प्रभु की भक्ति के लिए विश्वास, संबंध और समर्पण जरुरी: आचार्य पं. संदीप तिवारी…शनिवार को तिथि अनुसार प्रभु राम का जन्मोंत्सव रंगोली और दीप जलाकर मनाया….

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भिलाई नगर 11 जनवरी 2025:-  भागवत में लिखा है कि ध्रुव ने नारायण के दर्शन नहीं किया, अपितु नारायण ने ध्रुव के दर्शन किए। क्योंकि भक्त ध्रुव के पास नारायण यानी अपने प्रभु के प्रति विश्वास, संबंध व समर्पण के भाव थे। इसलिए सनातन धर्म में जब विवाह होता है तो ध्रुव तारा दिखाया जाता है क्योंकि वह सत्य और अटल का प्रतीक माना जाता है। भक्ति के संबध में यह बातें आचार्य पं संदीप तिवारी ने कही।

श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के तीसरे दिन देवहूति व कपिल कथा का विस्तार, ध्रुव चरित्र, सती चरित्र, ऋषभदेव जड़ चरित्र, समुद्र मंथन, वामन अवतार व अजामिल कथा के प्रसंगों का विस्तार से व्याख्या आचार्य संदीप तिवारी द्वारा किया गया। भागवत कथा का आयोजन दोपहर 1 बजे से 5 बजे तक संम्प्रति सेवा समिति भिलाई सेक्टर 2 रामभद्र सेवा मंडल में सर्वजन कल्याणार्थ के उद्देश्य से किया जा रहा है।

आचार्य संदीप तिवारी ने कथा के दौरान बताया कि भगवान विष्णु भक्त ध्रुव ने भगवान नारायण की ऐसी भक्ति की, जिसे देखकर स्वयं नारायण को भक्त ध्रुव के दर्शन करने आना पड़ा। उसी प्रकार अजामिल कि भी भक्ति से भगवान प्रसन्न हुये। भक्त प्रहलाद ने भी भगवान को अपने भक्ति से प्रसन्न किया।


आत्मा को बंधन में रख सकते है मन को नही
आचार्य ने कथा की व्याख्या करते हुए बताया कि माता देवहूति ने पुत्र कपिल से पूछा कि बंधन मन का होता है या आत्मा का। तब कपिल ने कहा कि आत्मा का बंधन नही होता और मन का बंधन अवश्य होता है जिसका सरल तरीका है गोविंद का कीर्तन करों, कथा को सुने।

मानव की पांच ज्ञानेन्द्रिया व पांच कर्मेन्द्रियां अपनी अपनी ओर खींचती है इसलिए आंखो से देखना हो तो फिल्मों के हीरों-हीरोईन नही ईश्वर के अनेक रुपों को देखो, कानों से अच्छे भजनों को सुनों और जीभ से अच्छे पदार्थो का सेवन करों। जीभ को यदि रसगुल्ला पसंद हो तो उसे प्रसाद के रुप में ग्रहण करों। प्रसाद यानी प्र से प्रभु, स से सरल या साक्षात व द से दर्शन, प्रसाद का अर्थ ही प्रभु के साक्षात रुप में दर्शन करना होता है।


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