की घटनाएं हो रही है जो चिंता का विषय है।


हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है आजकल तो लोग अपने माता पिता के अंतिम क्रिया के लिए 13 दिन भी नहीं निकाल पा रहे हैं और आर्य समाज के प्रति अपना कर 3 दिनों में ही इतिश्री कर ले रहे हैं। यह कदापि उचित नहीं है और कहीं भी इसकी धर्म इजाजत नहीं देता है।


मनुष्य मात्र की दिमागी कसरत है जाति-पाती का भेद। भगवान ने कभी भी, कहीं भी जात-पात भेद को बढ़ावा देने की बात नहीं करी है। श्रीरामचरितमानस में इस बात का बार-बार प्रमाण आया है। भगवान ने केवट जी, शबरी जी और निषाद जी को जो सौभाग्य प्रदान किया वह अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भगवान कभी भी भगत में जात-पात का भेद नहीं देखना चाहते हैं।
श्री राम विवाह के बाद के कथा प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि देश में जाति पाती का झगड़ा झमेला राजनीतिक दलों की देन है। भला हो उन चौक चौराहों के होटल और चाय की दुकानों का जिन्होंने एक ही कप में पंडित जी और अन्य लोगों को भी चाय पीना सिखा दिया है।

क्या हम कभी किसी होटल में जाकर यह पूछते हैं कि इस थाली में हम से पहले किसने भोजन किया था? महाराज श्री ने कहा कि लोग इस समय राम राज्य की स्थापना की बात कर रहे हैं और मैं भी भारत में राम राज्य की स्थापना के पक्ष में हूं। जरूर रामराज की स्थापना होनी चाहिए। लेकिन, सबसे पहले यह हमारे अपने घरों में होनी चाहिए। जब हम स्वयं सदग्रंथों के आश्रय में धर्म आचरण करते हुए जीवन जिएंगे तो हमारे खुद के भीतर और परिवार में राम राज्य की स्थापना होगी तो समाज में भी रामराज की स्थापना होगी।


पूज्यश्री ने कहा कि हमें मुफ्त की चीजों खासकर जिसे खैरात कहते हैं उससे बचने की आवश्यकता है। खैरात से जीवन पथभ्रष्ट होता है। जिसे खैरात की आदत लग गई, वह जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह पाता है।महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।


बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है। अपने परिश्रम से अर्जित धनसे जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है। भरत चरित्र और अन्य प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।
कथा के मुख्य यजमान आई पी मिश्र ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया।


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