भिलाई नगर 10 फरवरी 2025:- शिक्षाविद और एचएससीएल के सेवानिवृत्त अधिकारी देवेंद्र कुमार दुबे ने नई शिक्षा नीति में और अधिक सुधार की मांग की है। उन्होंने वर्तमानं, पुरानी और प्राचीन शिक्षा व्यवस्था के अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला है।


उन्होंने इसे लेकर 12 से ज्यादा ऐसी किताबों को नई शिक्षा प्रणाली में शामिल किए जाने की मांग की है। उन्होंने लक्ष्य, लोक व्यवहार, बड़ी सोच का बड़ा जादू, सोचें और अमीर बनें, अवचेन मन की शक्ति, रहस्य, रिच डेड पुअर डेड,कैश फ्लो क्वाईंट, कॉपी कैट मार्केटिंग, प्रॉब्लम ऑफ पाइपलाइन, लोक व्यवहार, क्या आपका डॉक्टर पोषक तत्वों के बारे में जानता है, आदर्श स्वास्थ्य जैसी बहुमूल्य किताबों का अवलोकन किया है। ये किताबें नई शिक्षा व्यवस्था में खासा बदलाव ला सकती हैं। इन पुस्तकों को पढ़ना अति आवश्यक है। इसे स्कूल, कॉलेज के पढ़ाई के कार्यक्रम में समाहित करना अति आवश्यक है।





ज्वलंत विषयों को जानना आवश्यक
दुबे ने का कि कुछ ऐसे ज्वलंत विषय हैं, जिनके बारे में देश के हर व्यक्ति को जानना चाहिए। इसमें वर्ष 1947 में अखिल भारतीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के चयन की वैधानिकता, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों से आजादी किन शों में स्वीकार की, पाकिस्तान का बंटवारा, जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35A लागू किया जाना, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पीओके क्यों बना, कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) में ले जाया जाना, आजादी के बाद भी अंग्रेजों की मेकाले की शिक्षा प्रणाली को लागू किया जाना, संविधान में भारतवासियों को एक नामकरण भारतीय न देकर अलग-अलग नानों में बांटा जाना, समानता के अधिकार के स्थान पर समाज के हर क्षेत्र, वर्ग में भेदभाव का प्रावधान, आरक्षण का प्रावधान, जन प्रतिनिधि, राजनेता के लिए योग्यता का पैमाना, सरकारी नौकरी की तरह जनप्रतिनिधि, राजनेता, संवैधानिक पद के लिए चरित्र प्रमाण पत्र की अनिवार्यता क्यों नहीं, कानून तोड़ने वालों को कानून बनाने का अधिकार जैसे विषय शामिल हैं।


सकरात्मक सोच विकसित करने किए जाएं निरंतर प्रयास
दुबे ने अपने ज्ञापन में कहा कि सकरात्मक सोच विकसित करना वर्तमान समय की जरुरत है। समाज में इतनी नकरात्मकता फैल रही है, इस पर अंकुश लगाने की जरुरत है। इसके लिए 10 वाक्य ऐसे हैं, जिन्हें दिन में कम से कम 20 बार 90 दिनों तक दोहराना चाहिए। इसमें मैं सबसे अच्छा हूं, मैं इसे कर सकता हूं, मैं स्वस्थ और मजबूत हूं, अनुशासिक और जवाबदेह हूं। जीवन में मिली हर चीज के लिए मैं आभारी हूं, जीवन में जो भी हो रहा है, उसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं, आज का दिन मेरा दिन हहै। ईश्वर मेरे साथ हैं, मैं एक बेहतर इंसान बन रहा हूं। मैं महत्वपूर्ण व्यक्तियों की संगत कर रहा हूं।
एजुकेशन सिस्टम से उठते सवाल, इनका जवाब जरूरी
दुबे ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली के सामने कई प्रश्न हैं, जिनका जवाब किसी के पास नहीं है। आप बच्चों को क्या पढ़ा रहे हैं, क्या बच्चों की सोच बन रही है। समाज और देश के लिए हुम क्या कर रहे हैं, निम्न स्तर की घटनाएं आखिर क्यों हो रही हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली आखिर क्यों व्यावसायिक और पेशेवर प्रशिक्षण दे रही हैं, इंसानी गुणों का विकास क्यों नहीं हो रहा। शिक्षा का प्रयोजन क्या है, जबकि टेक्नोलॉजी हर काम में सक्षम होते जा रही है। दुबे ने कहा कि शिक्षा रोजगारोन्मुखी न होकर जीवनोपयोगी होनी चाहिए। उन्होंने जिन किताबों का जिक्र किया है, उनमें इस तरह के कई सवाल खड़े हो रहे हैं, इसका जवाब हर किगारिक के लिए आवश्यक है। इसलिए नई शिक्षा प्रणाली में ऐसी नकताबों को समाहित करना आवश्यक है। इस दिशा में प्रयास हो, तो हम अपनी संस्कृतिक और समाज को बेहतर कल दे सखेंग। अन्यथा हमारा पतन लगातार होते जायेगा।


