व्यासपीठाधीश पंडित विजय शंकर मेहता का सुंदरकांड का पाठ: वस्त्र अंग की शोभा है अंग प्रदर्शन का माध्यम नहीं हो सकता…..सुबह से हनुमान का नाम ले वही बेड़ा पार लगाएंगे…. भोजन भी एक माया है इसे हम सभी को समझना होगा…….दुख में भी भोजन ना छोडे अन्य मान जरूरी है…..अन्य विचार को प्रभावित करता है अच्छा भोजन जरूरी……

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भिलाई नगर 01 जनवरी 2023 :! साहित्यकार, विचारक, पत्रकार और व्यासपीठ पं. विजय शंकर मेहता . नव वर्ष की पूर्व संध्या पर 31 दिसंबर शनिवार को भिलाई प्रवास पर थे। इस दौरान वे सत विजय ऑडिटोरियम सेक्टर- 5 में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता रहे। एक शाम स्वागत के नाम इस महाउत्सव में उन्होंने सुंदरकांड का भी पाठ किया। मेहता ने कहा कि अन्न विचार को प्रभावित करता है। अच्छे विचार के लिए अच्छा भोजन जरूरी है। भोजन में शुद्धता होनी चाहिए। अज्ञात के हाथों का भोजन आप के मन को विचलित कर सकता है। टीवी, मोबाइल देखते व अन्य कार्य करते भोजन ना करें। वरना आप भोजन के साथ जहर भी खा रहे हैं। कार्यक्रम में भिलाई निगम के महापौर नीरज पाल विधायक देवेंद्र यादव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की धर्मपत्नी मुक्तेश्वरी बघेल पूर्व महापौर नीता लोधी सहित सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित थे मेहता ने इस दौरान सुंदरकांड का पाठ किया। सुंदरकांड के माध्यम से जीवन जीने की कला सीखाई। ज्ञातव्य हो कि पंडित विजय शंकर मेहता 2011 से लगातार नीरज पाल के अनुरोध पर नववर्ष की पूर्व संध्या पर सुंदरकांड का पाठ इस्पात नगरी भिलाई में करते आ रहे हैं सुंदरकांड का पाठ शुरू करने के पूर्व उन्होंने मीडिया से भी कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की

सुुबह से हनुमान का नाम लें, वही बेड़ा पार लगाएंगे

सुंदरकांड का एक दोहा सुनाते हुए पं मेहत ने उसका अर्थ बताते हुए कहा कि हनुमान ने कहा है कि यदि आप सुबह से मेरा का नाम लेंगे, तो आप को दिन भर खाना नही मिलेगा। आगे का दोहा पढ़ते हुए बताया कि हनुमान का कहना है कि यदि आप सुबह हनुमान का नाम लेकर अपने दिन की शुरूआत करेंगे तो आप को दिन भर काम, लोभ, मोह, क्रोध से दूर रहेंगे

वस्त्र अंग की शोभा है, अंग प्रदर्शन का माध्यम नहीं हो सकता

पं मेहता वस्त्र के बारे में बताते हुए कहा कि वस्त्र का बड़ा महत्व है। वस्त्र मन को शांति देता है। वस्त्र तन की शोभा है, लेकिन आजकल अंग प्रदर्शन का माध्यम बन गया है। फैशन बन गया है, फैशन करना गलत नहीं है। फैशन दि पर बहुत खर्च होता है। सुंदरकांड का पाठ करते हुए बताया कि कैसे रावण वस्त्र का दुरुपयोग करता था। जब वह सीता से मिलने पुष्पवाटिका में आया तो अपनी कई पत्नियों को खूब सजाकर ले गया। यह बताने के लिए कि सीता मान जाएंगी तो वह उसे भी इनकी तरह खूब सजाकर ठाठबाट से रखेगा। जबकि सीता ने जवाब देते समय एक तिनका को पर्दा की तरह रख कर कहा कि रावण तू मेरा नहीं कर सकता था। ब्राह्मण वस्त्र पहना था, इसलिए मैं उसका सम्मान की। आगे उन्होंने बताया कि हनुमान की पूछ जलाने के लिए पूरे लंका के वस्त्र पूछ में बांध दिए और हनुमान ने पूरी लंका जला दी। हनुमान ने कहा कि वस्त्र का दुरुपयोग कभी न करें ।

दुख में भी भोजन न छोड़ें, अन्न का मान जरूरी है

दुख में भी हो तो कभी खाना ना छोड़ों । लोग दुखी होते हैं तो खाना नहीं खाते यह गलत है। समुद्र किनारे परेशान बैठे वानरों से हनुमान ने कहा था कि जाओ कंदमूल खा लो। तब वानरों ने कहा कि यहां कहां से कंदमूल खाएं। तब हनुमान ने कहा कि कभी कभी बिना नेतृत्व के भी काम करना पड़े तो अपने आप को समर्थ बनाना है। भोग लगाने के बाद ही अन्न ग्रहण करें।

अज्ञात के हाथ से भोजन न करें, मन विचलित होता है

अज्ञात के हाथ का भोजन ना करें। वरना यह भोजन आप के मन का विचलन बढ़ा देगी। इसलिए मां के हाथा का भोजन सर्वश्रेष्ठ माना गया है, मां का मतलब सिर्फ जन्म देने वाली नहीं बल्कि बेटी, बहन, भाभी कोई भी हो सकती है। हनुमान जब लंगा पहुंचे तो देखा कि लंका का भोजन मदिरा, गाय,भैस, गधे, बकरे, मनुष्य हैं। सब यही खा रहे हैं।

भोजन भी एक माया है, इसे हम सभी को समझना होगा

पं विजय शंकर मेहता ने बताया कि सिंहिका एक राक्षसी थी, जिसे माया कहते थे। जो लोगों के छाया को पकड़ कर खा जाती थी। माया के बारे में बताते हुए मेहता ने कहा कि माया 6 प्रकार के हैं। भोजन, धन, वस्त्र, पुस्तक, स्त्री, मकान यह सब माया है। माया दिखता नहीं पर अपनी ओर खिंचता है। जैसे स्वास्थ्य शरीर के लिए डाइटिंग करनी हैं।


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