विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष…भिलाई इस्पात का हर दिन पर्यावरण दिवस – 35 टन जिम्मेदारी, 1 सपना…

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विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष…भिलाई इस्पात का हर दिन पर्यावरण दिवस – 35 टन जिम्मेदारी, 1 सपना


भिलाई नगर 04 जून 2025:- भिलाई, वह शहर जो इस्पात से बना है, पर उसकी पहचान केवल उत्पादन नहीं — पर्यावरण के प्रति उसकी जिम्मेदारी से भी है। एक ऐसा नगर जो केवल अपने इस्पात संयंत्र के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी सुव्यवस्थित टाउनशिप, हरियाली और साफ़-सुथरे वातावरण के लिए भी जाना जाता है। सड़क किनारे लगे गुलमोहर,आम व अन्य छायादार वृक्ष, साफ-सुथरे बगीचे, और सुव्यवस्थित कॉलोनियाँ — यह सब एक आदर्श शहरी जीवन की तस्वीर पेश करता है। सेल – भिलाई इस्पात संयंत्र की टाउनशिप हर दिन पर्यावरण के लिए एक युद्ध लड़ती है — नारे, पोस्टर और वादों से नहीं, बल्कि रोज़ सुबह रिक्शे पर निकलते उन सैकड़ों स्वच्छता कर्मियों के श्रम और संकल्प से। और यही संकल्प है

— 35 टन कचरे की सफाई, हर मौसम में 12 महीने, हर दिन, बिना थके, बिना रुके।
कंधों पर बोझ नहीं, भरोसे की ज़िम्मेदारी
संयंत्र के टीएसडी (नगर सेवाएं विभाग) के वरिष्ठ प्रबंधक श्री रमेश कुमार गुप्ता बताते हैं, “हमारी टाउनशिप में रोज़ करीब 35 टन कचरा निकलता है, जिसे 175 साइकिल रिक्शा से करीब 200 स्वच्छता कर्मचारी 15 सेक्टरों के लगभग 33,000 घरों और दुकानों से एकत्र करते हैं। यह कोई साधारण कार्य नहीं है — यह व्यवस्था की नींव है।”
हर सुबह 5 बजे से पहले जब भिलैवासी गहरी नींद में सो रहे होते हैं, तब ये स्वच्छता कर्मी अपने रिक्शों को तैयार करते हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक नौकरी नहीं, यह एक शहर को स्वच्छ, हरित और स्वस्थ बनाए रखने का मिशन है।


सेग्रिगेशन: ज़िम्मेदारी जो अब भी अधूरी है
सबसे बड़ी चुनौती आज भी वही है — गीले और सूखे कचरे को अलग न करना। “लोगों में या तो जागरूकता की कमी है, या फिर लापरवाही ज़्यादा। इससे न सिर्फ हमारे वर्कर्स की मेहनत दोगुनी बढ़ जाती है, बल्कि रीसायक्लिंग और कंपोस्टिंग की पूरी प्रक्रिया भी बाधित होती है,” श्री गुप्ता कहते हैं।
परन्तु फिर भी प्रयास जारी है। गीले कचरे से खाद बनाई जाती है जो भिलाई इस्पात संयंत्र के बाग़-बग़ीचों में उपयोग होती है। सूखे कचरे को अलग किया जाता है — अगर वो पुनर्चक्रण योग्य हो, तो वर्कर को प्रोत्साहन के तौर पर अतिरिक्त राशि भी दी जाती है। श्री गुप्ता बताते हैं, ”एक सोच है — जिससे कचरा भी संसाधन बन सकता है, बशर्ते हम सभी अपने स्तर पर सहयोग करें।”
जो वस्तुएँ टीएसीडी द्वारा प्रोसेस नहीं की जा सकतीं, उन्हें अधिकृत रीसायकल एजेंसियों को सौंप दिया जाता है।


प्लास्टिक से जंग अब भी जारी है
भिलाई को प्लास्टिक मुक्त बनाने की दिशा में अभियान जारी है, पर श्री गुप्ता मानते हैं कि यदि डिस्पोज़ल ग्लास और पॉलिथीन बैग्स का उपयोग पूरी तरह से बंद हो जाए, तो 50% समस्या तुरंत हल हो सकती है। “बैन तो है, पर उसका पालन ढीला है। सख्ती ज़रूरी है — लेकिन उससे भी अधिक ज़रूरी है नागरिकों की भागीदारी।” भिलाई को प्लास्टिक मुक्त शहर बनाने का सपना अभी अधूरा है। डिस्पोज़ेबल ग्लास और पॉलिथीन बैग पर पहले ही प्रतिबंध है, लेकिन जब तक नागरिक स्वयं इस प्रतिबंध को अपने व्यवहार में नहीं अपनाते, तब तक यह प्रयास निष्फल रहेगा।


पर्यावरण की सेवा — एक शहर की सामूहिक ज़िम्मेदारी
भिलाई आज भी हरा-भरा है। इस्पात की कठोरता के बीच यहाँ प्रकृति की नर्मी बसती है। लेकिन हर दिन निकलता 35 टन कचरा यह याद दिलाता है कि यह संतुलन कितना नाज़ुक है। यह सिर्फ विभाग की नहीं, हम सभी की ज़िम्मेदारी है — एक थैला रखना, गीले-सूखे कचरे को अलग करना, पॉलिथीन न खरीदना — यह छोटे-छोटे प्रयास ही बड़े बदलाव ला सकते हैं। भिलाई आज खड़ा है दो राहों पर — एक तरफ सुंदरता, व्यवस्थापन और मिसाल बनने की राह, दूसरी ओर लापरवाही और अनदेखी की खाई। पर्यावरण दिवस पर यह विचार करने का सही अवसर है कि हम किस ओर जाना चाहते हैं।


जब कचरे से उपजती है हरियाली
भिलाई इस्पात संयंत्र की सोच स्पष्ट है — उत्पादन के साथ प्रकृति का संरक्षण। यही कारण है कि स्वच्छता को यहाँ केवल एक अभियान नहीं, बल्कि दैनिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। 5 जून को जब पर्यावरण दिवस मनाया जाएगा, तो टाउनशिप का हर कर्मी इसे समारोह नहीं, अपनी रोज़मर्रा की सेवा के एक और दिन की तरह देखेगा।

क्योंकि भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए हर दिन पर्यावरण दिवस है — 35 टन जिम्मेदारी, 1 सपना — एक हरा-भरा, स्वच्छ, और जागरूक भिलाई।


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