डोंगरगढ़ 12 दिसंबर 2021:– धर्मनगरी डोंगरगढ़ माँ बम्लेश्वरी मंदिर नीचे प्रांगण में दिनांक 11 दिसम्बर से 17 दिसम्बर 2021 तक प्रतिदिन शाम 4 बजे से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग के प्रथम दिवस प्रवचनकर्ता श्रद्वेय स्वामी श्री विजयानन्द गिरी (ऋषिकेश) ने कहा कि चौरासी लाख योनियों के बाद परमपिता के असीम कृपा के बाद एक योनि से दूसरे योनि में आवागमान से मुक्ति पाने के लिए जीव को मानव शरीर प्राप्त हुआ है। सांसरिक गृह, सांसरिक माता-पिता, सांसरिक रिश्ते मानव के असली रिश्ते नहीं है।मानव का असली घर परमात्मा का घर है, उसके असली माता-पिता और रिश्तेदार स्वयं परमात्मा है। इस सांसरिक घर, सांसरिक रिश्तेंदारों से मिलने में इतना आनंद है तो असल घर और असली माता-पिता अर्थात् परमात्मा के पास पहुंच जाएं तो मिलने वाले आनंद का अंदाजा लगाएं। यदि इस जन्म में मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाए तो पुनः चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।
धन मानव के साथ नहीं जाएगा, लेकिन धन को कमाने में किए गए चोरी, डकैती, छल-कपट जैसे पाप कार्य जरूर साथ जाएगा, इसलिए धन केवल ईमानदारी से कमाना चाहिए। कमाएं धन को किसी गरीब बिटियां के विवाह, पढ़ाई आदि अर्थात् किसी गरीब के उत्थान में जैसे पुण्य कार्यो एवं धार्मिक कार्य में खर्च किया जाए तो धन के साथ जीव का भी उद्धार हो जाए।
भोग जड़ है और मानव शरीर चेतन है, इस प्रकार दोनों में सजातीयता नहीं है तो चेतना को भोग से तृप्ति कैसी मिलेगी। परमात्मा ने मनुष्य को इतनी योग्यता प्रदान की है कि तत्व ज्ञान से ईश्वर को भी नाचने पर भी विवश कर सकता है। किन्तु भोग मिल जाएं तो मैं सुखी हो जाउंगा यह सोचकर मानव केवल भोग और संग्रह के पीछे लगा हुआ है। सांसरिक सुख मानव पाने की लालसा ही, मानव को मोक्ष से दूर ले जाता है। सुख तो परमात्मा में है। परमात्मा को पाना बहुत आसान है। भगवान तो केवल स्मरण मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। केवल भगवान को याद करने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्त किया जा सकता है।गीता प्रेस, गोरखपुर की पुस्तकों का लाभ उठाने का निवेदन करते हुए आयोजकगण मां बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति डोंगरगढ़, गोवर्धन फाउंडेशन अयोध्याधाम उ.प्र. तथा दुर्लभ सत्संग परिवार, छत्तीसगढ़ ने बताया कि कार्यक्रम में मास्क के बिना प्रवेश वर्जित है। सोशल डिस्टेंसिंग सहित अन्य कोविड-19 गाईड लाईन पालन अनिवार्य है। श्रद्वापूर्वक भाग लेने के अतिरिक्त व्यास पीठ एवं आरती में किसी भी प्रकार का भेंट व रूपया-पैसा न चढ़ाने, संतों का चरण स्पर्श न करने, फोटो नही खींचने, माला नही पहनाने व जयकारा है।